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शब्द में भी + ऐसे निशान कर दिये गये हैं, जिससे ग्रन्थको उपयोगिता अधिक बढ़ गयी है । शीघ्रता आदिके कारण जो बातें छुट गयी थी, उनकी पूर्ति परिशिष्ट में की गयी है । यद्यपि परिशिष्ट में और भी अधिक बातोंको देनेका विचार था, किन्तु ग्रन्थाकारके बहुत बढ़ जाने से वह विचार छोड़ देना पड़ा । मूल शब्दों की सूची के अतिरिक्त बाहरी समानाकार शब्दोंकी तथा क्षेपक श्लोकों में आए हुए शब्दोंकी सूची भी साथ में दी गयी है, जो अन्यत्र किसी अमर कोष में नहीं पायी जाती। इस प्रकार इस ग्रन्थको यथासाध्य सर्वावश्यकीय विषयोंसे परिपूर्ण बनानेकी भरपूर चेष्टा की गयी है ।
आभारप्रदर्शन
इस भूमिकाको पूरा करने के पहले उन महानुभावोंका मैं अतिशय आभारी हूँ, जिन्होंने इस टीकाके निर्माण करने में किसी तरह भी सहायता पहुँचायी है । उनमें सर्वप्रथम जिन प्रन्थोंसे इस टीकाकी रचना में सहायता की गयी है, सन प्रन्थकारोंके प्रति आभारप्रदर्शन पूर्वक कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूँ ।
सम्मतिदाता
१ पूज्यपाद म० म० पं० श्री १०८ गोपीनाथ कविराजजी, प्रिंसिपल गवर्नमेण्ट सं० कालेज, बनारस - आपने अनेक प्रन्थोंका नाम तथा प्रकरणादिका निर्देशकर टिप्पणी और परिशिष्ट बनाने में मुझे बहुत सहायता पहुंचायी ।
२ पूज्यपाद दार्शनिक सार्वभौम दर्शन साहित्याचार्य श्री १०८ गोस्वामी दामोदरलालजी शास्त्री - आपको आदिष्ट शैलीद्वारा इस टीकाकी रचना हुई, तथा आपसे अन्य भी अनेक सम्मतियाँ मिलीं ।
३ पू० पा० गवर्नमेण्ट सं० कालेज के प्रोफेसर व्याकरणाचार्य श्री गोपालशास्त्रीजी नेने आपने द्वितीयकाण्ड तक इस टीकाका : प्रूफ देखा, तथा अन्यान्य अमूल्य सम्मतियाँ प्रदान की ।
४ पं० नारायणदत्तजी त्रिपाठी मारवाड़ी सं. कालेज के प्रधानाध्यापक, व्याकरणाचार्य पोष्टाचार्य स्वर्णपदकप्राप्त
५ पू० पा० पं० वंशीधर मिश्रजी आरामण्डलान्तर्गत गिरिधरबरांव निवासी उयोतिषाचार्य, पोटाचार्य तथा ज्यौतिषतीर्थ
२ अ० भू०
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