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अमरकोषः।
[प्रथमकाण्डे१ मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा ब्रोडा लजा २ साऽपत्रपाऽन्यतः ॥ २३॥ ३ क्षान्तिस्तितिक्षाऽभिध्या तु 'परस्य विषये स्पृहा । ५ अक्षान्दिरी६िऽसूया तु दोषारोपो गुणेष्वपि ।। २४ ॥ ७ वैरं विरोधो विद्वेषो ८ मन्युशोको तु शुक्लियाम् । ९ पश्चात्तापाऽनुतापश्च विप्रतीसार इत्यपि ।। २५ ॥
१ मन्दाक्षम (+मन्दास्यम् । न), हीः, पा, वीडा ( + वीडः, पु), लज्जा ( ४ स्त्री), 'लज्जा ' के ५ नाम हैं।
२ अपनपा (स्त्री), 'पिता आदि दूसरेसे लज्जा करने का । नाम है ॥
३ शान्तिः, तितिक्षा (२ स्त्री), 'दूसरेकी उन्नतिको सहन करने' के २ नाम हैं।
४ अभिध्या (स्त्री), 'दुसरेकी सम्पत्ति आदिको चाहने' का , नाम है ॥ ___५ अक्षान्तिः, ईर्ष्या (२ स्त्री), 'ईया' अर्थात् 'दूसरे की सम्पत्ति को नहीं सहने के २ नाम हैं।
६ असूया (स्वी ), 'औद्धत्यसे किसीके गुण-विषयक काममें भी दोष निकालने' का १ नाम है। ('जैसे-किसीके दमाई होकर पुण्य करनेपर 'यह नाम के लिये पुण्य करता है। इस्यादि दोष निकालनेको “असूया' कहते हैं')॥
७ वैरम. (ब), विरोधः, विद्वेषः (१), 'वैर करने के ३ नाम हैं ॥ ८ मन्युः, शोकः ( २ पु), शुक् (= शुच्, स्नी), 'शोक' के ३ नाम हैं।
९ पश्चात्तापः, भनुतापः, विप्रतीसारः ( +विप्रतिसारः । ३ पु), 'पछ. ताने के ३ नाम हैं ।
१............परस्य विषये स्पृहा' इति पाठान्तरम् ॥ २. तदुक्तम्-'असूयाऽन्यगुणीनामौद्धत्यादसहिष्णुता ।
दोषोद्धोषभूविभेदाऽवचाक्रोधेजितादिकृत्' ।। १ ।। इति सा० द० ३।१६६॥
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