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वैश्यवर्गः ९] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
३४६ ___-१ यवक्षारो यवाग्रजः ॥ १०८ ।। पाक्यो२८थ मजिकाभारः कापोतः सुखवर्चकः । ३ सौवर्चलं स्याद्वक स्वपक्षीरी वंशवना !! १०९।। ५ शिमऊ श्वेतमरिचं ६ मोरटं मूल मैक्षवान् । ७ प्रन्थिक विशालोमुलं चटकाशिर इत्यपि :: ११० ॥ ८ गोलोमी भूत केशो मा ९ पत्राझं रक्तचन्दनम् । १० त्रिकटुम्यूषण कयो १२ त्रिफला तु फलनिकम् ।। १११
, यवक्षारः, यदाजा, पाक्यः (३ पु) 'जवास्वार' के ३ नाम हैं ॥ २ सर्जिकाहारः, कापोतः, मुखवर्चकः (३) 'सजीवार' के ३ नाम हैं ।।
३ सोबर्चलम् , रुचकम् (२न), 'क्षार-भेद या सोचरवार के २ नाम हैं। 'मा० पी० आदि मतले सर्जिकाचार:,.........." ५ नाम 'सजी. खार' के ही हैं)
४ स्वधारी ( + तुकाक्षीरी, तुकाशुभा, वांशी), वंशरोचना ( + वंशलो. चना, वंशजा । ३ स्त्री), 'वंशलोचन' के २ नाम हैं।
५ शिग्रुजम् , श्वेतमरिचम् । ३ न), 'सहिजनके बीज' के २ नाम हैं ।। ६ मोरटम् (न), 'ऊन (गो) की जड़' का । नाम है ॥
७ प्रन्धिकम् , पिप्पलीमूलम , चटकाशिरः (= घटकाशिरस । + चटका श्री, शि: = शिर पु । ३ न ), 'पिपराभूल' के ३ नाम हैं।
८ गोलोमी (बी), भूतके शः (पु), 'जटामांसी' के २ नाम हैं।
९ पत्राङ्गम् , रक्तचन्दनम् (२ न), 'रक्तसार' अर्थात् 'लाल चन्दन के समान एक काष्ठ-विशेष' के नाम हैं।
१० त्रिकटु, घ्यूषणम् (+ युपगम), व्योषम् (३ न ), 'त्रिकटु' अर्थात् 'पिपल, सोंठ और मिर्च के समुदाय के ३ नाम हैं ।
। त्रिफला ( + तृफला, परा। खी), फलत्रिकम् (न), 'त्रिफला' अर्थात् 'आँवला, हरे और बहेड़े के समुदाय के २ नाम हैं।
इति वैश्यवर्ग: ॥९॥
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