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नार
वैश्यवर्गः ९] मणिप्रभाव्याख्यासहिताः ।
३२१ १ सन्धवोऽस्त्री शीतशिवं माणिमन्थं च सिन्धुजे । २ रोमकं सुकं ३ पास्यं विडं च कुनके द्वयम् ॥ ४२ ॥ ५ सौवर्चलेऽक्षरुप के ५ तिलकं तत्र मेत्रके। ६ मत्स्यण्डी फणितं ७ खण्ड विकार; सीना : १३॥ ८ कूचिका शीरविकृतिः स्याद्रलामा तु माजिता ।
सैन्धवः (पुन), शीनाशवम ( + वितशिवम् ), माणिमन्यम् (+माणिबन्धम् ), धुम् (३ न ), 'धा मक, या सिन्धुदेशमें पैदा होनेवाले नमक' * ४ नाम हैं ।
२ औषकम, बसुरुम (+ वस्तकम् । ३ न). 'साँभर नमक' के नाम हैं।
३ पाकम् , बिम् (+विडम् । १ न ), 'खारा नमक या खरिया नमक' के २ नाम हैं।
४ सौवर्चलम्, अक्षम, रुचकम् ( ३ न ), 'सोचर नमक के ३ नाम हैं। ५ तिलम् (न), 'काला नमक' का नाम है ॥ ६ मत्स्यण्डी (सी), फाणितम् (4), 'राब' के २ नाम हैं॥
स्वण्डविकारः (पु), शर्करा, सिता (२ स्त्री), 'मिश्री, चीनी, शकर' के ३ नाम हैं । ('भा. दी० मतसे 'मत्स्यण्डी,..." ३ नाम 'राव' के और शर्करा, सिता' ये २ नाम 'चीनी आदि' के हैं। अन्याचार्यों के मतमें 'मत्स्यण्डी,........' ५ नाम एकार्थक हैं)॥
८ कूर्चिका, क्षीरविकृतिः (भा. दी। + किलाटी । २ खी, 'मावा, खोवा' के २ नाम हैं।
९ साला, माजिता ( + शिखरिणी । २ सी), 'दही, खांड (चीनी), घी, मिर्च और सोठसे बनाई हुई चटनी' के २ नाम हैं, इसे गुजराती लोग सिखरन या सिकरन' कहते हैं)। १. सितशिवं माणिकन्ध' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'वस्तकं पाक्यं विडं' इति पाठान्तरम् ॥ ३. तथा च सूद (पाक) शास्त्रम्
'अर्धाढकः सुचिरपर्युषितस्य दनः खण्डस्य पोडश पलानि शशिप्रमस्य । सर्पिः पलं मधु पलं मरिचं दिकर्षे शुण्ठथाः पलार्द्धमपि चापलं चतुर्णाम् ॥१॥ सूक्ष्मे पटे खलनया मृदुपाणिघृष्टा कपूरधूलिसुरमीकृतपात्रसंस्था । एषा कोदरकृता सरसा रसाला यास्वादिता भगवता मधुसूदनेन' ॥ २॥इति॥
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