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पजियवर्ग: ८ मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
-१ पताकी वैजयन्तिकः । २ अनुप्लव 'सहायश्चानुचरोऽभिसरः समाः ॥ ७१ ॥ ३ पुरेगाग्रेसर-प्रष्ठा-प्रतःसर-पुरःसराः
पुरोगमः पुरोगामी ४ मन्दगामी तु मन्थरः ॥ ७२ ॥ ५ जङ्घालोऽतिजवस्तुल्यौ ६ जङ्घाकरिकजाडिको । ७ तरस्वी त्वरितो वेगी प्रजवी जवनो जवः ।। ७३ ।। ८ जय्यो यः शक्यते जेतुं जेयो जेतव्यमात्रके।
, पताकी ( = पताकिन् ), बैजयन्तिकः ( त्रि), 'पताका धारण करनेवाले के २ नाम ॥
३ अनुप्लवा, सहायः, अनुचरः, अभिसरः (+ अभिचरः। ४ त्रि), 'मनुचर के ४ नाम हैं।
३ पुरोगः, अग्रेसर:( + अप्रसरः), प्रष्ठः, अग्रतःसरः, पुरासस, पुरोगमः, पुरोगामी ( = पुरोगामिन् । ७ त्रि), 'आगे चलनेवाले' के नाम हैं ।
४ मन्दगामी ( = मन्दगामिन् ), मन्थः (२ त्रि) 'धीरे २ चलने पाले' के नाम हैं। __ ५ अवाल: ( + अलि ), भतिजवः ( + अतिबलः । १ त्रि), 'बहुत तेज चलनेवाले के नाम हैं॥
जहाकरिका, मालिका (२ त्रि), 'दौडाहा, डाँक ढोनेवाले के २ नाम हैं।
• सरस्वी ( = तस्विन् ), स्वरिता, वेगी ( = वेगिन् ), प्रजवी (= प्रजविन्), नवना, जया (त्रि), 'शीघ्रता करनेवाले के नाम हैं।
८ अरया (त्रि) 'जीते जा सकनेवाले' का । नाम है। (जैसेहामेण रावणो जय्य' अर्थात् 'राम रावणको जीत सकते हैं। इस वायमें रामका रावण जय्य हुमा, .....")
९ जेयः (वि), 'जीतने योग्य' का । नाम है। (जैसे-'जेयं मनः इन्द्रियं वा' अर्थात् 'मन पा इन्द्रिम बीतने योग्य है। इस वाक्यमें मम और इन्द्रिय जेयो ........)
१. सहायश्चानुचरोऽमिचरः' इति पाठान्तरम् । १६ अ०
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