________________
mS0
स्त्रियवर्गः ८] मणिप्रभाब्याख्यासहितः । १ सांष्टिकं फलं सघ २ उदः फलमुत्तरम् ।। २९ ॥ ३ अष्टं वह्नितोयादि ४ दृष्टं स्वपरचक्रजम् । ५ महीभुजामहिमयं स्वपक्षप्रभवं भयम् ॥ ३०॥ ६ प्रक्रिया त्वधिकारः स्या ७ चामरं तु प्रकीर्णकम् । ८ नृपासनं यत्तद्भद्रासनं ६ सिंहासनं तु तत् ॥ ३१ ॥
हैमं १० छत्रं त्वातपत्रं
। सांदृष्टिकम् ( न ), 'व्याशार आदिके बाद शीघ्र मिलनेवाले फल' का १ नाम है ।
२ उदः (पु), 'भविष्य में होनेवाले फल' का । नाम है ।
३ अष्टम् (न), 'आगसे जलने, पानीसे बह जाने आदि' (आदि दसे 'व्याधि, दुर्भिक्ष, मरण, बहुत वर्षा, सूखा, मृग, मूषक' का संग्रह है) के भय' का १ नाम है।
४ टम् (न), 'अपने राज्यमें चोर, जङ्गल आदिका भय तथा दूसरे राज्यसे दाह और चढ़ाई आदिके भय' का । नाम है। ___ ५ अहिभएम् (न), 'अपने पक्ष ( मन्त्री आदि ) से होनेवाले राजा आदिके भय' का १ नाम है ! (' 'पक्ष के ७ भेद हैं')॥
६ प्रक्रिया (स्त्री), अधिकारः (पु), 'व्यवस्थाको ठीक करने के २ नाम हैं ।
. ७ चामरम् (+ चमरम् ; चमरः पु, चा परा स्त्री), प्रकीर्णकम् (न), 'चवर' के २ नाम हैं ।
८ नृपासनम् , भद्रासनम् ( २ न ), 'मणि आदिके बने हुए राजाके आसन' के २ नाम हैं।
९ सिंहासनम् ( न ), 'सुवर्ण के बने हुए राजाके सिंहासन' का , नाम है ॥
१. छत्रम् , भातपत्रम् (२ न ), 'छाता' के २ नाम हैं ।
१. पक्षः सप्तधा, तथा हि
'निजोऽय मैत्रश्च समाभितश्च सम्बन्धतः कार्यसमुद्भवश्च । भृत्या गृहीतो विविधोपचारैः पक्षं बुधाः सप्तविधं वदन्ति' ॥ १॥ इति ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org