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________________ ३२८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वं दुपएसिए खंधे-आयाति य नोआयाति य। (भग १२.२१९) स्वभाव पर्याय वस्तु का वह परिणमन, जो निसर्ग से होता है, जिसमें किसी परनिमित्त की अपेक्षा नहीं होती। परनिमित्तानपेक्षः स्वभावपर्यायः। (जैसिदी १.४४) स्याद्वाद एक धर्म की अपेक्षा और शेष सब धर्मों की उपेक्षा कर अनन्त धर्मात्मक वस्तु के प्रतिपादन की पद्धति। अर्पणानर्पणाभ्यामनेकान्तात्मकार्थप्रतिपादनपद्धतिः स्याद्वादः। (भिक्षु ४.७) स्याद्वाद श्रुत वह श्रुत, जिसके द्वारा सम्पूर्ण अर्थ (अनेकान्तात्मक वस्तु) का निश्चय होता है। नयानामेकनिष्ठानां, प्रवृत्तेः श्रुतवर्त्मनि। सम्पूर्णार्थविनिश्चायि, स्याद्वादश्रुतमुच्यते॥ (न्याया ३०) स्वयंबुद्ध वह मुनि, जो बाह्य निमित्त के बिना प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा स्वीकार करता है। बाह्यप्रत्ययमन्तरेण ये प्रतिबुद्धास्ते स्वयंबुद्धा। . (नन्दीचू पृ २६) स्वयंबुद्धसिद्ध वह सिद्ध, जो स्वयंबुद्ध की अवस्था में मुक्त होता है। (नन्दी ३१) (द्र स्वयंबुद्ध) स्वयमेव अवग्रह अनुग्रहण अचौर्य महाव्रत की एक भावना। अनुज्ञात अवग्रह को स्वयं स्वीकार करना, उसमें रहना। ज्ञातायां च सीमायां स्वयमेव उग्गहण' मिति अवग्रहस्यानुग्रहणता पश्चात्स्वीकरणमवस्थानमित्यर्थः । (सम २५.१.१३ वृ प ४३) स्वकायशस्त्र वह सजीव अथवा निर्जीव द्रव्य, जिसके प्रयोग से अपनी ही जाति (काय) के प्राणी का प्राण-वियोजन होता है, जैसे-काली मिट्टी पीली मिट्टी का शस्त्र है। स्वकायशस्त्रम्-यथा कृष्णमत्तिका पीतमत्तिकायाः। परकायशस्त्रम्-यथा अग्निः । तदुभयशस्त्रम्-यथा मृत्तिकामिश्रितजलम्। (आभा १.१९) स्वदारसंतोष गृहस्थधर्म का चौथा व्रत, जिसमें स्वपत्नी (स्व पति) के अतिरिक्त मैथुन विधि का प्रत्याख्यान किया जाता है। सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहणविहिं पच्चक्खाइ। (उपा १.२७) स्वप्ननिमित्त अष्टांगमहानिमित्त का एक प्रकार। पश्चिम रात्रि के समय आने वाले स्वप्नों के आधार पर भावी सुख-दुःख का निश्चय करने वाला शास्त्र। वातपित्तश्लेष्मदोषोदयरहितस्य पश्चिमरात्रिभागे चन्द्रसूर्यधराद्रिसमुद्रमुखप्रवेशन""आगामिजीवितमरणसुखदुःखाद्याविर्भावकः स्वप्नः। (तवा ३.३६) स्वयम्भूरमण तिर्यग् लोक में विद्यमान असंख्येय समुद्रों में अंतिम समुद्र। ..."असंख्येया द्वीपसमुद्राः स्वयम्भूरमणपर्यन्ता वेदितव्याः। (तभा ३.७) स्वरनिमित्त अष्टांगमहानिमित्त का एक प्रकार। स्वर-अक्षरात्मक शब्दों अथवा पशु-पक्षियों के अनक्षरात्मक शब्दों के आधार पर इष्ट-अनिष्ट फल का निरूपण करने वाला शास्त्र। अक्षरानक्षरशुभाशुभशब्दश्रवणेनेष्टानिष्टफलाविर्भावनं महानिमित्तं स्वरम्। (तवा ३.३६) स्वलक्षण दोष वाददोष का एक प्रकार। वस्तु के निर्दिष्ट लक्षण में अव्याप्त अथवा अतिव्याप्त दोष होना। लक्ष्यते तदन्यव्यपोहेनावधार्यते वस्त्वनेनेति लक्षणं, स्वं च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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