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________________ यदिन्द्राग्नी परमस्यां पृथिव्यां मध्यमस्यामवमस्यामुत स्थः । इस मन्त्र में-परमस्याम् । मध्यमस्याम् । अवमस्याम् । इन नामवाची पदों के साथ सर्वनाम प्रत्यय हैं, अत: प्रजापतिवाचक क के साथ यदि स्मै प्रत्यय आ जाय और ब्राह्मणादि उसको नाम मान कर अर्थ करें, तो यह अनुचित नहीं, प्रत्युत उचिततम है । पाश्चात्य वेदार्थ को भ्रष्ट करना चाहते हैं। उन का अभिप्राय यही है कि संसार वेद का गौरवयुक्त अर्थ जान ही न सके । अतः वे वेद का यथासम्भव ऐसा अर्थ चाहते हैं, जिस से यही बात हो कि आर्यों को वेदमन्त्रों से परब्रह्म का भी ज्ञान नहीं होसका । वे सदा प्रश्न ही करते रहे, कि "हम किस देव की हवि से पूजा करें ।" दो चार अल्पपठित भारतीय उन की बातें सुन कर भले ही यह कह दें कि ब्राह्मणों में कस्मै का अशुद्ध अर्थ किया गया है वरन् आर्य विद्वान् ऐसे आक्षेपों पर हँस छोड़ने की अपेक्षा और क्या कह सकते हैं । भाष्यकार पतञ्जलि मुनि कस्येत । ४ । २ । २५ ॥ सूत्र पर व्याख्या करते हुए इस आक्षेप का और ही समाधान करते हैं । वह भी देखने योग्य है सर्वस्य हि सर्वनाम संज्ञा क्रियते । सर्वश्च प्रजापतिः । प्रजापतिश्च कः। लिखा तो बहुत कुछ जा सकता है, परन्तु विद्वान् इतने से ही जान सकते हैं कि ब्राह्मणार्थ को दूषित कहने वाले पाश्रात्य जन स्वयमेव वेद विद्या में अल्पश्रुत हैं। (ख) इस के अनन्तर मेकडानल महाशय हिरण्यपाणि शब्द और उस के ब्राह्मणान्तर्गत अर्थ पर विचार करते हैं । हम कहते हैं, कि उन्हों ने हिरण्यपाणि शब्द ही क्यों लिया । वे त्रिशीर्ष त्वाष्ट्र, दध्यङ् आथर्वण, रुद्र आदि कोई शब्द भी ले लेते । इन में से प्रत्येक शब्द के साथ ब्राह्मण में कोई न कोई कथा अलङ्काररूप से कही गई है । हम भी इन सारी कथाओं का समुचित अर्थ अभी तक नहीं समझ सके । परन्तु हम यह नहीं कहते कि यल करने पर भी इन के अन्दर से कोई गम्भीर आधिदैविक तत्व न निकलेगा । अतः हम पूर्ववत् अपने पाश्चात्य मित्रों से यही प्रार्थना करेंगे, कि वे इन ग्रन्थों का अर्थ समझने में हमारा साथ दें, न कि समझने के स्थान में इन की ओर उपेक्षा दृष्टि करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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