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अमरकोषः ।
[ द्वितीयका
१. स्यात्तेमनं तु निष्टानं २ त्रिलिङ्गा वासितावधेः ॥ ४४ ॥ ३ शूलाकृतं भदित्रं स्याच्छूल्य मुख्यं तु पेठरम् ।
'संस्कृतं सर्पिषा दध्ना सार्पिष्कं दधिकं क्रमात् ( २९ ) उलावणिक तत्स्याद्यत्सिद्धं लवणाम्भसा' (३० ) ७ प्रणीतलुपसम्पनं ८ प्रयस्तं स्यात्सुसंस्कृतम् ॥ ४५ ॥ ९ स्यास्थिच्छिलं तु विदितं १० संमृष्टं शोधितं समे ।
१ तेमनम्, निष्ठानम् ( २ न ), 'दही- बारा, कढ़ी आदि' के २ नाम है। २ यहाँ से आगे 'वासित' (श्लो० ४६) शब्द तक सब शब्द त्रिलिङ्ग हैं | ३ शूलाकृतम्, भटित्रम्, शूल्यम् (३ त्रि ), 'लोहे के छड़ से पकाये हुए मांस' के ३ नाम हैं ॥
४ उख्यम्, पैठरम ( २ त्रि), 'बहुप में पकाये हुए भात आदि' के २ नाम हैं ।
५ [ सर्पिष्कम, दाधिकम् (२ त्रि), घी और दही में बनाये हुए पदार्थ' का क्रमशः १ -१ नाम है ] ॥
६ [ उइलावणिकम् ( त्रि ), 'पानी और नमक में बनाये हुए पदार्थ ' का १ नाम है ] ॥
७ प्रणीतम्, उपसंपन्नम् ( २ ), 'रस आदिमें बनाये हुए रसिआव आदि पदार्थ या तैयार भोजनमात्र' के २ नाम हैं ॥
८ प्रवस्तम् सुसंस्कृतम्] ( २ ) परिश्रम से पकाये ( बनाये ) हुए उत्तमोत्तम भोज्य पदार्थ' के १ नाम है ॥
९ पिच्छिलम्, विजिलम् ( + विज्जिलम्, विज्जलम्, विजिविलम्, विजिपिलम्, विज्जनम् । २ त्रि), 'रसदार तरकारी, पतली दही आदि' के २ नाम हैं ॥
१० संमृष्टम्, शोधितम् (१ त्रि), 'केश, कीड़ा आदि चुनकर साफ किये हुए अन्नादि के २ नाम हैं ॥
१. 'संस्कृतं ...... लवणाम्भसा' इत्ययमंशः क्षी० स्वा० व्याख्याने 'शूल्यो रूप' शब्दयोर्मध्ये एव पठ्यते इत्यतोऽस्य प्रकृतोपयोगितयाऽयं मया मूळे क्षेपकरूपेण स्थापितः ॥
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