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अमरकोषः
१ वेशन्तः पल्वलं चाल्पसरो २ वापो तु दीर्घिका ॥ २८ ॥ ३ खेयं तु परिखारम्भसां यत्र धारणम् । ५ स्यादालवालमावालमावापोऽ६ध नदी सरित् ।। २९ ।। तरङ्गिणी शैवलिनी तटिनी 'हादिनी घुनी ।
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'स्रोतस्वती द्वीपवती स्त्रवन्ती निम्नगाऽऽपगा ॥ ३० ॥ ७ 'कूलङ्कषा निर्झरिणी धावका सरस्वती' (५८) ८ गङ्गा विष्णुपदी जहतनया सुरनिम्नगा ।
भागीरथी त्रिपथगा त्रिस्राता भोग्नसूरपि ॥ ३१ ॥
के खुदवाये हुए कपल उत्पन्न होनेवाले तालाब आदि' के मा० दो० मत से) ३ नाम हैं । ('पद्माकरः' 'सरः' 'कमल उत्पन्न होनेवाले जलाशय
मात्र' के नाम हैं, यह महे० का मत है' ) ॥
वेशन्तः (पु), पल्वलम् अश्वनरः (
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[ प्रथमकाण्डे
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छोटे छोटे गढे' के ३ नाम हैं ॥
२ वापी (+ वापिः ), दर्घिका ( २ स्त्रो ), 'बावलो' के १ नाम हैं ॥ ३ खेमू (न), परिखा (स्त्री), 'कित्ते मादिके चारो आरको खाई' के २ नाम हैं |
४ आधारः (पु), 'पानोके बाँध' का १ नाम है ॥
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५ आलवालम् ( + अलवालम् ), आवालम् ( १ न ), आवापः ( पु ), 'थाला' अर्थात् 'गांड़ी या पौधे को सींचने के लिये उनके जड़ में मिट्टी आदिले बनाये हुए घेरे' के ३ नाम हैं ॥
६ नदो, सरित्, तरङ्गिणी, शैइलिनी, तटिनी, हादिनो ( + ह्रदिनी ), धुनी, स्रातस्वती ( + स्रोतस्विनी), द्वीपवती, स्रवन्तो, निम्नगा, आपगा ( + अपगा । १२ स्त्री ), 'नदी' के १२ नाम हैं ॥
७ [ कूलकुवा, निर्झरिणी, रोधोवका, सरस्वती ४ स्त्री ), 'नदी' के ४ नाम हैं ] ॥
८ गङ्गा, विष्णुपदी, जहुतनया ( + जाह्नत्री ), सुरनिम्नगा, भागोस्थी,
'इदिनी
......." इति पाठान्तरम् ॥
अश्रसरस् । २ न ), 'पानीके
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" इति पाठान्तरम् ॥ २. 'स्रोतस्विनी'
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