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________________ २६० जैन पारिभाषिक शब्दकोश वाला पुण्य प्रकृति का बंध। (द्र अन्नपुण्य) वस्त्रविद्या वह विद्या, जिसमें अभिमंत्रित वस्त्र के द्वारा रोगी के शरीर का प्रमार्जन किया जाता है और वह स्वस्थ हो जाता है। .या विद्या वस्त्रविषया भवति तया परिजपितेन वस्त्रेण वा प्रमृज्यमान: आतुरः प्रगुणो भवति। (व्यभा १४३९ वृ) वाग्गुप्ति पृच्छा, प्रश्नोत्तर आदि के विषय में बोलने का नियमन तथा अनृत आदि वचन की निवृत्ति और मौन करना। याचन-पृच्छन-पृष्टव्याकरणेषु वानियमो मौनमेव वा वाग्गुप्तिः। (तभा ९.४) वाक्पुण्य पुण्य का एक प्रकार । संयमी की प्रशंसा करने से होने वाला पुण्य प्रकृति का बंध। (स्था ९.२५ ७ प ४२८) (द्र मनःपुण्य) वाक्यशुद्धि वह वाक्य, जिसके प्रयोग से संयम की शुद्धि होती है, हिंसा नहीं होती, आत्मा में कलुषभाव नहीं आता। (दशवैकालिक के सातवें अध्ययन का नाम।) जं वक्कं वदमाणस्स, संजमो सुज्झई न पुण हिंसा। न य अत्तकलुसभावो, तेण इहं वक्कसुद्धि त्ति॥ (दनि २६४) वागबली १. वह लब्धिधारी मुनि, जो अन्तर्मुहूर्त में चतुर्दश पूर्वो का उच्चारण करने में समर्थ है। २. वह मुनि, जिसका कण्ठ उच्च स्वर से बोलने में समर्थ होता है। अन्तर्मुहूर्तेन सकलश्रुतवस्तूच्चारणसमर्था वाग्बलिनः । अथवा पदवाक्यालङ्कारोपेतां वाचमुच्चैरुच्चारयन्तोऽविरहितवाक्क्रमाहीनकण्ठा वाग्बलिनः। (योशा १.८ वृ पृ४२) मनोजिह्वाश्रुतावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमातिशये सत्यन्तर्मुहर्ते सकलश्रुतोच्चारणसमर्थाः सततमुच्चैरुच्चारणे सत्यपि श्रमविरहिता अहीनकण्ठाश्च वाग्बलिनः। (तवा ३.३६) वाक्संयम हिंसाजनक रूक्ष वचन आदि से निवृत्ति और शुभ वचन में । प्रवृत्ति। वाचो हिंम्रपरुषादिवचोभ्यो निवृत्तिः शुभभाषायां च प्रवृत्तिक्संयमः। (योशा ४.९३ वृ) वाचक १. पूर्वश्रुत तथा अन्य श्रुत का अध्यापन करने वाला। पूर्वगतं सूत्रमन्यच्च विनेयान् वाचयन्तीति वाचकाः। (नन्दी गाथा ३० मवृ प५०) २. वह मुनि, जो वाचनाचार्य के रूप में नियुक्त होता है। (व्यभा १९४३) वाचना स्वाध्याय का पहला प्रकार। अध्यापन करना। वाचना-पाठनम्। (उ २९.२० शावृप ५८४) वाचनाचार्य वह आचार्य, जो श्रुत का अध्यापन करता है। (स्था ४.४२३) वाक्समाधारणा स्वाध्याय में वचन का नियोजन। 'वाक्समाधारणया' स्वाध्याय एव वाग्निवेशनात्मिकया वाचा समाधारणा वाक्समाधारणा। (उ २९.५८ शावृ प ५९२) वाक्समितियोग अहिंसा महाव्रत की एक भावना। संक्लेशकारक वचन न बोलना। वतीते पावियाते पावगं न किंचि जि भासियव्वं । एवं । वतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्या। (प्रश्न ६.१९) वाचनासम्पदा गणिसम्पदा का एक प्रकार। जो शिष्य जिस ज्ञान के योग्य हो, उसे वैसा अध्ययन कराना। वायणासंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-विजयं उद्दिसति, विजयं वाएति, परिनिव्वावियं वाएति, अत्थनिज्जवए यावि भवति। (दशा ४.८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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