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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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दान अपने एवं पराये उपकार के लिए अपनी वस्तु का वितरण करना। स्वपरोपकारार्थवितरणं दानम्। (जैसिदी ९.१६) दानसम्भोज सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार। सांभोजिक साधुओं द्वारा सांभोजिक अथवा अन्य सांभोजिक साधुओं को शिष्य आदि देना।। 'दायणे य'त्ति दानं, तत्र सम्भोगिकः सम्भोगिकाय (वस्त्रादिभिः शिष्यगणोपग्रहासमर्थे सम्भोगिके )ऽन्यसम्भोगिकाय वा शिष्यगणं यच्छन् शुद्धः। (सम १२.२ वृ प २२)
दानश्राद्ध वह श्रावक, जो दान में विशेष रुचि रखता है। 'दानश्राद्धः' दानरुचिः।
(बृभा १९२६ वृ)
दानान्तराय कर्म अन्तराय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से द्रव्य के होने पर भी व्यक्ति गुणवान पात्र को दे नहीं पाता, दान देने का महान फल जानते हुए भी दाता के मन में दान के लिए उत्साह नहीं होता। यदुदयवशात् सति विभवे समागते च गुणवति पात्रे दत्तमस्मै महाफलमिति जानन्नपि दातुं नोत्सहते तद्दानान्तरायम्।
(प्रज्ञा २३.५९ वृ प ४७५)
दावाग्निदापन कर्मादान का एक प्रकार। जंगल जलाकर आजीविका चलाना। दवाग्नेस्तृणादिदहननिमित्तं दानं-वितरणं दवदानम्।
(प्रसा २६६ वृ प ६३) दवग्गिदावणताकम्मं-वणदवं देति। (आवचू २ पृ २२६) दासी-दासप्रमाणातिक्रम
(तसू ७.२४) (द्र द्विपदचतुष्पदप्रमाणातिक्रम) दिक्कुमार भवनपति देवनिकाय का एक प्रकार । वह देववर्ग, जिसकी जङ्घाओं के अग्रभाग और पैर अधिक सुंदर होते हैं, जिसका चिह्न है-हाथी। जङ्गाग्रपादेष्वधिकप्रतिरूपा: श्यामा हस्तिचिह्ना दिक्कुमाराः।
(तभा ४.११) दिगाचार्य वह आचार्य, जो सचित्त. अचित्त और मिश्र वस्तु की अनुज्ञानिर्णय देता है। दिगाचार्यः-सचित्ताचित्तमिश्रवस्त्वनुज्ञायी।
(तभा ९.६ वृ पृ २०८) दिग्व्रत गृहस्थ धर्म का छठा व्रत, जिसमें लोभवृत्ति तथा आक्रामक मनोवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए ऊंची, नीची और तिरछी दिशा में जाने की सीमा की जाती है। जह लोहणासणटुं संगपमाणं हवेइ जीवस्स। सव्वदिसाण पमाणं तह लोहं णासए णियमा॥ जं परिमाणं कीरदि दिसाण सव्वाण सुप्पसिद्धाणं। उवओगं जाणित्ता गुणव्वदं जाण तं पढमं॥
(काअ ३४१, ३४२) दिसिवए तिविहे पण्णत्ते-उडदिसिवए अहोदिसिवए तिरिय-दिसिवए।
(आवपरि पृ २२) दिवसचरम प्रत्याख्यान का एक प्रकार । सूर्यास्त में एक मुहूर्त शेष रहे, तब चारों आहार (अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य)का प्रत्याख्यान करना।
दान्त वह मुनि, जो अपनी इन्द्रियों और नोइन्द्रिय (चार कषाय) का दमन करता है। दंते इंदिय-णोइंदियदमेणं, इंदियदमो सोइंदियदमादि पंचविधो, णोइंदियदमो कोधणिग्गहादि चतुविधो।
(सूत्र १.१६.१ चू पृ २४६) दायक दोष एषणा दोष का एक प्रकार । अंधे, पंगु, गर्भवती स्त्री आदि से आहार लेना। 'दायग' त्ति दायकदोषदुष्टं, दायकश्चानेकप्रकार:, तथाहि-आपन्नसत्त्वा बालवत्साएवमादिस्वरूपे दातरि ददति न कल्पते।
(प्रसा ५६८ वृ प १५१)
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