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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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यच्चादितस्तयोर्निर्वर्त्तनं सा निर्वर्तनाधिकरणिकी।
पारिहारिक का एक प्रकार। परिहारविशुद्धि चारित्र में
(स्था २.७ वृ प ३८) तप:साधना में संलग्न चार साधुओं की आचार-मर्यादा। (द्र संयोजनाधिकरणिकी क्रिया)
परिहरणं परिहार:-तपोविशेषस्तेन चरन्तीति पारिहारिकाः,
ते द्विधा निर्विशमानका निर्विष्टकायिकाश्च। तत्र निर्विशनिर्वाण
मानका-विवक्षिततपोविशेषासेवकाः, निर्विष्टकायिकाः १. मोक्ष, कर्मज्वाला के सर्वथा क्षीण हो जाने के कारण जो
-आसेवितविवक्षिततपोविशेषः॥ शांति का प्रतिष्ठान है।
(प्रसा ६०२ वृ प १६९) निव्वाणं ति अबाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं, जंचरंति महेसिणो॥
निर्विष्टकायिककल्पस्थिति निर्वान्ति-कर्मानलविध्यापनाच्छीतीभवन्त्यस्मिन् जन्तव पारिहारिक का एक प्रकार। परिहारविशुद्धि चारित्र में जो इति निर्वाणम्। (उ २३.८३ शावृ प ५११) साधु पूर्व में तपस्या कर चुके और अब सेवा में संलग्न हैं, २. परम समाधि की अवस्था, जिसे ऋजुभूत धार्मिक व्यक्ति उनकी आचार-मर्यादा। (प्रसा ६०२ वृ प १६९) प्राप्त करता है। अथवा चेतना की दीप्त अवस्था, स्वास्थ्य। (द्र निर्विशमानकल्पस्थिति) निव्वाणं परमं जाइ घयसित्तव्व पावए॥
निवृत्त निर्वतिनिर्वाणं, स्वास्थ्यमित्यर्थः। (उ ३.१२ शाव प १८५) (द्र मोक्ष)
वह व्यक्ति, जिसका कषाय शान्त हो गया है।
निर्वृत्तः कषायोपशमाच्छीतीभूतः । निर्वाणमार्ग
(सूत्र १.११.३८ वृप २१०) आत्यंतिक, अव्याबाध सुख-प्राप्ति का मार्ग। निर्वाणं-सकलकर्मक्षयजमात्यन्तिकं सुखमित्यर्थः,
निर्वृत्ति इन्द्रिय निर्वाणस्य मार्गो निर्वाणमार्ग इति"""परमनिर्वतिकारणम्।
द्रव्येन्द्रिय का एक प्रकार। इन्द्रिय की बाह्य और आन्तरिक (आवहावृ २ पृ १८१)
आकाररचना।
निर्वत्तिर्नाम प्रतिविशिष्ट: संस्थानविशेषः। सापि द्विधानिर्वाणवादी
बाह्या अभ्यन्तरा च।
(नन्दीमवृ प ७५) मोक्षवादी। श्रमणपरम्परा निर्वाणवादी परम्परा है।
निर्वेद """णिव्वाणवादीणिह णायपुत्ते॥ (सूत्र १.६.२१)
सम्यक्त्व का एक लक्षण। इन्द्रिय-विषयों से विरक्ति। निर्विकृतिक
निव्वेएणं दिव्वमाणुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वप्रत्याख्यान का एक प्रकार। दिन में एक बार विकृतिरहित मागच्छइ। सव्वविसएसु विरज्जइ। (उ २९.३) भोजन कर चारों आहारों का प्रत्याख्यान करना।
निर्वेदनी निव्विगइयं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं।
(आव ६.१०)
कृत कर्मों के शुभ-अशुभ फल बता कर संसार के प्रति
उदासीन बनाने वाली कथा। निर्विचिकित्सा
संसारादेर्निविण्णः क्रियते अनयेति निर्वेदनी। सम्यक्त्व का तीसरा आचार। साधना के फल में सन्देह का
(स्था ४.२४६ वृ प २००) अभाव।
निभरि विचिकित्सा-फलं प्रति संदेहो, यथा-किमियत: क्लेशस्य
उपाश्रय में किया जाने वाला अनशन। फलं स्यादुत नेति?"तदभावो निर्विचिकित्सं"।
'नीहारिमे य'त्ति निर्हारेण निर्वृत्तं यत्तन्निर्हारिमं, प्रतिश्रये यो (उ २८.३१ शावृ प५६७)
म्रियते तस्यैतत्, तत्कडेवरस्य निरिणात्। (भग २.४९ वृ) निर्विशमानकल्पस्थिति
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