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मतभङ्गदोष
वाद-दोष का एक प्रकार । तत्त्व की विस्मृति हो जाना । स्वस्यैव मतेः – बुद्धेर्भङ्गो - विनाशो मतिभङ्गो - विस्मृत्यादिलक्षणो दोषो मतिभङ्गदोषः ।
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(स्था १०.९४ वृ प ४६७ )
मतिसम्पदा
गणिसम्पदा का एक प्रकार । अवग्रह, ईहा, अवाय और
धारणा का पाटव।
मतिसंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - ओग्गहमतिसंपदा, ईहामतिसंपदा, अवायमतिसंपदा, धारणामतिसंपदा ।
(दशा ४.९)
मत्सरिता अतिथिसंविभाग व्रत का एक अतिचार । 'अमुकव्यक्ति ने दान दिया है, क्या मैं उससे कम हूं ?' - इस प्रकार ईर्ष्या की भावना से आहार देना।
अपरेणेदं दत्तं किमहं तस्मादपि कृपणो हीनो वा अतोऽहमपि ददामि इत्येवंरूपो दानप्रवर्तकविकल्पो मत्सरिता ।
(उपा १.४३ वृ पृ २० )
मदनकाम
शब्द आदि इन्द्रिय-विषयों की कामना ।
मदनकाम: - शब्दादीनामिन्द्रियविषयाणां कामना ।
(आभा २.१२१)
(द्र इच्छाकाम)
मध्यगत अवधिज्ञान
आनुगामिक अवधिज्ञान का एक प्रकार। वह ज्ञान, जो स्थूल शरीर के मध्यवर्ती चैतन्यकेन्द्रों से विकसित होता है और सब दिशाओं में स्थित ज्ञेय को जानता है । ओरालियसरीरमज्झे फड्डुगविसुद्धीतो सव्वातप्पदेसविसुद्धीतो वा सव्वदिसोवलंभत्तणतो मज्झगतो त्ति भण्णति ।
(नन्दी १० चू पृ १६)
मध्यप्रदेश
१. जीव के वे आठ प्रदेश, जो सर्वअवगाहना के मध्य में स्थित हैं, अवस्थित (अचल) हैं।
२. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और
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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
जीवास्तिकाय के मध्यवर्ती आठ-आठ प्रदेश ।
पयोगबंधे अणादी अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपसाणं । (भग ८.३५४) अटु धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पण्णत्ता | अधम्मत्थिकायस्स'' ||आगासत्थिकायस्स एवं चेव ॥ अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पण्णत्ता ॥ (भग २५.२४०-२४३) 'जीवत्थिकायस्स' त्ति प्रत्येकं जीवानामित्यर्थः, ते च सर्वस्यामवगाहनायां मध्यभाग एव भवन्तीति मध्यप्रदेशा उच्यन्ते । (भग २५.२४३ वृ)
(द्र रुचकप्रदेश)
मध्यम आतापना
गोदोहिका, उत्कटुकासन और पर्यङ्कासन की स्थितमुद्रा में लिया जाने वाला सूर्य का आतप ।
अनिष्पन्नस्य मध्यमा अनिप्पन्नातापनाऽपि त्रिधा गोदोहिका उत्कटुकासनता पर्यङ्कासनता चेति । (औपवृ पृ ७५)
मध्यम गीतार्थ
वह मुनि, जो कल्पधर, व्यवहारधर, दशाश्रुतस्कंधधर आदि होता है।
कल्प-व्यवहार-दशाश्रुतस्कन्धधरादयो मध्यमाः ।
मध्यम चिरप्रव्रजित
वह मुनि, जो पांच वर्षों से दीक्षित है। पञ्चवर्षप्रव्रजितो मध्यमः ।
(बृभा ६९३ वृ)
(बृभा ४०३ वृ)
मध्यमपद
पद का एक प्रकार । सोलह सौ चौंतीस करोड़, तिरासी लाख, सात हजार आठ सौ अट्ठासी (१६३४८३०७८८८) अक्षरों का समवाय ।
सोलससदचोत्तीसकोडि-तेसीदिलक्खअट्टहत्तरिसयअट्ठासीदिअक्खरेहिं एवं मज्झिमपदं होदि ।
(धव पु९ पृ१९५)
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मध्यम बहुश्रुत
१. वह मुनि, जो कल्प और व्यवहार- इन दो छेद सूत्रों का धारक होता है।
मध्यमः ' कप्प' त्ति कल्प-व्यवहारधरः । (बृभा ४०२ वृ) २. वह मुनि, जो निशीथ और चौदह पूर्वो का मध्यवर्ती ज्ञाता हो ।
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