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अमरकोषः । [द्वितीयकाण्डे -
-१ हरीतक्यादयः स्त्रियाम् । २ आश्वत्थवैणवालाक्षनयनोधैगुदं फले ॥१८॥
बार्हतं च ३ फले जम्वा जम्बूः स्त्री जम्वु जाम्बवम् । ४ पुरु जातीप्रभृतयः स्वलिका ५ वीहयः फले ॥ १९ ॥ हीन' इस शब्द से अब विशेषतया लिङ्गनिर्देश करते हैं। भागे कहे जानेवाले पेद, लता और औषधके वाचक शब्द यदि फूल, फल, जड़ और पत्तेके वाचक हों तो वे नपुंसकलिङ्गमें प्रयुक्त होते हैं । ( 'जैसे-'चम्पकम्, आनम्, सूरणम्' ये तीन शब्द क्रमशः 'चम्पा फूल, आमके फल और सूरनकी जड़' इन अर्थो में प्रयुक्त होनेसे नपुंसकलिङ्ग हुए हैं)॥
('हरीतक्यादयः' इस शब्दसे उक्त लिङ्गका बाधक वचन कह रहे हैं। ) फल मादि अर्थमें प्रयुक्त होनेपर भी 'हरीतकी, कर्कटी' आदि शब्द स्त्रीलिङ्ग ही रह जाते हैं अर्थात् नपुंसकलिङ्ग नहीं होते। ('जैसे-'हरीतकी, कर्कटी, द्राक्षा, बदरी' आदि शब्द क्रमशः 'हरे, ककड़ी, दाख और बैरके फल' इस अर्थमें प्रयुक्त होने पर भी पूर्ववत् स्त्रीलिङ्ग ही हैं, नपुंसकलिङ्ग नहीं हुए हैं। )
२ आश्वस्थम्, वैणवम्, प्लाक्षम्, नैयग्रोधम, ऐङ्गुदम्, वाहतम् (न), 'पीपल, बाँस, पाकड़, वट, रङ्गदी और भटकटैयाके फल' के क्रमशः 1-1 नाम हैं।
३ जम्बूः (सी), जम्बु, जाम्बवम् (२ न), 'जामुनके फल' के ३ नाम हैं।
४ जाती (स्त्री)प्रभृति ( 'प्रभृति' शब्दसे 'यूथिका, मलिका, .....' , शब्दके पुष्प अर्थमें प्रयुक्त होनेपर पूर्ववत् लिङ्ग रहते हैं अर्थात् उनका नपुंसकलिङ्ग नहीं होता। जैसे-'जातो, यूथिका, मल्लिका, ....... ( ३ स्त्री), शब्द पहले लतार्थक रहनेपर स्त्रीलिङ्ग होनेसे पुष्पार्थक होने पर भी स्त्रीलिङ्ग ही रहते हैं)॥
५व्रीहिः (पु), आदि ('आदि' शब्दमे 'यवः, मुद्गः, माषः, प्रियङ्गुः, गोधूमः, चणका, ....... ) शब्दके फल अर्थ में प्रयुक्त होने पर पूर्ववत् लिङ्ग रहता है अर्थात् नपुंसकलिज नहीं होता। ('जैसे-'व्रीहिः, यवः, मुगः, माषः, प्रियुल .... (५ पु), शब्द पहले पोषध्यर्थक रहने पर पुखिक होनेसे अब फलार्थक होनेपर भी पुंलिज ही रह गये हैं, नपुंसकलिङ्ग नहीं हुए हैं')॥
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