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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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आकाशास्तिकाय वह द्रव्य, जिसका लक्षण है अवगाह देना। भायणं सव्वदव्वाणं, णहं ओगाहलक्खणं। (उ २८.९)
आगमतः द्रव्य निक्षेप द्रव्य निक्षेप का एक प्रकार । ज्ञाता की वह अवस्था, जिसमें वह ज्ञेय को जानता है किन्तु उसमें दत्तचित्त नहीं होता। आगमतः-जीवादिपदार्थज्ञोऽपि तत्राऽनुपयुक्तः।
(जैसिदी १०.८ वृ) आगमत: भाव निक्षेप भाव निक्षेप का एक प्रकार । ज्ञाता की वह अवस्था, जिसमें वह ज्ञेय को जानता है और उसमें दत्तचित्त भी होता है। उपाध्यायार्थज्ञस्तदनुभवपरिणतश्च आगमतो भावोपाध्यायः।
(जैसिदी १०.९ वृ)
आकिञ्चन्य श्रमण धर्म अथवा उत्तम धर्म का एक प्रकार । शरीर. धर्मोपकरण आदि में ममत्व का वर्जन। शरीरधर्मोपकरणादिषु निर्ममत्वमाकिञ्चन्यम्।
(तभा ९.६.९) आक्रोश परीषह परीषह का एक प्रकार । कठोर या अप्रिय वचन कहे जाने से उत्पन्न वेदना, जो मुनि के द्वारा समभावपूवक सहनीय है। अक्कोसेज परो भिक्खं, न तेसिं पडिसंजले। सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले॥ सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकंटगा। तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे।
(उ २.२४,२५) आक्षेपणी वह कथा, जो तत्त्वज्ञान और चारित्र के प्रति आकर्षण उत्पन्न करती है। मोहात् तत्त्वं प्रत्याकृष्यते श्रोताऽनयेत्याक्षेपणी।
(स्था ४.२४६ वृ प २००) आगति जीव का पूर्वभव से वर्तमान भव में आना। आगइ त्ति आगमनमागतिः-नारकत्वादेरेव प्रतिनिवृत्तिः।
(स्था १.२६ वृ प १९) (द्र गति)
आगम व्यवहार व्यवहार का एक प्रकार। केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और नवपूर्वी से प्राप्त होने वाला निर्देश। केवल-मणपज्जवनाणिणो य तत्तो य ओहिनाणजिणा। चोद्दस-दस-नवपुव्वी, आगमववहारिणो धीरा॥
(व्यभा ४५२९)
आगमसम्पन्न वह मुनि, जो चतुर्दशपूर्वी है अथवा एकादश अंगों का अध्येता या वाचक तथा स्वसमय-परसमय को जानने वाला है। आगमसंपन्नं नाम वायगं, एक्कारसंगंच, अन्नं वा ससमयपरसमयवियाणगं।
(द ६.१ जिचू पृ २०८) आगाढयोग योग (स्वाध्यायभूमि) का एक प्रकार । जिस योगवहन में आहार आदि से संबंधित प्रबल नियंत्रण होता है, जैसेभगवती आदि आगमग्रंथों के अध्ययन-काल में नौ प्रकार की विकृतियों (दूध आदि रसों) का वर्जन किया जाता है। आगाढमणागाढे, दुविधे जोगे य समासतो होति. आगाढतरा जमि जोगे जंतणा..."यथा भगवतीत्यादि। इतरो....उत्तराध्ययनादि।
(निभा १५९४ चू) .....सज्झायभूमि दुविधा, आगाढा चेवऽणागाढा॥
(व्यभा २११७) आगामिपथपिधान अन्तराय कर्म का एक प्रकार, जो भविष्य में होने वाले लाभ के मार्ग को रोकता है।
आगम १. आप्तपुरुष के वचन से होने वाला वस्तु का ज्ञान। आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः। (प्रनत ४. १) । २. आप्तपुरुष का वचन। आगमो णाम अत्तवयणं। (आवचू १ पृ २८) ३. केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी यावत् अभिन्न दशपूर्वी। (नन्दीटि पृ १७४)
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