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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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विक्रिया ऋद्धि का एक प्रकार। इस ऋद्धि के द्वारा वायु से भी अधिक लघु (हल्के) शरीर का निर्माण किया जा सकता
वायोरपि लघुतरशरीरता लघिमा।
(तवा ३.३६)
जो क्रन्दन करते हए नैरयिकों को असि, शक्ति, भाला, तोमर, शूल, त्रिशूल, सूई आदि में पिरोते हैं। असि-सत्ति-कोत-तोमर-सूल-तिसूलेसु सूइयग्गेसु। पोयंति कंदमाणे, रुद्दा खलु तत्थ नेरइए॥
(सूत्रनि ७२) रौद्रध्यान हिंसा, असत्य, चोरी और विषयभोगों की रक्षा के निमित्त होने वाली एकाग्रता। हिंसाऽनुतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रम। (तभा ९.३६)
लक्षण १. अष्टाङ्गमहानिमित्त का एक प्रकार। श्रीवृक्ष, स्वस्तिक, कलश आदि चिह्नों के आधार पर ऐश्वर्य आदि का ज्ञान करने वाली विद्या। श्रीवृक्षस्वस्तिक,गारकलशादिलक्षणवीक्षणात् त्रैकालिक स्थानमानैश्वर्यादिविशेषज्ञानं लक्षणम्। (तवा ३.३६) २. वह धर्म, जो एक वस्तु को दूसरी वस्तुओं से पृथक् करता है। व्यवच्छेदकधर्मो लक्षणम्।
(भिक्षु १.५)
लघुत्व हिंसा आदि पापाचरण की विरति से होने वाला जीव का हल्कापन। पाणाइवायवेरमणेणं मुसावायवेरमणेणं अदिण्णादाणवेरमणेणं मेहुणवेरमणेणं परिग्गहवेरमणेणं कोह-माण-मायालोभ-पेज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवायअरतिरति-मायामोस-मिच्छादसणसल्ल-वेरमणेणं""जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति।
(भग १२.४२) लघु प्रायश्चित्त उदघातिक प्रायश्चित्त । काल से वर्षा व हेमंत ऋत तथा तप से निर्विकृति से षष्ठभक्त पर्यन्त तप लघु प्रायश्चित्त है। (द्र गुरु प्रायश्चित्त) लघुभूतकामी १. जो स्वयं को लघुभूत (हल्का) करने की कामना करता
लक्षणसंवत्सर लक्षणों से जाना जाने वाला संवत्सर, जो पांच प्रकार का होता है-नक्षत्र, चन्द्र, कर्म (ऋतु), आदित्य और अभिवर्धित संवत्सर।
(स्था ५.२१३) (द्र प्रमाणसंवत्सर, युगसंवत्सर)
लक्षणाभास जो लक्षण नहीं है, पर लक्षण जैसा प्रतीत होता है। अतत् तदिव आभासते इति तदाभासः। (भिक्षु १.६ वृ) । लगण्डशायी कायक्लेश का एक प्रकार । भूमि पर सीधे लेटकर लकुट की भांति एड़ियों और सिर को भूमि से सटाकर शरीर के शेष भाग को ऊपर उठाकर सोने वाला। लगण्डशायी-भूम्यलग्नपृष्ठः। (स्था ७.४९ वृप ३७८) लधिमा
२. जो संयम की कामना करता है। आत्मानं लघुभूतं कामयते इति लघुभूतकामी। लघुभूतःसंयमः तं कामयते इति लघुभूतकामी। (आभा ३.४९) लघुभूतविहारी अप्रतिबद्धविहारी मुनि, जो वायु की तरह प्रतिबन्ध रहित विचरण करता है। लघुभूतगामी-अप्रतिबद्धविहारी। (आभा ३.४९) लहू जंण गुरू, स पुण वायू, लहुभूतो लहुसरिसो विहारो जेसिं ते लहुभूतविहारिणो। (द ३.१० अचू पृ ६३) लज्जा दान वह दान, जो लज्जावश दिया जाता है। 'लज्जया' ह्रिया दानं यत्तल्लज्जादानम्।
(स्था १०.९१ वृ प ४७०)
लन्द काल। (जघन्यतः तरुण स्त्री की आर्द्र हथेली को सखने में
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