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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश आजीविक आज्ञाविचय भगवान महावीर के समय का एक सुप्रसिद्ध श्रमण-सम्प्रदाय, धर्म्यध्यान का एक प्रकार। अतीन्द्रिय तत्त्व (आज्ञा) को ध्येय जिसका सिद्धांत था नियतिवाद। मंखलिपत्र गोशालक बनाकर उसमें होने वाली एकाग्रता। आजीविक सम्प्रदाय के धर्माचार्य थे। तत्राज्ञा-सर्वज्ञप्रणीत आगमः।तामाज्ञामित्थं विचिनुयात्'आजीविका: ' गोशालकशिष्याः। (भग ८.२३० ७) पर्यालोचयेत् "इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा । णासी" इत्यादि वचनात्। (तभा ९.३७ वृ) पुरिसक्कारपरक्कमे इवा, नियता सव्वभावा। आज्ञा व्यवहार (उपा ७.२४) व्यवहार का एक प्रकार। देशान्तर में स्थित गीतार्थ से विधिआज्ञा निषेध तथा प्रायश्चित्त का निर्णय प्राप्त करना। हित की प्राप्ति और अहित के परिहार के लिए दिया जाने यदगीतार्थस्य पुरतो गूढार्थपदैर्देशान्तरस्थगीतार्थनिवेदनायावाला सर्वज्ञ का उपदेश, आगम। तिचारालोचनमितरस्यापि तथैव शुद्धिदानं साऽऽज्ञा। आज्ञाप्यते इत्याज्ञा-हिताहितप्राप्तिपरिहाररूपतया सर्वज्ञो (स्था ५.१२४ वृ प ३०२) पदेशः। (आ ६.४९ वृप १०२) आतङ्कदर्शी आज्ञापनिका क्रिया जो हिंसा करने में स्वयं का अहित देखता है, आतंकक्रिया का एक प्रकार। आज्ञा देने से होने वाली क्रिया। शारीरिक या मानसिक दुःख देखता है। आज्ञापनस्य-आदेशनस्येयमाज्ञापनमेव वेत्याज्ञापनी सैवा आतङ्कः-शारीरं मानसं वा दुःखम्। यो हिंसाकरणे आतङ्क ज्ञापनिका। (स्था २.२९ वृ प ३९) पश्यति स आतङ्कदर्शी सहजमेव हिंसातो विरमति। आज्ञापनी (आभा १.१४६) असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार। आदेश-निर्देश आतपनाम के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा, जैसे--अमुक काम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव के अनुष्ण करो। शरीर से भी उष्ण प्रकाश-रश्मियां निकलती हैं। आज्ञापनी-कार्ये परस्य प्रवर्त्तनं, यथेदं कुर्विति। यदुदयात् जन्तुशरीराणि स्वरूपेणानुष्णान्यपि उष्णप्रकाश(प्रज्ञा ११.३७ वृ प २५९) लक्षणमातपं कुर्वन्ति तदातपनाम। आज्ञापरिणामक (प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७३) वह शिष्य, जो गुरु की आज्ञा पर कारण पूछे बिना ही श्रद्धा (द्र उद्योतनाम) करता है। आतापनभूमि आज्ञापरिणामको नाम यद् आज्ञाप्यते तत्कारणं न पृच्छति वह स्थान, जहां आतापना ली जाती है, जैसे-पर्वत का किमर्थमेतदिति किन्त्वाज्ञयैव कर्त्तव्यतया श्रद्दधाति। शिखर, ऊंचा टीला आदि। (भग २.६२) (व्यभा ४४४३ वृ) आतापना आज्ञारुचि तैजस शक्ति का विकास करने के लिए सूर्य के सम्मुख १. रुचि का एक प्रकार। राग, द्वेष, मोह और अज्ञान के दूर विविध आसनों की मुद्रा में लिया जाने वाला सूर्य का हो जाने पर वीतराग की आज्ञा (वाणी) में होने वाली रुचि।। आतप। २. आज्ञारुचि-सम्पन्न व्यक्ति। .......सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरागो दोसो मोहो, अण्णाणं जस्स अवगयं होइ। रित्तए....। (भग ११.५९) आणाए रोयंतो, सो खलु आणारुई नाम॥ Jain Education International (उ २८.२०)e & Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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