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२६ गौ गया । ३० छाया । ३१ शिसपा, सीसम का पेड़ । ३२ पक्षि- विशेष (हे १, २६ ) स [a] शनि-भोजन (सूच २, १५६ः प्राचा १, २, ५, १ ) 1 सामाइन [ सामाविक][संपय-विशेष
सम-भाव, राग-द्वेष-रहित अवस्थान (विसे २६५६ २६८०३ २६८१ २६६०; कसः श्रपः नव)
सामाइन वि [ सामाजिक ] समाज का समूह से संबन्ध रखनेवाला, सभ्य (उत्त ११, २६ सुख ११, २६) ।
सामाइअवि [ श्यामायित ] रात्रि - सदृश ( गा
५६) । -
सामाग पुं [ श्यामाक] भगवान् महावीर के समय का एक गृहस्थ, जिसके ऋजुवालिका नदी के किनारे पर स्थित क्षेत्र में भगवान् महावीर को केवलज्ञान हुआ था (कप्प ) ।
देखो सामाय = श्यामाक 1 सामाजिअ देखो सामाइन सामाजिक सामिद्धि श्री [समृद्धि] १ प्रति संपत्ति २ वृद्धि (१४४: कुमा) (हास्य १८) सामाण देखो समाय= समान लोहो नि सामिधेय व [सामिधेय ] का अंत हलिकाष्ठ-समूह द्दखंजर कद्दमकि मिरागसामाणी' (कम्म १, ११५६१) २०३ पृष्फ २८७ ) । सामाण न [सामान] एक देव-विमान (सम ३३) ।
=
सामाजिवि [ सामानिक] १ संनिहित, निकटवर्ती नजदीक में स्थित (२६७६) । २. इन्द्र के समान ऋद्धिवाले देवों की एक जाति (सम ३७ ठा ३, १ –पत्र ११६; उवा; औप: पउम २, ४१)
सामापक [ श्यामाय ] काला होना सामाइ, सामाय, सामायंति ( गउड ) । वकृ. सामायंत (गउड) 1
सामाय देखो सामय = श्यामाक (राज) । सामा[सामा] संयम - विशेष, सामापिक (बिसे १४२१ संबध ४५ ) - सामायारिवि [ समाचारिन् ] श्राचरण करनेवाला (उ) 1
सामायारी स्त्री [ सामाचारी ] साधु का आचार - क्रिया-कलाप ( गच्छ १, १५ उव; उप ६६९) ।
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पाइअसहमणव
सामास देखो सामास = श्यामा-श सामासिय[सामासिक ] समास-संवन्धी (१४७)
सामि सामिअ
।
उवः कुमा ।
वि [स्वामिन् ] १ नायक, अधिपति २ ईश्वर, मालिक (सम ८६ विपा १, १ टी --पत्र ११; प्रासू ८८) श्री. जी (महा) ३ पुं. प्रभु भगवान् (कुमा १, १३७, ३७ सुपा ३५) । ४ राजा नृप । ५ भर्ता, पति (महा) । "कुट्ठ [कुछ ] ऐखत वर्ष में उत्पन्न एक्कीसवें जिन देव (पव ७) | देखी साम- कोटू । [[]] मालकियत चाधिपत्य (सम २२)["पुर] नगर- विशेष ( उप ५६७ टी) ।
1
सामिअवि [दे] दग्ध, जलाया हुधा (दे ८२३) ।
सामिअवि [ शमित ] शान्त किया हुआ (सुपा १५) ।
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सामाइज सायं
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सामुदायि वि[सामुदानिक ] १ भिक्षासंबन्धी, भिक्षा से लब्ध (ठा ४, १-पत्र २१२ सू २ १५६ ) । २ भिक्षा, भैक्ष (भग ७, १ टी -पत्र २९३ ) 1
,
सामुद [दे] इसु-समान तुरा-विशेष (दे पुं ८, २३)
१
सामुद वि [सामुद्र, 'क] मुद्र सामुद्दय सम्बन्धी, सागर का ( गाया १, ८-पत्र १४५३ भग ५, २– पत्र २११; २. छन्द-विशेष सूचन
सामिली न [स्वामिलिन् ] १ गोत्र - विशेष, जो वत्स गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७--पत्र ३६० ) 1सामिसाल देखो सामि (पम्म ८६८ सुपा २६) श्री. खी (स ३०६) सामिद्देय देखो सामिधेय (स १४० १४४० महा) 1
सामीर वि[सामीर ] समीर-संबन्धी (गउड)।सामंअ ] [] - विशेष व जिसकी कलम की जाती है (पान) । सामुग्ग वि [ सामुद्ग] संपुटाकारवाला; 'सामुनि' (श्रीप)। सामुद्देश्य वि[सामुच्छेदिक] वस्तु को एकान्त माननेवाला एक मत और साथ उसका अनुयायी (ठा ७ – पत्र ४१०३ विसे २३८६)
सामुदाइय वि [ सामुदायिक ] समुदाय का, समुदाय से संबन्ध रखनेवाला (गाया १, १६ – पत्र २०८ ) ।
१३) 1
सामुदिअ न [सामुद्रिक] शास्त्र-विशेष. १ शरीर पर के चिह्नों का शुभाशुभ फल बतलानेवाला शास्त्र (श्रा १२ ) । २ शरीर की रेखा आदि चिह्न 'सामुद्दियलक्खणारा लक्खपि ' ( संबोध ४२ ) । ३ वि. सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञाता ( कुप्र५) । सामुयाणिय देखो सामुदाणिय (उत्त १७, ?ε) 10
साय देखो साइज्ज = स्वाद, सात्मी + कृ । सायए ( भाचा २, १३, १), साएज्जा ( वव १ ) 1
साय देखो साग = शाकः 'भोत्तव्वं संजएण समियं न सायसूयादिक' ( परह २, ३ - पत्र १२३; पण १ - - पत्र ३४ ) | सायन [सात] १ सुख ( भगः उव ) । २ मुख का कारण-भूत कर्मसम्म ११३ ५५) । ३ एक देव विमान (सम ३८ ) | वाइ वि [वादिन] सुख-सेवन से ही सुख की उत्पत्ति माननेवाला (ठा ८-पत्र ४२५ ) । V [वादन] एक प्रसिद्ध राजा (काल) गारव [भीरव] १ सुखशीलता (सम ८) । २ सुख का गवं (राज) सुक्खन ['सौख्य] अतिशय सुख (जीव ३) । देखो सान = सात 1
[स्वाद ] रस का अनुभव (वि ७६६६ पउम ३३, १०; उप ७६८ टी) सायन [ दे] १ महाराष्ट्र देश का एक नगर । २ दूर (दे ८, ५१) । सायं भ [ सायम् ] १ सन्ध्या समय, शाम (पाम; गउड कप्पू ) । २ सत्य, सच्चा (ठा
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