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ब्रह्मवर्गः ७ ] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
२६१ -१ कुहना लाभान्मिथ्येर्यापथकल्पना । २ व्रात्यः संस्कारहीगः स्या३दस्वाध्यायो निराकृतिः ।। ५३ ॥ ४ धर्मध्वजी लिङ्गवृत्ति५रवकीर्णी क्षतव्रतः । ६ सुप्ते यत्पिन्नस्तमति नुप्ते यस्मिन्नुदेति च ।। ५४ ॥
अंशुमानभिनिर्मुक्ताभ्युदितौ च यथाक्रमम् । ७ परिवेत्ताऽनुतोऽनूढे ज्येष्ठे दारपरिग्रहात् ।। ५५ ।।
. कुहा (at), 'दम्भसे ध्यान मौनादि धारण करने, धनलाभसे मिथ्या धर्माचरण करने का : नाम है ॥
२ 'माया, संस्कारहीनः । भा० दी० । २ धु), 'यथोचित समयपर यज्ञोपवीत संस्कारसे होन द्विजाति (ब्रह्मा, क्षत्रिय और वैश्य) के २ नास हैं ॥ ब्राह्मण क्षत्रा तश वैश्वका गधामसे क्रमशः १६, १२ और २४ वर्षको अवस्थातक यज्ञोपवीत नहीं होने पर उन्हें 'वात्य' कहते हैं)॥
३ अस्वाध्यायः (भा. दी.), निराकृतिः (२ पु), 'वेदको नहीं पढ़नेशले' के २ नाम हैं । ( 'व्रात्यः,....... ४ नाम एकार्थक हैं, यह भी कई एक आचानका मत है)।
४ धर्मध्वजी ( = धर्मध्वजिन ), लिङ्गवृत्तिः (२ पु), 'भिक्षा आदि मिलनेके लिये जटा भस्मादि धारणकर झूठा साधु बनने के नाम हैं ।
५ अक्कीई ( = अवकोणिन् ), क्षतवतः(भा० दो० । २ पु), 'नियमसे चलनेवाला ब्रह्मचर्यादि व्रत जिसका बोच ही में भग्न हो गया हो उस ब्रह्मचारी आदि ब्रती' के २ भाम हैं । .६ अभिनिर्मुक्तः, अभ्युदितः (पु), 'जिसके सोते रहनेपर सूर्योदय हो और जिसके सोते रहने पर सूर्यास्त हो उसका क्रमशः १-१ नाम है ॥
७ परिवेत्ता (% परिवेत्त, पु), 'बड़े भाई के अविवाहित (बिना ब्याह किये हुए) रहनेपर विवाहित (व्याह किये हुए ) छोटे भाई' का नाम है।
१. व्रात्यलक्षणमाइ मनुस्तद्यथा---
'भाषोडशाबाह्मणस्य सावित्री नातिवर्तते । भावाविंशात्क्षत्रबन्धोराचतुर्विशतेविंशः॥१॥ अत अवं प्रयोऽप्येते यथाकालमसंस्कृताः। सावित्रीपतितावास्या भवन्त्यायविहिताः ॥२॥ इति मनुः ११३८-१९
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