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मनुष्यवर्गः ६ ]
-१ केशमध्ये तु गर्भकः ।
२ प्रभ्रष्टकं शिखालम्वि ३ पुरोभ्यस्तं ललामकम् ॥ १३५ ॥ ४ प्रालम्बमृजुतम्बि स्यात् ५ कण्ठाद्वैकक्षिकं तु तत् । यतिर्यक्क्षप्त मुरसि ६ शिखास्वापीडशेखरौ ॥ १३६ ॥ रचना 'स्यात्परिस्यन्द ८ आभोगः परिपूर्णता । उपधानं तूपबर्हः १० शय्यायां शयनीयवत् ॥ १३७ ॥ शयनं ११ मञ्च पर्यङ्कपल्यङ्काः खट्वया समाः ।
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मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
'मालामात्र' के भी ये ३ नाम हैं' ) ॥
१ गर्भकः (पु), 'केशके बीच में लगायी हुई माला' का १ नाम है ॥ २ भ्रष्टकम् ( न ), 'शिखा या चोटीसे लटकती हुई माला' का १ नाम है ॥
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३ ललामकम् ( न ), 'ललाटपर धारण की हुई माला, मुण्डमाला' का १ नाम है ॥
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४ प्राम्बम् (न), 'गले में सीधे लटकती हुई माला' का १ नाम है ५ वैकचिकम् ( न ), 'जनेऊकी तरह तिर्डी पहनी हुई माला' का ● नाम है ॥
६ आपीडः, शेखरः (१ पु), 'शिखा में रखी हुई माला' के २ नाम हैं ॥ ७ रचना (स्त्री), परिस्यन्दः ( + परिस्पन्दः । पु ), 'माता आदि को बनाने ( गूथने ) के २ नाम हैं
८ आभोगः (पु), परिपूर्णता (स्त्री), 'सेवा-शुश्रूषा आदि सब प्रकारके उपचारोंसे परिपूर्ण होने' के २ नाम हैं ॥
९ उपधानम् (न), उपबर्हः (पु), 'तकिया' के २ नाम हैं ॥
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१० शय्या स्त्री ), शयनीयम्, शयनम् (२ न ), के १ नाम हैं । ( 'भा० दी० मतसे 'तोसक आदि' के ये
' शय्या, बिछौना ' ३ नाम है' ) ॥
११ मनः, पर्यङ्कः, पश्यङ्कः ( ३ पु ), खट्वा (स्त्री), पलंग, खटिआ आदि' के ४ नाम हैं । ( किसी २ के मत से 'भञ्च' यह १ नाम ' मचान या
१. 'स्यारपरिस्पन्दः' इति पाठान्तरम् ॥
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