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पुण्य
नौ तत्त्वों में एक तत्त्व। शुभ कर्म पुद्गल ।
(जैसिदी ४.१२)
शुभं कर्म पुण्यम् । शुभं कर्म सातवेदनीयादि पुण्यमभिधीयते । उपचाराच्च यद्यन्निमित्तो भवति पुण्यबन्धः, सोऽपि तद्- तद्शब्दवाच्यः, ततश्च तन्नवविधम् । यथा अन्नपुण्यम् ।
(जैसिदी ४.१२ वृ)
सोहणवण्णागुणं सुभाणुभावं च जं तयं पुण्णं । विवरीयमओ पावं ॥
(द्र द्रव्यपुण्य, भावपुण्य)
( विभा १९४० )
पुण्य प्रकृति
सुरनरतिगुच्चसायं तसदस तणुवंगवइचउरंसं । परघासग तिरिआउं वन्नचउ पणिंदि सुभखगई ॥ बायालपुन्नपगई .......'• (द्र शुभ प्रकृति)
(द्र बहि: पुद्गलप्रक्षेप)
पुद्गलपरावर्त्त
(द्र पुद्गलपरिवर्त्त)
(कग्र ५.१५,१६)
पुद्गल
१. वह द्रव्य, जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण होता है। स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुदगलाः । (तसू ५.२३) २. जीव का वह शुद्ध स्वरूप, जो औदयिक भाव से निरपेक्ष
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जीवं पडुच्च पोग्गले ।
पुद्गल क्षेप
(भग ८.५०० )
(तसू ७.२६)
पुद्गलपरिवर्त्त
एक जीव को शरीर, मन, वचन और आनापान के रूप में सब पुद्गलों का स्पर्श करने में जितना समय लगता है, वह एक पुद्गलपरावर्त्त है।
सव्वपोग्गला जावतिएण कालेण सरीरफासअशनादीहिं फासिज्जति सो पोग्गलपरियट्टो भवति । (उच् पृ १८९) यदौदारिक - वैक्रिय-तैजस-भाषानापानमनः कर्मसप्तकेन संसारोदरविवरवर्तिनः पुद्गलाः आत्मसात्परिणामिता भवन्ति तदा पुद्गलपरावर्त्त इति । ( आ १.४८ वृ प ११६ )
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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
पुद्गलविपाकिनी
वह कर्म - प्रकृति, जिसका विपाक पुद्गल में होता है, शरीर और शरीर से संबद्ध संस्थान, संहनन आदि में होता है। पुद्गले पुद्गलविषये विपाकः फलदानाभिमुख्यं यासां ताः पुद्गलविपाकिन्यः । (कप्र पृ३५)
पुद्गलास्तिकाय
समस्त परमाणुओं और परमाणुस्कंधों का समुदय । दव्व णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाई |
पुद्गली
वह जीव, जो इन्द्रियों से युक्त है।
जीवे वि सोइंदिय - चक्खिंदिय- घाणिंदिय-जिब्भिंदिय(भग ८.५००)
-फासिंदियाई पडुच्च पोग्गली ।
पुनर्भव
मृत्यु के बाद होने वाला अगला जन्म। पुनर्भवे – संसारे गर्भवसतिप्रपञ्चः ।
(भग २.१२९)
(प्रज्ञा २.६७ वृ प १०८)
पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान
अंतगत आनुगामिक अवधिज्ञान का एक प्रकार । शरीर के पुरोवर्ती भाग से उत्पन्न होने वाला अवधिज्ञान ।
पुरतो अंतगयं णाम तमोहिण्णाणिं पडुच्च चक्खिदियमिव अग्गतो दरिसणसामत्थजुत्तं । (आवचू १ पृ५६)
पुराण
धारणामति का एक प्रकार । पुराने को धारण करना, जो
चिरकाल पूर्व वाचित है।
धारणामती पोराणं धरेति । पोराण पुरा वायित ॥
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(स्था ६.६४ )
(व्यभा ४११० )
पुरिमर्द्ध
प्रत्याख्यान का एक प्रकार, जिसमें पूर्वाह्न - दिन के प्रथमभाग तक खान-पान का त्याग किया जाता है। 1 पुरिमार्द्ध - पूर्वाह्णलक्षणं प्रत्याख्यानविशेषः ।
(स्था ५.३९ वृप २८४) पुरिमार्द्ध - प्रथमप्रहरद्वयकालावधिप्रत्याख्यानं गृह्यते ।
( आवहावृ २ पृ २४२) www.jainelibrary.org