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________________ मनुष्यवर्ग:६] मणिप्रभाव्याख्यासहितः २०३ १ ऊर्ध्वक्षुरूर्वजानुः स्यात् २ संज्ञः संहतजानुकः ॥४७॥ ३ स्यादेडे बधिरः ४ कुम्जे गडुलः ५ कुकरे कुणिः। ६ पृश्निरल्पतनौ७ श्रोणः पलो ८ मुण्डस्तु मुण्डिते ॥ ४८ ।। ९ वलिरः केकरे १० स्खोडे खञ्ज११स्त्रिषु जराऽघराः । १२ जडुलः कालकः पिप्लुः १ ऊर्ध्वजुः ( + ऊध्वज्ञः' ), उर्ध्वजानुः (२ त्रि), 'बैठनेपर जिसकी जङ्घा ऊपरको उठी रहती हो उस' के २ नाम हैं ॥ २ संजुः ( + संज्ञः२), संहतजानुकः ( २ त्रि), 'सटे हुए जङ्घा वाले' के २ नाम हैं। ३ एडः, बधिरः ( २ त्रि), 'बहरा' के २ नाम हैं। ४ कुब्जः ( + न्युजः ), गहुल: ( + गहुः । २ त्रि), 'कृबड़ा' के २ नाम हैं। ५ कुकरः, कुणिः ( + कूणिः । २ त्रि), 'टेढ़े हाथवाले' के २ नाम हैं , ६ पृश्निः ( + पृणिः ), अरूपतनुः (२ त्रि) छोटे शरीरवाले, नाटा' के २ नाम हैं ॥ ७ श्रोणः, पङ्गुः (२ त्रि), 'पङ्ग' के २ नाम है ॥ ८ मुण्डः, मुण्डितः (२ त्रि), 'मुण्डन कराये हुये के २ नाम हैं । ९ वलिः (+ बलिः ), कंकरः ( + काचरः, कावरः। २ त्रि), 'पंचकर देखनेवाले' अर्थात् 'एक भौंको ऊचा और एक भौं को नीचाकर देखनेवाले' के १ नाम हैं॥ १. खोडः (+खोला, खोरः), खाः (२ त्रि), 'लँगड़ा' के २ नाम हैं। ११ 'जरा' (२।६।४) शब्दके बाद से यहाँतक सब शब्द त्रिलिङ्ग हैं। ('उन में ग्रन्धकार के कथनानुसार सब शब्दोंको प्रायः पुंल्लिङ्ग में देकर लिङ्गनिर्देश में त्रिलिङ्ग लिखा गया है, अतः स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्गके रूपको स्वयं समझ लेना चाहिये')॥ १२ जडुलः (+ जटुलः ), कालकः, पिप्लुः ( ३ पु), 'लहसन' अर्थात् 'जन्म-काल से ही उत्पन्न शरीरके चित-विशेष' के ३ नाम हैं। १-२. अत्र मा० दो०-- 'संजुः संहतजानौ च भवेत्संञ्चोऽपि तत्र हि । अवंजुरूवंजानुः स्यादूर्वज्ञोऽप्यूर्वजानुके' ॥ १ ॥ इति साहसाङ्कः, इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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