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मनुष्यवर्गः ६] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१६३ १ असिफ्नी स्यादवृद्धा या प्रेष्याऽन्तःपुरचारिणी ॥ १८ ॥ २ वारस्त्रीगणिका 'वेश्या रूपाजीवा३ऽथ साजनैः ।
सत्कृता वारमुख्या स्यात् ४ कुट्टनी शम्भलीसमे ॥ १९ ॥ विप्रश्निका स्वीक्षणिका दैवाऽथ रजस्वला।
स्त्रीधर्मिण्यविरात्रेयी मलिनी पुष्पवत्यपि ॥२०॥
ऋतुमत्यप्युदक्यापि ७ स्याद्रजः पुष्पमार्तवम् । हो और केश झाड़ना-गुथना आदि शिल्पकार्य करती हो उस स्त्री का १ नाम है । (जैले-राजा विराट के यहां अज्ञातवास करती हुई द्रौपदी सरन्ध्री का कार्य करती थी)।
असिवनी (स्त्री) 'जो वृद्धा नहीं हो, आज्ञा पाकर कहीं आया जाया करे और रनिवासमें रहे उस स्त्री का नाम है ॥
२ वारस्त्री, गणिका, वेश्या ( + वेष्या), रूपाजीवा ( + एण्यखी, पणत्री। ४ स्त्रो), 'वेश्या' के ४ नाम हैं।
३ वारमुख्या (स्त्री), 'सौन्दर्य और गान आदि से बड़े लोगोंके द्वारा प्रतिष्ठा पानेवाली वेश्या' का नाम है ॥
४ कुट्टनी, शम्भली ( + सम्भली । २ स्त्री), 'कुटिनी' के २ नाम हैं।
५ विप्रश्निका, ईवणिका, दैवज्ञा (३ स्त्री), 'हाथ-पैर आदिकी रेखाओं को देखकर शुभाशुभ लक्षणों को जानने या कहनेवाली स्त्री' के नाम हैं।
६ रजस्वला, स्त्रीधर्मिणी, अविः ( + अवी ), प्रात्रेयी, मलिनी, पुष्पवती (+पुष्पिता), ऋतुमती, क्या (८ स्त्री) 'रजस्वला स्त्री' के ८ नाम हैं।
७ रजः (= र जस), पुष्पम् , आर्तवम् (३ न), 'स्त्रियोंके रज' के नाम हैं। १. 'वेण्या' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'स्त्रीधर्मिण्यपि चात्रेयी मलिनी पुष्पवस्यपि' इति स्वा० पाठः। 'अवितस्ततन्त्रिभ्य ई' ( उ० सू० ३३१५८ ) इति ईप्रत्ययेन सिद्धयुक्तस्तदग्रे च 'अविं स्त्रीधर्मिणी विद्यात्' इति कास्यात् 'सर्वधातुभ्य इन्' ( उ० सू० ४.११८ ) इति इन्प्रत्यये हस्वान्ताऽपि अविः इति मानुजितीक्षितेन स्वयमुक्तत्वान्मूले 'स्त्रोधर्मिण्यविरात्रेयी' इति हस्वान्त 'अवि' शब्दपाठ: संशोधकप्रमादज एव । व्याख्यातुदीर्वान्तस्यैव 'अवि' शब्दस्य प्रथमं साधिरवेन तत्रैव स्वास्थाप्रदर्शनात् ॥
३. असिक्नी स्यादवृद्धा या प्रेष्याऽन्तःपुरयोषिता' इति मुनिः॥
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