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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश किरियावादी कम्मं कम्मफलं च अस्थि त्ति भणंति। __ (सूत्रचू पृ २०७) ३. वह वादी, जो मानता है कि आत्मा और कर्म का सम्बन्ध क्रिया के द्वारा ही होता है। आत्मनः कर्मणश्च सम्बन्धः क्रियात एव भवति। (आभा १.५) क्रोधनिग्रह उदय में आए हुए क्रोध का निग्रह करना, उसे विफल करना। उदीरणावलिका में आए हुए क्रोध को क्षमा आदि साधनों द्वारा विपाकोदय में न आने देना। द्विरूप: क्रोधः-उदयगतः उदीरणावलिकागतश्च, तत्रोदयगतनिग्रहः क्रोधनिग्रहः। यस्तु उदीरणावलिकाप्राप्तस्तस्योदय एव न कर्त्तव्यः क्षान्त्यादिभिर्हेतुभिः। (ओनिवृ प १३) क्रोध पाप पाप कर्म का छठा प्रकार। क्रोध की प्रवत्ति से होने वाला अशुभ कर्म का बंध। . (आवृ प ७२) क्रोधपापस्थान वह कर्म, जिसके उदय से जीव क्रोध में प्रवृत्त होता है। जिण कर्म नै उदय करी जी, क्रोध तप्त जीव रा प्रदेश। तिण कर्म नै कहियै सही जी, छठो पापठाणो रेस॥ (झीच २२.१३) क्रोधपिण्ड उत्पादनदोष का एक प्रकार। क्रोध-फल, अभिशाप आदि का प्रदर्शन कर भिक्षा लेना। क्रोधफले च शापादिके दृष्टे यः पिण्डो लभ्यते स क्रोधपिण्डः। (पिनि ४०८ वृ प ८५) क्रियारुचि १. रुचि का एक प्रकार। संयम की साधना में होने वाली रुचि। २. क्रियारुचि सम्पन्न व्यक्ति। दसणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम॥ (उ २८.२५) क्रियाविशाल पूर्व तेरहवां पूर्व । इसमें कायक्रिया, संयमक्रिया आदि क्रियाओं का भेदसहित प्रज्ञापन किया गया है। तेरसमं किरियाविसालं, तत्थ कायकिरियादियाओ विसाल त्ति-सभेदा, संजमकिरियाओ य छंदकिरियविहाणा य। (नन्दी १०४ चू पृ ७६) क्रीडा शतायु जीवन की एक दशा, दूसरा दशक। इसमें खेलकूद की मनोवृत्ति अधिक होती है, कामभोग की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न नहीं होती। बिइयं च दसं पत्तो, णाणाकिड्डाहिं किड्डुइ। न तत्थ कामभोगेहिं, तिव्वा उप्पज्जई मई॥ (दहावृ प ८) क्रीत उद्गम दोष का एक प्रकार । साधु के निमित्त खरीदकर कोई वस्तु देना। यत्साध्वर्थं मूल्येन क्रीयते तत् क्रीतम्। (योशा १.३८ वृ पृ १३३) क्रोध कषाय का एक प्रकार। आत्मा का वह अध्यवसाय, जो उपघात आदि हेतुओं से उत्पन्न होता है। उपघातादिहेतुजनिताऽध्यवसायः क्रोधः। (आभा ३.७१) क्रोधप्रत्यया क्रिया द्वेषप्रत्यया क्रिया का एक प्रकार । क्रोध के निमित्त से होने वाली प्रवृत्ति। (स्था २.३७) क्रोधविजय 'क्रोध करने से क्रोध का अंत नहीं होता, उसका परिणाम भी अच्छा नहीं होता'-इस प्रकार के चिन्तन से किया जाने वाला क्रोध के उदय का निरोध। क्रोधस्य विजयो-दुरन्तादिपरिभावनेनोदयनिरोधः क्रोधविजयः। (उ २९.६८ शावृ प ५९३) क्रोधविवेक सत्य महाव्रत की एक भावना। क्रोध के आवेश में न बोलना, क्रोध का विवेक करना, क्रोध का प्रत्याख्यान करना। क्रोधः कषायविशेषो मोहकर्मोदयनिष्यन्नोऽप्रीतिलक्षणः प्रद्वेषप्रायः। तदुदयाच्च वक्ता स्वपरनिरपेक्षो यत्किंचनभाषी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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