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अमरकोषः। द्वितीयकाक.
-१ 'कण्डोलपिटौ २ कटकिलिञ्जको ॥२६॥ समानी ३ रसवत्यां तु पाकस्थानमहानले। ४ पौरोगवस्तदध्यक्षः ५ सूपकारास्तु बल्लवाः ।। २७ ।। ६ आरालिका आन्धसिकाः सूदा औदनिका गुणाः। ७ आपूपिकः कान्दविको भक्ष्यकार ८ इमे विष ।। २८ ।। ९ 'अश्मन्तमुद्धानमधिश्रयणी चुल्लिरन्तिका। १९ अङ्गारधानिकारशकट्यपि हसन्त्यपि ॥ २९ ॥
हसन्यपि, कण्डोलः, पिटः (+पिटकः, पिण्डः क्षो० स्वा०१२पु), बाँस या बेत आदिके बने हुए दौरी, डालो, ओड़ा आदि' के २ नाम हैं । २ कटः, किलिजकः (२), 'बाँसको बनी हुई झाँपी आदि' के २ नाम हैं।
३ रसवती (स्त्री), पाकस्थानम्, महानसम् (२ न), 'रसोइया घर, पाकशाला' के ३ नाम हैं।
४ पौरोगवः (त्रि), 'पाकशालाके मालिक का नाम है ॥
५ सूपकास, बल्लका (१ त्रि), पी० स्वा० के मतसे 'व्यञ्जन' (तरकारी, की भादि) बनानेवाले रसोयादार के २ नाम हैं ॥
६ मरालिका, भान्धसिकः, सूदः, मौदनिकः, गुणः(५ त्रि), क्षो. स्वा० के मतसे 'रसोइयादार, पाचक' के ५ नाम हैं । भा. दो० महे० भादिके मतसे "सूपकार:' आदि ७ नाम 'रसोइयादर' के ही है ॥
७ भापूपिका, कान्दविकः, भषयकार: (+मय कारः, भक्ष्यकारः । ३ त्रि), "पुआ, पुड़ी, कचौड़ी आदि बनानेवाले, हलवाई के ३ नाम हैं।
८ 'पौरोगव' (श्लं० २७) शन्दसे यहाँ तक सब शब्द त्रिलिज हैं ॥
९ अश्मन्तम् (+ अस्वन्तः, पु), सद्धानम, (अध्मानम्, उद्वानम्, उदा. बम् । २ न), अधिश्रयणी, चुहिलः (+चुल्ली), अन्तिका ( + अन्दिका, अन्ती । ३ स्त्री), 'चुल्ही' के ५ नाम हैं ।
१० अङ्गारधानिका ( + अनारधानी, बनारपात्री), अनारशकटी, हसन्ती (+हसन्तिका), हसनी (४ सो), 'बोरसी, 'अँगीठी' के नाम हैं ।
१. 'कण्डोलपिण्डौ इति पाठान्तरम् ॥ २. 'मस्वन्त उध्मानं' इति 'अश्मम्तमुहान रति च पाठान्तरे।
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