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अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे१ भिन्दिपालः सृगस्तुल्यौ परिधः परिघातनः ।। ९१ ॥ ३ द्वयोः कुठारः स्वर्धाितः परशुश्च 'परश्वधः। ४ स्थाच्छस्त्री चासिपुत्री च च्छुरिका वासिधेनुका ।। ९२ ।। ५ वा पुंसि शल्यं ६ शङ्कुर्ना लवला तोमरोऽस्त्रियाम् । ७ प्रालस्तु कुन्तः कोणस्तु स्त्रियः पाल्यधिकारयः ।। ९३ ।। १ सर्वाभिसारः सर्बोधः सर्वसनहनार्थकः ।
भिन्दिपालः ( + भिडिपाला), सृगः (२३), 'नलिका नामक हथियार और गुलेल' अर्थात् 'छोटे २ पत्थर या कंकड़ फेंकने के वास्ते रबड़ या चमड़े के बने हुए साधन विशेष, या ढेलबांस' के २ नाम हैं।
२ परिधः, परिधातनः ( २ पु), 'लोहा मढ़ी हुई लाठी' के २ नाम हैं ।।
३ कुटारः (पु स्त्री), स्वधितिः, परशुः, परश्वधः ( + परस्वधः, पर्वधः । ३ पु) 'फड़सा, कुल्हाड़ी' के ४ नाम हैं।
शस्त्री, अलिपुत्री, छुरिका ( + चुदि का ), असिधेनुका ( ४ स्त्री), 'छी' के नाम हैं॥
५ शल्यम् (न पु), शङ्खः (पु), 'बाण के क (अगले भाग) के २ नाम हैं।
६ सर्वला ( +शला । स्त्री), तोमर: (पु न ) 'तोमर, गुर्ज या गड़ासे के २ नाम हैं। ___ . प्रासः ( + प्राशः ), कुन्तः ( २ पु ), 'भाला' के २ नाम हैं ।
८ कोणः (पु), पालिः ( + पाली), अश्रिः ( + अश्री ), कोटिः ( + कोटी। ३ स्त्र), 'तलवार आदि हथियारोंके किनारे या नोक' के माम हैं।
९ सर्वाभिसारः, सधः (२ पु), सर्वसनहनम् (न), 'चतुरङ्गिणी सेना को तैयार करने के ३ जाम हैं ।
१. परस्वधः' इति पाठान्तरम् ।। २. 'शवला' इति पाठान्तरम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org