________________
४२
जिसे धर्म सुनने का अवसर भी प्राप्त नहीं है और आन्तरिक विशुद्धि का प्रकर्ष होने पर जिसे केवलज्ञान प्राप्त होता है । असोच्चा केवलनाणं उप्पाडेज्जा ॥ (भग ९.३१)
अश्लोकभय
वह भय, जो अकीर्ति की आशंका से होता है। अश्लोकभयं - अकीर्त्तिभयम् । (स्था ७.२७ वृ प ३६९)
अश्वरत्न
चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक रत्न । प्रकृष्ट वेग और महान् पराक्रम से युक्त घोड़ा।
तुरङ्गमगजी प्रकृष्टवेगमहापराक्रमादिगुणसमन्वितौ ।
अष्टमभक्त
तीन दिन का उपवास (तेला) । ''अट्टमेणं''।'' दिनत्रयानन्तरं भुक्तवान् ।
(द्र चतुर्थभक्त)
'अष्टमभक्तिक
तेला (तीन दिन का उपवास) करने वाला। अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोयरकाला । (दशा ८ परि सू ४२)
(प्रसावृ प ३५० )
अष्टस्पर्शी
वह पुद्गल - स्कन्ध जो शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध, गुरु, लघु, मृदु, कर्कश – इन आठों स्पर्श से युक्त है। वह गुरुलघुभारयुक्त होता है।
(द्र चतुःस्पर्शी)
अष्टाङ्गनिमित्त
अगुरूलहू चतुफासो अरूविदव्वा य होंति नायव्वा । सेसा उ अट्टकासा गुरुलहुया निच्छयणयस्स ॥
(द्र महानिमित्तज्ञता)
अष्टादशसहस्रशीलाङ्ग
(आ ९.४.७ भा)
(द्र ध्रुवशील)
Jain Education International
(भ १.३९३ वृ)
( तवा ३.३६)
(द ८.४० जिचू पृ २८७)
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अष्टापद
अनाचार का एक प्रकार। शतरंज खेलना, जो मुनि के लिए
अनाचरणीय है।
'अष्टापदं' द्यूतम् ।
(द ३.४ हावृ प ११७)
असंख्येय ( असंख्यात )
गणनासंख्या का एक प्रकार। संख्यातीत । उत्कृष्ट संख्येय में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य-परीत असंख्येय होता है। असंख्येय के तीन प्रकार हैं- परीत, युक्त और असंख्येय । इनमें से प्रत्येक के तीन प्रकार हैं- जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट । ( अनु ५७४, ५७६, ५७७, ५८७)
(द्र संख्येय)
असंख्येय जीव
वह वनस्पति, जिसके एक शरीर में असंख्येय जीव होते हैं। ...पुण्णाग णागरुक्खे सीवण्णि तहा असोगे य ॥ जे यावणे तपगारा । एतेसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि।'''' (प्रज्ञा १.३५)
असंज्ञिपञ्चेन्द्रिय
वह पञ्चेन्द्रिय जीव, जो मन रहित होता है।
( भग २४,३०० )
असंज्ञिभूत
वह जीव, जो अमनस्क योनि से मरकर समनस्क योनि में पैदा हुआ हो। मन की क्षमता होने पर भी मस्तिष्कीय विकास के अभाव में जिसका मन व्यक्त न हुआ हो, जिसमें पूर्वजन्म कृत शुभ, अशुभ अथवा वैर आदि का स्मरण करने की क्षमता न हो ।
ये त्वसंज्ञिभ्यस्तेऽसंज्ञिभूताः, असंज्ञिनश्च पाश्चात्यं न किमपि जन्मान्तरकृतं शुभमशुभं वैरादिकं वा स्मरन्ति ।
(प्रज्ञा १७.९ वृ प ५५७,५५८)
For Private & Personal Use Only
असंज्ञिमनुष्य
अमनस्क पञ्चेन्द्रिय मनुष्य, जो समनस्क मनुष्य के मल, मूत्र आदि में उत्पन्न होता है ।
(भग २४.३०० )
असंज्ञिश्रुत
१ श्रुतज्ञान का एक प्रकार । कालिकी उपदेश संज्ञा से रहित
( अमनस्क) प्राणी का श्रुत।
(नन्दी ५५ )
www.jainelibrary.org