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अवान्तर ब्राह्मण अत्यन्त प्राचीन हैं । वे ब्राह्मण प्रजापति आदि ऋषियों ने कहे थे । उनकी अपेक्षा याज्ञवल्क्य प्रोक्त ब्राह्मण नवीन हैं । आख्यानान्तर्गत लेख का अभिप्राय समग्र शतपथ ब्राह्मण से नहीं, प्रत्युत उसके अवान्तर ब्राह्मणों से है। शतपथ ब्राह्मण का प्रवचन तो तभी हुआ था जब कि भाल्लवि, शाट्यायन और ऐतरेय आदि ब्राह्मणों का प्रवचन हुआ था । इन में से ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचनकर्ता महिदास सुमन्तु आदि से कुछ उत्तरकालीन है । देखो आश्वलायन गृह्यसूत्र ३।४।४॥ यहां ऐतरेय आदि सुमन्तु आदि से उत्तर गण वाले होने से उत्तर कालीन हैं । भगवान् याज्ञवल्क्य इन्हीं का सहकारी है । अतः याज्ञवल्क्य और तत्प्रोन शतपथ ब्राह्मण भी महाभारत-कालीन ही है ।
प्रश्न--इस पक्ष को स्वीकार करने में एक भारी आपत्ति है । उसकी उपेक्षा भी नहीं हो सकती । तदनुसार शतपथ ब्राह्मण महाभारत-काल का तो क्या, उस से लाखों वर्ष पुराना अर्थात् अत्यन्त प्राचीन है। महाभारत शान्तिपर्व अध्याय ३१५ में कहा हैभीष्म उवाच
अत्र ते वर्तयिष्यामि इतिहासं पुरातनम् । याज्ञवल्क्य स्य संवादं जनकस्य च भारत ॥३॥ याज्ञवल्क्यमृषिश्रेष्ठं दैवरातिर्महायशः । पप्रच्छ जनको राजा प्रश्न प्रश्नविदांवरः ॥ ४ ॥
तथा अध्याय ३२३याज्ञवल्क्य उवाच
यथार्षेणेह विधिना चरताऽवमतेन ह । मयाऽऽदित्यादवाप्तानि यज॑षि मिथिलाधिप ॥२॥
सूर्यस्य चानुभावेन प्रवृत्तोऽहं नराधिप ॥ २२ ॥ कर्तु शतपथं चेदमपूर्वं च कृतं मया । यथाभिलषितं मार्ग तथा तच्चोपपादितम् ॥ २३ ॥
अर्थात् शतपथ ब्राह्मण के प्रवचनकर्ता भगवान् याज्ञवल्क्य का संवाद दैवराति जनक से हुआ था । वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड, सर्ग ७१* में लिखा है
असीरामपुर संस्करण, सन् १८०६, सर्ग ५८ ॥
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