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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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विषयों का ग्रहण होता है। इन्द्र आत्मा, तस्य कर्ममलीमसस्य स्वयमर्थान् ग्रहीतुमसमर्थस्याऽर्थोपलम्भने यल्लिङ्गं तदिन्द्रियमित्युच्यते।
(तवा १.१४.१)
पांच प्रकार हैं--श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष, स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष। वस्तुतः यह परोक्ष ज्ञान है। इंदियं ति-पुग्गलेहिं संठाणणिव्वत्तिरूवं दव्विंदियं, सोइंदियमादिइंदियाणं सव्वातप्पदेसेहिं स्वावरणक्खतोवसमातो जा लद्धी तं भाविंदियं, तस्स पच्चक्खं ति इंदियपच्चक्खं। ""परमत्थओ पुण चिंतमाणं एतं परोक्खं।
(नन्दी ५ चू पृ १४) इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-सोइंदियपच्चक्खं चक्खिदियपच्चक्खं घाणिंदियपच्चक्खं जिभिदियपच्चक्खं फासिंदियपच्चक्खं।
(नन्दी ५)
इन्द्रिययमनीय इंद्रियों को वश में करना। इंदियजवणिज्जे-जं मे सोइंदिय-चक्खिंदिय-धाणिदियजिभिदिय-फासिंदियाई निरुवहयाई वसे वÈति, सेत्तं इंदियजवणिज्जे।
(भग १८.२०९)
इन्द्रियदम
(दअचू पृ ९३) (द्र इन्द्रियप्रतिसंलीनता) इन्द्रियनिरोध इन्द्रियों के अपने-अपने इष्ट और अनिष्ट विषयों के प्रति राग और द्वेष की वर्जना। 'इंदियनिरोहो'त्ति इन्द्रियाणि-स्पर्शनादीनि तेषां निरोधः इन्द्रियनिरोधः आत्मीयात्मीयेष्टानिष्टविषयरागद्वेषाभावः।
(ओनिवृ प १३) इन्द्रियपर्याप्ति छह पर्याप्तियों में तीसरी पर्याप्ति । इन्द्रिय के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, परिणमन और उत्सर्जन करने वाली पौद्गलिक शक्ति की भवारंभ में होनेवाली संरचना। पंचण्हमिंदियाणं जोग्गा पोग्गला चियित्तु अणाभोगनिव्वत्तितविरियकरणेण तब्भावणयणसत्ती इंदियपज्जत्ती।
(नन्दीचू पृ २२) इन्द्रियप्रतिसंलीनता प्रतिसंलीनता का एक प्रकार। विषय के प्रति होने वाले इन्द्रिय-व्यापार का निरोध, इन्द्रिय द्वारा प्राप्त विषयों में रागद्वेष का निग्रह। सोइंदियविसयप्पयारनिरोहो वा सोइंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, चक्खिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा चक्खिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, घाणिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा घाणिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, जिब्भिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा जिब्भिंदियविसयपत्तेस अत्थेस रागदोसनिग्गहो वा. फासिंदियविसयप्पयारनिरोहो वा, फासिंदियविसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोसनिग्गहो वा, से तं इंदियपडिसंलीणया।
(औप ३७) इन्द्रियप्रत्यक्ष इन्द्रिय की सहायता से होने वाला पदार्थ का ज्ञान। इसके
इन्द्रियार्थविकोपन इन्द्रियों के विषयों के प्रति अत्यधिक आसक्ति का भाव, कामविकार। इन्द्रियार्थानां-शब्दादिविषयाणां विकोपनं-विपाकः इन्द्रि-यार्थविकोपनं कामविकार इत्यर्थः ।
(स्था ९.१३ वृ प ४२३)
इन्द्रियालोकवर्जन ब्रह्मचर्य महाव्रत की एक भावना। स्त्रियों के अङ्ग-प्रत्यङ्गों के अवलोकन का वर्जन। मनोहराणि मानोन्मानलक्षणयुक्तानि दर्शनीयानि मजावन्तीन्द्रियाणि"तदालोकनाद्यपरतिः श्रेयसीति भावयेत्।
(तभा ७.३ ७)
इहलोकभय भय का एक प्रकार । सजातीय से होने वाला भय, जैसेमनुष्य को मनुष्य से होने वाला भय। मनुष्यादिकस्य सजातीयादन्यस्मान्मनुष्यादेरेव सकाशाद्यद्भयं तदिहलोकभयम्। (स्था ७.२७ वृ प ३६९) इहलोकाशंसाप्रयोग मारणान्तिक संलेखना का एक अतिचार। मनष्य-जीवन में
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