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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
समुद्र को घेरे हुए है और जो मानुषोत्तर पर्वत से परिक्षिप्त है। उवंगाणं तच्चस्स वग्गस्स पुफियाणं..। (पु १.२) कालोदसमुद्रः पुष्करवरद्वीपार्धन परिक्षिप्तः, पुष्करवरद्वीपा)
पूतिकर्म मानुषोत्तरेण पर्वतेन परिक्षिप्तम्। (तभा ३.८)
उद्गम दोष का एक प्रकार। आधाकर्म से मिश्रित आहार। (द्र अर्धतृतीय द्वीप, समयक्षेत्र)
शुद्धस्याशुद्धावयवेन पूतेरपवित्रस्य करणं पूतिकर्म। पुष्पचारण
(प्रसा ५६४ उवृ) चारण ऋद्धि का एक प्रकार, जिसके द्वारा साधक पुष्पों के जीवों की विराधना न करके उनके ऊपर से गमन कर सकता
१. पूर्वगत के चौदह विभाग, जिन्हें आगमों से पूर्व प्रतिपादित अविराहिदूण जीवे तल्लीणे बहुविहाण पुप्फाणं।
होने के कारण पूर्व कहा गया। उवरिम्मि जं पसप्पदि सा रिद्धी पुप्फचारणा णामा॥
समस्तश्रुतात्पूर्वं करणात् पूर्वाणि, तानि चोत्यादपूर्वादीनि (त्रिप्र ४.१०३९) चतुर्दशेति।
(स्था ४.१३१ वृ प १८८)
यस्मात तीर्थंकरस्तीर्थप्रवर्तनकाले गणधराणां सर्वसत्रापुष्पचूलिका
धारत्वेन पूर्वं पूर्वगतसूत्रार्थं भाषते तस्मात् पूर्वाणीति भणितानि। कालिक श्रुत का एक प्रकार । उपाङ्ग का चौथा वर्ग, जिसमें अर्हत् पार्श्व की दस शिष्याओं का वर्णन है। (नंदी ७८)
(प्रसावृ प २०८) उवंगाणं"चउत्थस्स णं भंते! वग्गस्स पुष्फचूलियाणं "दस
२. चौरासी लाख वर्ष (पूर्वाङ्ग) को चौरासी लाख वर्ष से अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
गुणन करने पर प्राप्त होने वाली संख्या, जिसका परिमाण सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति, बुद्धि-लच्छी य होइ बोद्धव्वा।
इस प्रकार है-७०५६०००००००००० वर्ष । इलादेवी सुरादेवी, रसदेवी गंधदेवी य॥
.."चउरासीइं पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे। (अनु ४१७) (पुष्प १.१,२)
एगं पुव्वंगं चलुसीतीए सयसहस्सेहिं गुणितं एगं पुव्वं भवति।
तस्सिम परिमाणं-दस सुण्णा छप्पण्णं च सहस्सा कोडीणं पुष्पवृष्टि
सत्तरि लक्खा य।
(अनुचू पृ ३८) महाप्रातिहार्य का एक प्रकार । अर्हत् के भास्वर ऊर्ध्वमुखी चुलसीदिहदं लक्खं पुव्वंग होदि तं पि गुणिदव्वं । जलज और स्थलज पंचवर्ण प्रचुर पुष्पों का घुटने जितना चउसीदीलक्खेहिं णादव्वं पुब्बपरिमाणं॥ ऊंचा उपचार (राशिकरण) होता है।
(त्रिप्र ४.२९३) जल-थलय-भासुर-पभूतेणं विंटट्ठाइणा दसद्धवण्णेणं (द्र पूर्वाङ्ग) कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणमित्ते पुष्फोवयारे कजइ।
पूर्वगत (सम ३४.१.१८)
दृष्टिवाद का एक प्रकार । चतुर्दश पूर्व । पुष्पसूक्ष्म
पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-उप्यायपुव्वं अग्गेबरगद आदि के फूल, जो दुर्जेय होते हैं।
णीयं।
(नन्दी १०४) पुष्फसुहुमं नाम वडउम्बरादीनि संति पुष्फाणि, तेसिं सरि
(द्र दृष्टिवाद) वन्नाणि दुव्विभावणिज्जाणि ताणि सुहुमाणि। (द ८.१५ जिचू पृ २७८)
पूर्वधर
वह मुनि, जिसे पूर्वश्रुत का ज्ञान प्राप्त है। पुष्पिका
पूर्वाणि धारयन्तीति पूर्वधरा। (विभा ३२३ वृ) कालिक श्रुत का एक प्रकार। उपांग का तीसरा वर्ग, जिसमें संयम और सम्यक्त्व की आराधना और विराधना का वर्णन
पूर्वपश्चात्संस्तव (नन्दी ७८)
उत्पादन दोष का एक प्रकार। अपने पितृपक्ष और श्वसुरपक्ष
का परिचय देकर ली जाने वाली भिक्षा। For Private & Personal Use Only
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