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________________ [ १० ] (भनेक अर्थवाले ) शब्दोंके सुसंग्रहसे परिपूर्ण होता हुआ भी लिङ्गनिर्देशसे अलस्कृत एवं आबालबोध्य पथमय निबद्ध हो । यदि कोई ऐसा कोष है तो 'अमरकोष' ही है। इसके विषयमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि अन्य कोषों में जो न्यूनता या दोष थे, उन सबोंका यथावत् परिमार्जन करते हुए अमरसिंहने बालकोंके भी सुलभतया कण्ठस्थ करने योग्य सरल श्लोकों में इस 'अमरकोष'की रचनाकर संसारका बहुत बड़ा उपकार किया। अमरसिंहका समय विवेचन इनके समय के विषयमें अनेक मत हैं । कोई तो इनको'धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशङ्कुवेतालभट्टघटखपरकालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि चै वररुचि व विक्रमस्य' ॥ इस श्लोकके आधारपर "विक्रम' नृपति के नवरत्नों में से कहते हैं। तथा कोई कोई 'इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्नापिशली शाकटायनः । पाणिन्यमरजैनेन्द्रा भवत्यष्टौ हि शाब्दिकाः ॥ इस श्लोक के आधारपर 'पाणिनि' और 'जैन' अर्थात् समन्तभद्र के मध्य कालमें ये हुए थे, ऐसा कहते हैं, किन्तु पाणिनिविरचित अष्टाध्यायी के भाष्य. कार भगवान् पतञ्जलि के समकालीन 'चान्द्रव्याकरण' कर्ता आचार्य 'चन्द्र'का नाम उक्त श्लोकमें पाणिनिके पहले बानेसे उक्त श्लाकमें क्रम अपेक्षित नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है। अन्य लोग इनको इस्वीय सन् छठी शताब्दी के बतलाते हैं। जो कुछ हो 'स्वर्गवर्ग में देवताओं के पर्यायोंको कहने के बाद इन्होंने भगवान् 'बुद्ध' के पर्यायवाचक शब्दों को कहा है, अतः ये 'अमरसिंह' बौद्धमतावलम्बी थे, यह प्रायः सभी विद्वानोंका मत है। ___ शोलापुर निवासी स्व० सेठ रावजी सखाराम दोशी महोदय ने अमरकोषसम्बन्धी एक ट्रैक्ट प्रकाशित किया है, उसकी भूमिका भनेक युक्तियों से उन्होंने प्रमाणित किया है कि अमरकोषकार अमरसिंह बौद्ध नहीं, किन्तु जैनी था। अपने कथन के प्रमाणमें दोशी महोदयका कहना है कि वर्तमानमें उपलभ्यमान अमरकोषमें लगभग एक सौ श्लोक छूट गये हैं या जान-बूझकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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