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६०२ पाइअसहमहण्णवो
सिणेह-सिद्धि सिणेह देखो सणेह (भग पाया १, १३-- साव्य-विलक्षण शब्द (भास ८६)। साबित भावी दूसरे जिन-देव (सम १५४)। ४ एक
पत्र १८१; स्वप्न १५; कुमा; प्रासू ) किया हुआ। १० प्रतीत, ज्ञात (पंचा ११, जैन मुनि जो नववें बलदेव के दीक्षा-गुरु थे सिणेहाल वि [स्नेहवन् । स्नेहवाला (स २६) । ११ पुं. विद्या, मंत्र, कर्म, शिल्प (पउम २०, २०६)। ५ वृक्ष-विशेष (सुपा
प्रादि में जिसने पूर्णता प्राप्त की हो वह ७७ पिंड ५६१)। ६ सर्षप, सरसों (अणु सिण्ण वि [स्विन्न] स्वेद-युक्त (गा २४४)
पुरुष (ठा १-पत्र २५; विसे ३०२८ वजा २३; कुप्र ४६०; पव १५४ हे ४,४२३; सिण्ण देखो सिन्न - शीणं (नाट-मृच्छ
१८)। १२ समय-परिमाण विशेष, स्तोक- उप पृ६६)। ७ भगवान महावीर के कान २१०) 10
विशेष (कप्प)। १३ न. लगातार पनरह। से कील निकालनेवाला एक वणिक (चेइय सिह पुन [शिश्न] पुंश्चिह्न, पुरुष-लिंग
दिनों के उपवास (संबोध ५८) । १४ पुंन. ६)। ८ एक देव-विमान (सम ३८; आचा (प्राप, दे ४,५)।
महाहिमवंत आदि अनेक पर्वतों के शिखरों २, १५, २, देवेन्द्र १४५)। ६ यक्ष-विशेष सिण्हा स्त्री [दे] १ हिम, आकाश से गिरता
का नाम (ठा ८-पत्र ४३६; 8--पत्र (आक)। १० पाटलिसंड नगर का एक राजा जल-करण (दे ८,५३)। २ अवश्याय, कुहरा,
४५४, इक)। क्वर पुन [rक्षर गमो । (विपा १, ७-पत्र ७२)। ११ एक गाँव कुहासा (दे ८, ५३ पात्र)।
अरिहंताणं' यह वाक्य (भाव) गंडिया का नाम (भग १५-पत्र ६६४), "पुर न
स्त्री ["गण्डिका] सिद्ध-संबन्धी एक ग्रन्थ- [पुर] अंग देश का एक प्राचीन नगर (सुर सिण्हालय पुंन [दे] फल-विशेष (अनु ६) ।
प्रकरण (भग)। चक्क न [°चक्र) अहंन्। २, ६८), वग न [वन] वन-विशेष सिति देखो सिइ = (दे) (वव १०)।
प्रादि नव पद (सिरि ३४) । न न [न] (भग)। सित्त वि [सिक्त सींचा हुआ (सुर ४, १४५ पकाया हुआ अन्न (सुपा ६३३) पुत्त पुं सिद्वत्या स्त्री [सिद्धार्था] १ भगवान् अभिकुमा)।
[पुत्र] जैन साधु और गृहस्थ के बीच की नन्दन-स्वामी की माता का नाम (सम सित्तुंज देखो सेत्तुंज (सूक्त ५२) । अवस्थावाला पुरुष (संबोध ३१; निचू१) १५१) । २ एक विद्या (पउम ७, १४५)। सित्य न [दे] गुण, धनुष की डोरी; 'सित्थं
मणोरम पुं [मनोरम] पक्ष का दूसरा ३ भगवान संभवनाथजी की दीक्षा-शिविका व असोत्तगयं मह मरणं देव दूमेई' (कुप्र ५४,
दिन (सुज १०, १४)। राय पुं [राज] (विचार १२६)।
विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गुजरात का सिद्धत्थिया स्त्री सिद्धाथिका] १ मिष्ट-वस्तुपात्र) सिस्थ न [सिक्थ] १ धान्य-करण (पएह
