________________
१५४
प्रदेशबंध का कारण बनता है।
नामप्रत्ययः कर्मैषामिति नामप्रत्ययाः नाम्नैव प्रत्याय्यन्ते यादृशाः पुद्गलाः प्रदेशबन्धस्य कारणीभवन्ति ।
(तभा ८.२५ वृ)
नाम सत्य
भाषागत (व्यवहार) सत्य का एक प्रकार । गुणविहीन होने पर भी किसी व्यक्ति या वस्तु को गुणात्मक अभिधान से अभिहित करना ।
'नामे' त्ति नाम अभिधानं तत्सत्यं नामसत्यम् ।
नारकायु
नरकेषु तीव्रशीतोष्णवेदनेषु यन्निमित्तं दीर्घजीवनं तन्नारकायुः । ( तवा ८.१० )
(स्था १०.८९ वृ प ४६४ )
(द्र नैरयिकायुष्क)
नाराच संहनन
अस्थिरचना का एक प्रकार, जिसमें अस्थि के दोनों तरफ मर्कटबन्ध होता है।
यत्र तूभयोर्मर्कटबन्ध एव तन्नाराचम् ।
नास्तित्व
१. सत् का अभाव ।
२. विनाशात्मक पर्याय ।
नालिका
अनाचार का एक प्रकार । नलिका से पासा डालकर जुआ खेलना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। 'नालिका चे 'ति द्यूतविशेषलक्षणा, यत्र मा भूत्कलयाऽन्यथा पाशकपातनमिति नालिकया पात्यन्त इति ।
(द ३.४ हावृ प ११७)
(स्था ६.३० वृ प ३३९)
'नास्तित्वम्' अत्यन्ताभावरूपं यत् खरविषाणादि' अथवा '' 'नास्तित्वे' असत्त्वे वर्त्तते, यथा अपटोऽपटत्व एवेति ।
(भग १.१३३ वृ)
Jain Education International
निःशङ्कित सम्यक्त्व का पहला आचार। जिनभाषित तत्त्वों के प्रति अंशतः या सर्वतः शङ्का का अभाव ।
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
शङ्कित – देशसर्वशंकात्मकं तस्याभावो निःशङ्कितम् । ( उ २८.३१ शावृ प ५६७ )
निःश्वास
श्वासोच्छ्वास प्राण के द्वारा श्वास के पुद्गलों का उत्सर्जन । यदेवोक्तं प्राणन्ति तदेवोक्तं निःश्वसन्तीति । ( भग २.२ वृ)
निःसृत अवग्रहमति
( तवा १.१६.१६)
(द्र निश्रित अवग्रहमति )
निकाचनसंभोज
सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार । साधुओं को उपधि, आहार, स्वाध्याय आदि के लिए निमंत्रण देना ।
'निकाए य'त्ति निकाचनं छन्दनं निमन्त्रणमित्यनर्थान्तरं, तत्र शय्योपध्याहारैः शिष्यगणप्रदानेन स्वाध्यायेन च सम्भोगिकः सम्भोगिकं निमन्त्रयन् शुद्धः'''''। (सम १२.२ वृप २२) निकाचना
कर्मकरण का एक प्रकार । वीर्यविशेष के द्वारा कर्म को उस अवस्था में व्यवस्थापित करना, जो उद्वर्तना आदि किसी भी करण के द्वारा बदला न जा सके, जिसका विपाक अनिवार्य हो ।
निकाच्यते-सकलकरणायोग्यत्वेनावश्यवेद्यतया व्यवस्थाप्यते कर्म जीवेन यया सा निकाचना । (कप्र पृ ४९ ) अनुभूतिव्यतिरिक्तोपायान्तरेण क्षपयितुमशक्यानि निकाचि
(भग ६.४ वृ)
तानि ।
निक्षिप्त
एषणा दोष का एक प्रकार। सचित्त वस्तु पर रखी हुई भिक्षा लेना ।
निक्षिप्तं सचित्तस्योपरि स्थापितम् । (प्रसा ५६८ उवृ) पृथिव्युदक-तेजो- वायु-वनस्पतिषु त्रसेषु च यदन्नाद्यचित्तमपि स्थापितं तन्निक्षिप्तम् । ( योशा १.३८ वृ पृ १३६)
For Private & Personal Use Only
निक्षेप
शब्दों में विशेषण के द्वारा प्रतिनियत अर्थ का प्रतिपादन करने की शक्ति निहित करना ।
www.jainelibrary.org