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सुकेतोरपि धर्मात्मा देवरातो महाबलः । देवरातस्य राजर्षेबृहद्रथ इति स्मृतः ॥ ६ ॥
अर्थात् देवराति बृहद्रथ जनक था । यह जनक सीता के पिता महाराज सीरध्वज जनक से भी बहुत प्रार्चान हुआ है। इसी के साथ शतपथ के प्रवचन-कती याज्ञवल्क्य का संवाद हुआ, अतः शतपथ ब्राह्मण अति प्राचीन-काल का ग्रन्थ है।
उत्तर---ऐसा भ्रम मत करो । दैवराति जनक अनेक हो सकते हैं । महाभारत-काल में भी तो एक प्रसिद्ध जनक था। उसी से वैयासकि शुक का संवाद हुआ । दैवराति जनक वही या उस से कुछ ही पूर्वकालीन होसकता है, क्योंकि महाभारत में इसी प्रकरण की समाप्ति पर भीष्म जी कहते हैं कि याज्ञवल्क्य और दैवराति जनक के संवाद का तथ्य उन्होंने स्वयं देवराति जनक से प्राप्त किया था। भीष्म उवाचएतन्मयाऽऽप्तं जनकात् पुरस्तात्
तेनापि चाप्तं नृप याज्ञवल्क्यात् । ज्ञातं विशिष्टं न तथा हि यज्ञा __ ज्ञानेन दुर्ग तरते न यज्ञैः ।। १०९॥
शान्तिपर्व, अ० ३२३ ॥ शान्तिपर्व के उपदेश के समय भीष्म जी का आयु २०० वर्ष से कुछ कम ही था । इस गणनानुसार दैवराति जनक महामगरत-युद्ध से १५० वर्ष के अन्दर २ ही होसकता है । अतएव शतपथ ब्राह्मण भी महाभारत काल में ही प्रोक्त' हुआ था, इस में अणुमात्र भी सन्देह नहीं।
(ग) शतपथ ब्राह्मण और उसका प्रवचन-कर्ता याज्ञवल्क्य महाभारत कालीन ही हैं, और किसी पहले युग के नहीं, इस में शतपथान्तर्गत एक और भी साक्ष्य है । देखो
अथ पृषदाज्यं तदु ह चरकाध्वर्यवः पृषदाज्यमेवाग्रे ऽभिधारयन्ति प्राणः पृषदाज्यमिति वदन्तस्तदु ह याज्ञवल्क्यं चरकाध्वर्युरनुव्याजहार ॥
शतपथ ३ । ८ । २ । २४ ॥ ता उ ह चरकाः । नानैव मन्त्राभ्यां जुह्वति प्राणोदानौ
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