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800 पाइअसद्दमहण्णवो
सिंहल-सिचय वलोक पुं [वलोक] १ सिह की तरह सिक्किआ स्त्री [शिक्या, शिक्यिका] रस्सो सिक्खा (अप) स्त्री [शिखा] छन्द-विशेष पीछे की तरफ देखना। २ छन्द-विशेष की बनी हुई एक चीज जो चढ़ने के काम (पिंग)। (पिंग) सण न [सन] प्रासन-विशेष, में प्राती है (सिरि ४२४)
सिक्खाण न [शिक्षाण] प्राचार-सम्बन्धी राजासन, राज-गद्दी (महा)। देखो सीह ।। सिक्ख सक [शिक्ष ] सीखना, पढ़ना, ।
उपदेश देनेवाला शास्त्र (कप्प) सिहल [सिहल] १ देश-विशेष, सिंहल- प्रभ्यास करना । सिक्खइ (गा ४७५. ५२४), सिक्खाव सक [शिक्षय ] सिखाना, पढ़ाना, द्वीप, लंका द्वीप (इका सुर १३, २५, २७)। सिक्खंतु, सिक्खह (गा ३६२; गुण ४)।
अभ्यास कराना। सिक्खावेइ (पि ५५६) । २ पुंस्त्री. सिंहल-द्वीप का निवासी (प्रौप)। भवि. सिक्खिस्सामि (स्वप्न ६७)। वकृ.
भवि. सिक्खावेहिति (प्रौप) । संकृ.सिक्खास्त्री. °ली (प्रौपा रणाया १, १-पत्र ३७)।। सिक्खंत, सिक्खमाण (नाट--मृच्छ १४१;
वेत्ता (औप)। हेकृ. सिक्खावित्तए,
सिक्खावेत्तए; सिक्खावेउं (ठा २, सिंहलिआ स्त्री [दे] शिखा, चोटी (पान)- पि ३६७; सून १,१४,१) संकृ.सिक्खि सिंहिणी स्त्री [सिहिनी] छन्द-विशेष (पिंग)।
। (नाट-रत्ना २१)। हेकृ. सिक्खिउं (गा। १--पत्र ५६: कस; पंचा १०, ४८ टी) ____८६२)।
सिक्खावअ देखो सिक्खवअ (गा ३५८% सिंहीभूय न [सिंहीभूत] व्रत-विशेष, मिले
सिहामृत व्रतविशष, सिक्ख देखो सिक्खाव । वकृ.सिक्खयंत । प्राकृ ६१) चतुर्विध आहार की संलेखना--परित्याग
(पउम ८२, १२) । कृ. सिक्खगोअ (पउम सिक्खावण न [शिक्षण सिखाना, सीख, (संबोध ५८)। ३२, ५०)
हितोपदेश (सुख २. १६७ प्राकृ ६१कप्पू)। सिकता । स्त्री [सिकता] बालू, रेत (अणु सिक्खग वि शिक्षक शिक्षा-कर्ता, 'दुक्खाणं
सिक्खावणा स्त्री [शिक्षणा] ऊपर देखो सिकया ) २७० टी पउम ११२, १७ विसे सिक्खगं तं परिणदमिह भे दुक्कयं (रंभा)।
(सूअनि १२७ उप १५०टी) १७३६)।सिक्खग [शक्षक] नूतन शिष्य (सूअनि
सिक्खाविअ वि [शिक्षित] सिखाया हुआ सिक्क ' [सृक्क] होठ का अन्त भाग (दे १२८)। ।
(भगः पउम ६७, २२; गाया १,१-पत्र
६०० १,१८--पत्र २३६) सिक्खण न [शिक्षण १ अभ्यास, पाठ |
सिक्खिअ वि [शिक्षित] सिखा हुआ, सिक्कग पुन [शिक्यक] सिकहर, सीका, छींका, (कुप्र २३०)। २ सीख, उपदेश (सुर ८, रस्सी की बनी डोलनुमा एक चीज जो छत ५१)। ३ अध्यायन, पाठन (सिरि ७८१)
