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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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यासां च दलिकं चरमसमये स्वविपाकेन वेदयते ताः उदयवत्यः।
(कप्र पृ ४५) उदयसंक्रमोत्कृष्टा वह कर्म-प्रकृति, जिसकी स्थिति बंधकाल में अल्पकालिक होती है, किन्तु विपाकोदय-काल में संक्रमण के द्वारा अन्य दलिकों का प्रक्षेप होने पर उत्कृष्ट बन जाती है। यासां विपाकोदये प्रवर्त्तमाने संक्रमत उत्कृष्टं स्थितिसत्कर्म लभ्यते, न बन्धतः, ताः उदयसंक्रमोत्कृष्टाः।
(कप्र पृ४४)
निरंतर न किया जाए। भागपात: सान्तरदानं वा उद्घातः, स विद्यते येषु ते उद्घातिकाः तविपरीता अनुद्घातिकाः। (क ४.१ वृ) लघुकमिति वा उद्घातितमिति वा शुक्लमिति वा लघुकस्य नामानि।
(बृभा २९९ वृ) (द्र अनुद्घातिक) उद्घातिकारोपणा आरोपणा प्रायश्चित्त का एक प्रकार । जिस प्रायश्चित्त में भाग किया जाता है, वह उद्घातिक आरोपणा है। सार्द्धदिनद्वयस्य पक्षस्य चोपघातनेन लघनां मासादीनां प्राचीनप्रायश्चित्ते आरोपणा उद्घातिकारोपणा।
(सम २८.१.२५ वृ प ४६) (द्र आरोपणा प्रायश्चित्त) उद्दिष्टवर्जन प्रतिमा उपासकप्रतिमा का दसवां प्रकार, जिसमें प्रतिमाधारी अपने लिए बने हए भोजन को ग्रहण नहीं करता। दसमा दस मासे पुण उद्दिट्ठकयं पि भत्त नवि भुंजे।
(प्रसा ९९१)
उदाहरण
दृष्टांत का कथन करना। दृष्टान्तवचनमुदाहरणम्।
(प्रमी २.१.१३)
उदीरणा कर्मकरण का एक प्रकार। निश्चित समय से पहले कर्मों का उदय, जो अपवर्तनासापेक्ष है। नियतकालात् प्राक् उदयः उदीरणा, इयं चापवर्तनापेक्षिणी
(जैसिदी ४.५ वृ) उदीरणावलिका प्राप्त कर्मद्रव्य की वह पंक्ति, जिसकी रचना उदीरणाकरण के द्वारा होती है। उदीरणा के द्वारा उदीरणावलिकाप्राप्त किन्तु जो अभी उदय में नहीं आया है। उदीरणाकरणेनाकृष्योदीरणावलिकां प्राप्ता यावदद्याप्युदयं न गच्छन्ति।
(विभा २९६२ वृ)
उद्देश
उदीर्ण जो कर्म निश्चित समय से पूर्व प्रयत्न द्वारा उदयावलिका में प्रविष्ट किया गया है, उदीरित किया गया है। उदीर्णस्य-उदयप्राप्तस्य""उदीरितस्य-उदयमुपनीतस्य।
(प्रज्ञा २३.१९ वृ प ४६०) उद्गम दोष आहार आदि की उत्पत्ति में गृहस्थ के द्वारा लगने वाले दोष। (द्र उत्पादन दोष) उद्घातिक प्रायश्चित्त का एक प्रकार । लघु प्रायश्चित्त, जिसका वहन
प्राचीन अध्ययनपद्धति का प्रथम चरण । गुरु के द्वारा दी जाने वाली पढ़ने की आज्ञा, जिसमें अध्ययन आदि के नाममात्र का कथन किया जाता है। सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणण्णा अणुओगो य पवत्तड़॥ मध्ययनादि त्वया पठितव्यमिति गुरुवचनविशेष उद्देशः।
(अनु ३ मवृ प ३) नामधेयमात्रकीर्तनमुद्देशः। (प्रमी १.१.१ वृ) उद्देशक एक दिन की वाचना, परिच्छेद, विभाग। (अनु ५७१) उद्देशनाचार्य पढ़ने की आज्ञा देने वाले आचार्य। (स्था ४.४२३) (द्र श्रुतोद्देष्टा) उद्धार पल्योपम असंख्य वर्षों का काल-खण्ड। उद्धार पल्योपम के दो प्रकार
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