एक सुप्रसिद्ध राजा, जो सिद्धराज जयसिंह के
विशेष (पण १७-पत्र ५३३)। २ प्राभसिस्थय १, ३-पत्र ५५; कप्प; प्रौपः नाम से प्रसिद्ध था (कुप्र २२; वान १५)
रण-विशेष, सोने की कंठी (प्रौप)। अणु १४२) । २ मोम (दे १, ५२ पाम: + वाल पुं [पाल] बारहवीं शताब्दी का उप ७२८ थी)। ३ ओपधि-विशेष, नीली, गुजरात का एक प्रसिद्ध जैन कवि (कप्र सिद्धय पु[सिद्धका १ वृक्ष-विशेष, सिंदुवार नील (हे २, ७७)। ४ पुन, कवल, ग्रास १७६) । °सेण पु [सेन] एक सुप्रसिद्ध वृक्ष, सम्हालु का गाछ । २ शाल वृक्ष (हे 'मासे मासे उजा अज्जा एगसित्येण पारए' प्राचीन जैन महाकवि और ताकिक प्राचार्य १. १८७) (गच्छ ३, २८ प्राप्र)।
(सम्मत्त १४१). °सेणिया स्त्री [श्रेणिया] सिद्धा स्त्री सिद्धा] १ भगवान महावीर की सिस्था स्त्री [दे] १ लाला। २ जीवा, धनुष :
वारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक अंश (णंदि) शासन-देवी, सिद्धायिका (संति १०) । २ को डोरी (दे१,५३) ।।
'सेल' [ शैल] शत्रुतय पर्वत, सौराष्ट्र । पृथिवी-विशेष, मुक्ति-स्थान, सिद्ध-शिला (सम
देश में पालीताना के पास का जैन महा- सित्थि [६] मत्स्य, मछली (दे ८, २८) ।
२२)। तीर्थ (सुख १, ३, सिरि ५५२) + हेम सिद्धाइया स्त्री [सिद्धायिका भगवान् महासि विदे] परिपाटित, विदारित, चीरा नामाप्राचार्य हेमचन्द्र विरचित प्रसिद्ध वीर की शासन-देवी (गण १२) । हुया (दे ८, ३०) ।
। व्याकरण-ग्रन्थ (मोह २)।सि वि सिद्ध] १ मुक्त, मोक्ष प्राप्त,निर्वाण
सिद्धाययण पुन [सिद्धायतन] १ शाश्वत प्राप्त (ठा १-पत्र २५; भग; कप्प; विसे
सिद्धत पुं[सिद्धान] १ आगम, शास्त्र (उवः मन्दिर-देव-गृह । २ जिन-मन्दिर (ठा ४, ३०२७, २६७ सम्म ८६: जी २५, सुपा बहा रणदि) । २ निश्चय (स १०३)।- २-पत्र २२६%3 इका सूर ३.१२)। ३ प्रमक २४४; ३४२) । २ निष्पन्न, बना हुआ सिद्धत्थ पु[दे] रुद्र, देव-विशेष (दे ८, पर्वतों के शिखरों का नाम (इक; जं ४)। (प्रासू १५) । ३ पका हुआ (सुपा ६३३)। ३१)।
सिद्धालय बीन [सिद्धालय] मुक्त-स्थान, ४ शाश्वत, नित्य (चेइय ६७६)। ५ प्रतिष्ठित, सिद्धत्थ वि[सिद्धार्थ कृतार्थ, कृतकृत्य सिद्ध-शिला (प्रौपः पउम ११, १२१, इक)। लब्ध-प्रतिष्ठ (चेइय ६७६ सम्म १)। ६ (पउम ७२,११) २६. भगवान महावीर स्त्री.या (ठा ८-पत्र ४४०; सम २२)।निश्चित, निीत (सम्म १)। ७ विख्यात, के पिता का नाम (सम १५१, कप्पा पउम सिद्धि स्त्री [सिद्धि] १ सिद्ध-शिला, पृथिवीप्रसिद्ध (चेइय ६.०) । ८ शब्द-विशेष, २, २१ सुर १,१०)। ३ ऐरवत वर्ष के विशेष, जहाँ मुक्त जीव रहते हैं (भगः उव; ठा
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