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उर्वी पृथ्वी।
ऋ०६७।१॥ उवौं पृथ्वीम् ।
३० ७३८।२॥ पृथिवि भूतमुर्वी ।
ऋ०६।६८१४॥ उनत्ति भूमि पृथिवीमुत द्यां । ऋ० ५।८५।४॥ भूमि पृथिवीम् ।
अ० १२॥१७॥ यथेयं पृथिवी मही दाधार । ऋ० १०६०॥९॥ पृथिवीं मातरं महीम् ।
तै०ब्रा० २।४।६।८॥ शुक्राय भानवे ।
ऋ०७४|१|| सूर्यस्य हरितः।
ऋ० ५।२९।५॥ इन्द्रं मघवानमेन ।
ऋ० ७।२८५॥ तोकाय तनयाय ।
ऋ. ६।१॥१२॥ अद्भिरः।
ऋ०६।४॥६॥ आ मही रोदसी पृण ।
ऋ० ९/४१॥५॥ मही अपारे रजसी।
ऋ० ९।६८॥३॥ रोदसी मही।
ऋ० ९।१८॥५॥ बृहती मही।
ऋ० ९/५/६॥ अत्यं न वाजिनम् ।
ऋ० १२१२९/२॥ अश्वं न वाजिनम् ।
ऋ० ७७१॥ अत्यं न सप्ति ।
" ३॥२२॥१॥ तरसे बलाय।
" ३॥१८॥३॥ निघण्टु ११११॥ में वाक् के ५७ नाम आये हैं। उन में धारा, मन्द्रा, सरस्वती, जिह्वा, ऋक, अनुष्टुप् आदि नाम पढ़े गये हैं। इन में से कुछ ब्राह्मणों में भी इसी अर्थ में मिलते हैं। पहले चार नाम तो विशेष्य विशेषण भाव से स्पष्ट ही वेद में इन अथों में मिल जाते हैं । यथामन्द्रया सोम धारया।
ऋ० ९।६।१॥ अत्र मन्द्रा गिरो देवयन्तीरुपस्थुः। , ७१८॥३॥
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