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अमरकोषः
[ प्रथमकाण्डे
कुसृतिनिंकृतिः शाठयं १ प्रमादोऽनवधानता ॥ ३० ॥ २ कौतूहलं कौतुकं च कुतुकं च कुतूहलम् ।
३ स्त्रीणां विलासविग्वोकविभ्रमा ललितं तथा ॥ ३१ ॥ हेला लोलेत्यमी हावाः क्रियाः शृङ्गारभावजाः ।
कैतवम्, कुसृतिः, निकृतिः, ( २ स्त्री ), शाठ्यम् ( + शठनम् । शेष ३ न ), 'धूर्तता, कपट, दगाबाज़ी' के ९ नाम हैं ॥
१ प्रमादः (पु), अनवधानता ( स्त्री ), 'अलावधानी' के २ नाम हैं ॥ २ कौतूहलम्, कौतुकम् कुतुकम् कुतूहलम् ( ४ न ), 'कौतूहल' अर्थात् 'खेल, तमाशा, जादू, के ४ नाम हैं ॥
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१०,
३ विलासः, विश्वोकः, विभ्रमः ( ३ ), लहितम् ( न ), हेला, लीला (२ स्त्री), ये ६ 'स्त्रियों के शृङ्गार, भाव अर्थात् रत्यादि और मनोविकारसे उत्पन्न क्रियाविशेष' हैं, इनका 'हाव:' (पु) 'हाव' यह १ नाम है । ('नाटकरस्नकोष' में 'लीला १, विलास २, विच्छित्ति ३, विभ्रम ४, किलकिञ्चित५, मोट्टायित ६, कुछमित ७, विश्वोक ८, ललित ९ और विहृत १० ये १० स्त्रियों की स्वभावज क्रियाएँ हैं, यह कहा है ' | साहित्यदर्पण' में 'भाव १, हाव २, हेला ३, शोभा ४, कान्ति ५, दीप्ति ६, माधुर्य ७, प्रगमता ८, औदार्य ९, धैर्य लीला ११, विलास १२, विच्छित्ति १३, विश्वोक १४, किलकिञ्चित १५, मोहायित १६, कुट्टमित १७, विभ्रम १८, ललित १९, मद २०, विहृत २१, तपन २२, - मौग्ध्य २३, विक्षेप २४, कुतूहल २५, हसित २६, चकित २७, और केलि २८, ये २८ जवानीमै स्त्रियों के साविक भाव से उत्पन्न अलङ्कार होते हैं, ऐसा कहा है; उनमें 'भाव' आदि ३ 'आङ्गिक अलङ्कार' है, 'शोभा' आदि ७ विना यख के उत्पन्न अलङ्कार, हैं और 'लीला' आदि १८ 'स्वभावज अलङ्कार' हैं। पूर्वोक २८ अलङ्कारों में 'भाव' आदि १० अलङ्कार पुरुषों के भी हो सकते हैं, किन्तु स्त्रियों में हो इन को
१. तदुक्तं नाटकररनकोषे
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'लीका बिकासो विच्छित्तिर्विभ्रमः किलकिश्चितम् । मोट्टायितं कुट्टमितं विव्योको रूढितं तथा ॥ १ ॥ विहृतं चेति मन्तव्या दश स्त्रीणां स्वभावजाः ॥ इति ॥
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