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अमरकोषः
[प्रथमकाण्डे१ त्रिलिङ्गयां त्रिग्विति पदं मिथुने तु द्वयोरिति। २ निषिद्धलिङ्गंशेषार्थ,
३ त्वन्ताथादि न पूर्वभाक् ॥५॥ एकशेष नहीं करनेपर भी कोई दोष (प्रतिज्ञाहाान ) नहीं है। इसी तरह अन्यान्य उदाहरण भी समझने चाहिये)॥
१ तीनों लिङ्ग (पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग) हैं, यह बतलाने के लिये इस ग्रंथमें 'त्रिषु', पुंल्लिङ्ग और स्त्रीलिङ्ग दोनों लिङ्ग हैं, यह बतलानेके लिये 'द्वयोः' ये शब्द कहे गये हैं। (पहला तीनो लिङ्ग बतलाने के लिये जैसे....."मण्डलं त्रिषु ( १।३।१५) यहाँ 'त्रिषु' शब्द कहनेसे 'मण्डल' शब्दके तीनों लिङ्ग (पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग) होते हैं । दूसरा स्त्रीलिङ्ग बतलानेके लिये जैसे-....... अशनियोः (११४७)' यहाँ 'यो' शब्दके कहनेसे 'अशनि' शब्द पुंल्लिङ्ग और स्त्रीलिङ्ग होता है)
विशेषः-पुंल्लिङ्ग को बतलाने के लिये 'ना, पुमान् , पुंसि....... स्त्रीलिङ्ग को बतलाने के लिये 'स्त्री, स्त्रियाम् ....." और नपुंसकलिङ्ग को बतलाने के लिये 'पलीबम्.....' शब्द कहे गये हैं। इनके उदाहरण स्वयं समझ लेना चाहिये।
२ जहाँ जिस लिङ्गका निषेध किया गया है, उस निषिद्ध (मना किये हुए) लिङ्गके अतिरिक्त शेष (बाकी) लिङ्ग उस शब्दके होते हैं । (जैसे-'संवासरो वरसरोऽब्दो हायनोऽस्त्री.....(१४२.) यहाँ 'अस्त्री' इस शब्दसे 'संवत्सर' आदि चार शब्दोंके स्त्रीलिङ्गका निषेध करनेसे उक्त चार शब्द पुंल्लिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग दोनों में हैं)।
३ जिस शब्दके अन्त में 'तु' या आदि में 'अथ' शब्द हों, ऐसे, '१ नाम पद, २लिङ्गपद,३ सर्वनामपद और अव्ययपद' इन चारोंका पहलेवाले (पूर्वमें रहनेवाले) शब्दों के साथमें सम्बन्ध नहीं होता है। (क्रमशः उदाहरण-पहला (नामपद) त्वन्त ('तु' अन्तवाला) जैसे-... और्वस्तु वाडवो वडवानलः (११५६) यहाँ 'और्व' शब्दके आगे (अन्तमें ) 'तु' शब्द है; अतः 'और्व' शब्दका सम्बन्ध आगेवाले 'चाडव' ही शब्द के साथ है, पूर्व (पहले ) वाले शब्द के साथ नहीं । दूसरा (लिङ्गपद) त्वन्त जैसे'अन्तर्धा व्यवधा पुंसि स्वन्तर्धिरपवारणम् (१।३।१२) यहाँ 'पुंसि' इस शब्दके
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