जानकार, विद्वान् (गाया १, १४-पत्र में लटकायी जाती है और उसमें चीजें रख सिक्खव देखो सिक्खाव। सिक्खवेसु (गा मिक्खिर विशिक्षित
१८७ प्रौप)।
सीखने की दी जाती हैं जिससे उसमें चीटियाँ न चढ़े ७५०; ६४८)। कवकृ. सिक्खविजमाण
आदतवाला, अभ्यासी (गा ६६१)। और उसे बिल्ली न खाय (राय ६३, उवाः (सुपा ३१५)। कृ.सिक्खवियव्व- (सुपा निचू १: श्रावक ६३ टी)।
सिखा स्त्री [शिखा] छन्द-विशेष (पिंग)।
२०७)। सिक्कड पुंन [दे] खटिया, मचियाः 'कोव- सिक्खवअ वि [शिक्षक शिक्षा देनेवाला,
सिखि देखो सिहि-शिखिन् ( नाट-विक्र भवणम्मि जरजिन्नसिक्कडे पडइ जरियव' पढ़ानेवाला, शिक्षक (प्राकृ ६१) (सुपा ६) सिक्खविअ वि [शिक्षित] १ सिखाया
सिगया देखो सिकया (राज)सिक्कय देखो सिक्कग (राय ६३: श्रावक ३ हपा, पढाया हा (गा ३५२)। २. सिगाल दखा सिआल (सरण) टी: स ५८३)
शिक्षा देना, अभ्यास कराना, मध्यापन (सुपा सिगाली देखो सिआली = शृगाली (चारु सिक्करा स्त्रो [शर्करा] खंड, टुकड़ा: ‘सय.. २५) ।
११)10 सिक्करो' (स ६६३)
सिक्खा नी [शिक्षा] १ सजा, दण्ड (कुप्र सिग्ग विदे] १ श्रान्त, थका हुमा (दे ८,
११०)। २ वेद का एक अङ्ग, वर्गों के २८ ओघ २३) । २ न. परिश्रम, थकावट सिकरिअ न [सीत्कृत] अनुराग से उत्पन्न
उच्चारण सम्बन्धी ग्रंथ-विशेष, अक्षरों के (वव ४)। आवाज (गा ३६२)
स्वरूप को बतलानेवाला शास्त्र; 'सिक्खावा- सिग्गु [शि] वृक्ष-विशेष, सहिजना का सिकरिआ स्त्री (दे. श्रीकरी] जहाज का । गरणछंदकप्पडढो' (धर्मवि ३८, प्रौप; कप्पा पेड़ (दे, २०; पात्र)। आभरण-विशेष (सिरि ३८७)
अंत)। ३ शास्त्र और प्राचार सम्बन्धी सिग्ध न [शीघ्र १ जल्दी, तुरंत । २ वि. सिकार पुं[सोत्कार] १ अनुराग की आवाज । शिक्षण, अभ्यास, सीखः सिखाई, उपदेश शीघ्रता-युक्त, त्वरा-युक्त (पाप; स्वप्न ५४; (गा ७२१; भविः सण; नाट-मृच्छ १३६)। (औपबृह १; महा: कुप्र १९७) वय न चंड, कप्पू, महाः सुर १, २१०, ४, ६६ २ हाथी की चिल्लाहट; कुंतविरिणभिन्नकरि- [व्रत व्रत-विशेष, जैन गृहस्थ के सामायिक सुपा ५८०)।कलहमुक्कसिक्कारपउरम्मि "समरम्मि' (मि आदि चार व्रत (औप; महा; सुपा ५४०)। सिचय पुं[सिचय] वन, कपड़ा (पाम:
वय न [पद] शिक्षा-स्थान (प्रोप)। गा २६१; कुप्र ४३३)।
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