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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
असत्यामृषा भाषा भाषा का एक प्रकार। न सत्य न मृषा-व्यवहार भाषा, जैसे-आज्ञा देना, आमंत्रण देना आदि। आमंत्रणाज्ञापनादिविषया असत्यामृषा।
(प्रज्ञा ११.२ वृ प २४८) असद्भूत व्यवहारनय अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म का अन्यत्र आरोप करना, जैसे-परमाण को बहुप्रदेशी कहना। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारो, यथा-परमाणुर्बहुप्रदेशीति कथनम्।
(आप २१८)
असमनुज्ञ अन्यतीर्थिक, जिसके दर्शन, वेश और सामाचारी का अनुमोदन नहीं किया जा सके। समनोज्ञो दृष्टितो लिङ्गतो, नतु भोजनादिभिः, तस्य, तद्विपरीतस्त्वसमनोज्ञः शाक्यादिः। (आ ८.१ वृ प २४०)
असमाधि १. मन की चंचलता। २. मानसिक तनाव। ३. असंतोष। समाधानं समाधिः-चेतसः स्वास्थ्यं मोक्षमार्गेऽवस्थितिरित्यर्थः। न समाधिरसमाधिः। (आवहाव २ प १०९)
पाया है। इसका कोई व्यवहार, विभाग या भेद नहीं होता। ये पुनरनादिकालादारभ्य निगोदावस्थामुपगता एवावतिष्ठन्ते ते व्यवहारपथातीतत्वादसांव्यवहारिकाः। (प्रज्ञावृ प ३८०) असातवेदनीय वेदनीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से शारीरिक और मानसिक दुःख का अनुभव होता है। यस्योदयात् पुनः शरीरे मनसि च दुःखमनुभवति तदसातवेदनीयम्।
(प्रज्ञा २३.१६ वृ प ४६७) असिद्ध हेत्वाभास अज्ञान, संदेह अथवा विपर्यय के कारण जिस हेतु के स्वरूप की प्रतीति नहीं होती, जैसे-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष है। अप्रतीयमानस्वरूपोऽसिद्धः। यस्य हेतोरज्ञानात् सन्देहाद् विपर्ययाद् वा स्वरूपंन प्रतीयते स असिद्धः, यथा-अनित्यः शब्दः, चाक्षुषत्वात्।
(भिक्षु ३.१७ वृ) असि परमाधार्मिक देवों का एक प्रकार। वे नरकपाल देव, जो नैरयिकों के हाथ, पैर, ऊरु, बाहु, सिर आदि अंग-प्रत्यंगों के अत्यधिक टुकड़े करते हैं। हत्थे पादे ऊरु-बाहु-सिरा-पास अंगमंगाणि। छिंदंति पगामं त, असिनेरइया निरयपाला॥
(सूत्रनि ७६) असिपत्रधनु परमाधार्मिक देवों का एक प्रकार । वे असुर देव, जो असि आदि के द्वारा नैरयिकों के कर्ण, ओष्ठ, नासिका, हाथ, पैर, दांत, स्तन, नितम्ब, ऊरु तथा बाहु का छेदन-भेदन-शातन करते हैं। वे देव 'असिपत्र' वन को बीभत्स करके वायु की विकुर्वणा करते हैं। छायार्थी नारक जीव उन वृक्षों के नीचे बैठते हैं तो असिधारा की भांति तीक्ष्ण पत्ते उन पर गिरते हैं और उन्हें छिन्न करते हैं। कण्णो ?-नास-कर-चरण-दसण-थण-फिग्ग-ऊरु-बाहूणं। छेदण-भेदण-साडण-असिपत्तधणूहि पाडति॥
(सूत्रनि ७७) असिप्रधानाः पत्रधनुर्नामानो नरकपाला असिपत्रवनं बीभत्सं
असमाधिस्थान वह परिस्थिति, जो असमाधि का हेतु बनती है। न समाधिरसमाधिस्तस्याः स्थानानि-आश्रयभेदाः पर्याया वा।
(सम २०.१ वृ प ३६) असम्मोह शुक्लध्यान का एक लक्षण । सूक्ष्म पदार्थविषयक मूढता का न होना, भ्रांति का न होना। सूक्ष्मपदार्थविषयस्य च संमोहस्य मूढताया निषेधादसम्मोहः।
(स्था ४. ७० वृ प १८१) असांव्यवहारिक जीव वह जीव, जो अनादिकाल से निगोद-वनस्पति में है, जिसका वनस्पति के अतिरिक्त किसी भी जीव-जाति में अवतरण नहीं हुआ है, जो विकास की भूमिका का आरोहण नहीं कर
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