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सामइअ-साम
पाइअसहमहण्मयो
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सामइअ देखो सामाइअ (विसे २६२४, सामा। स्त्री [सामग्री] १ समस्तता। २ सामरि पुंस्त्री [दे. शाल्मलि] शाल्मलो वृक्ष, २६३३, २६३४; २६३६) ।
कारण-समूह (सम्मत्त २२४; महा; कप्पू: सेमर का पेड़ (दै ८, २%; पाम)। सामइअ) पुं[सामयिक] १ एक गृहस्थ ।
सामरिस वि [साम] ईर्ष्यालु, असहिष्णु सामइग का नाम (सूअनि १६१)। २!
सामच्छ सक [दे] मन्त्रणा करना, पर्या- (सुर २,६०) वि. समय-सम्बन्धी (पंच ५, १६६)। ३
लोचन करना । संकृ. सामच्छिऊण (पउम सामल वि [श्यामल] १ काला, कृष्ण वर्णसिद्धान्त का जानकार (पिंडभा ६)। ४२,६५)
वाला (से १, ५६ सुर ३, ६५; कुमा)। २ मागम-आश्रित, सिद्धान्त-प्राश्रित (ठा ३, सामन्य
सामच्छ न [सामर्थ्य] समर्थता, शक्ति (हे समय
पुं. एक वणिग---बनिया (सुपा ५५५) ३–पत्र १५१)। ५ बौद्ध विद्वान् (दसनि । २, २२: कुमा)
| सामलइअ वि [श्यामलिस] काला विया सामच्छण देखो सामथण (राज)।- हुग्रा (से ८, ६६) सामइग देखो सामाइअ (विसे २७१६) । सामज न [साम्राज्य] सार्वभौम राज्य, सामलय वि [श्यामलक], काला ! २ बड़ा राज्य (उप ३५७ ठी)।
काला पानीवाला ( से १, ५६) । ३ पुं. सामगि वि [सामायिकिन् । सामायिक
सामण । वि [श्रामण, °णिक] श्रमण- वनस्पति-विशेष (राज)। वाला (विसे २७१६) सामणिय संबन्धी (राज)
सानला स्त्री [श्यामला] १ कृष्ण वर्णवाली सामंत पुन [सामन्त] १ निकट, समीप, पास; साणिय देखो सामण्ण = श्रामण्य (सूम १, स्त्री। २ सोलह वर्ष की स्त्री, श्यामा (वजा 'तस्स एणं अदूरसामंते' (णाया १, २-पत्र ७, २३; दस ७,५६)।
११२)। ७८; उवा; कप्प)। २ अधीन राजा सामणेर पुं[श्रामाण] श्रमण का अपत्य,
सामलि पुंस्त्री [शाल्मलि सेमल का गाछ (महा काल)। ३ अपने देश के अनन्तर देश साधु की संतान (सून १, ४, २, १३)
(सून १, ६, १८ उत्रप्रौप)।का राजा, समीप देश का राजा (कप्प)। सामण्ण न [श्रामण्य] श्रमणता, साधुपन
सामलिय देखो सामलइअ (सुर ४, १२७)। सामंती स्त्री [दे] सम-भूमि (दे ८, २३)। (भगः दस २, १; महा)।
सामली देखो सामला (गउडा गा १२३, सामंतोवणिवाइय न [सामन्तोपनिपातिक]
२३८ ७६४, सुपा १८५) । सामण्ण पुं [सामान्य १अपनी देवों अभिनय का एक भेद (राय ५४)।
सामलेर पु[शावलेय] काबरचित गौ-चित
का एक इन्द्र(ठा २,३-पत्र ८५)। २ न. सामतोवणिवाइया, स्त्री [सामन्तोपनिपा
कबरी गाय का वत्स (अणु २१७)। वैशेषिक दर्शन में प्रसिद्ध सत्ता पदार्थ (धर्मसं सामंतोवणीआ तिकी] क्रिया-विशेष, । २५६) । ३ वि. साधारण (गा ८६१;
साम स्त्री [श्यामा] १ तेरहवें जिनदेव की चारों तरफ से इकट्ठ हुए जन-समुदाय में
माता (सम १५१)। २ तृतीय जिनदेव की ६६६ नाट-रत्ना ८१)। होनेवाली क्रिया--कम बन्ध का कारण (ठा
प्रथम शिष्या (सम १५२)। ३ रात्रि, रात सामस्थ देखो सामच्छ (दे) । संकृ. सामत्थे२, १-पत्र ४०%; नव १८)
(सून २, १, ५६; से १,५६ोध ३८७)। ऊण (काल)।
४ शक्र की एक अग्र-महिषी-पटरानी (पउम सामंतोवायणिय पुन सामन्तोपपातनिक] सामथ देखो सामच्छ = सामर्थ्य (हे २,
१०२, १५६)। ५ प्रियंगु वृक्ष (परण १अभिनय-विशेष (ठा ४, ४–पत्र २८५) २२; कुमाः ठा ३, १-पत्र १०६, सुपा
पत्र ३३, १७–पत्र ५२६; अनु ४)। ६ सामक्ख देखो समक्खः संभरिय चिय वयणं, २८२; प्रासू १४४) ।
एक महौषधि (ती ५)। ७ लता-विशेष, 'ज त प्रणरएणमित्तसामक्खं । भरिणयं अईयकाले' सामथ । न [दे] पर्यालोचन, मन्त्रणा साम-लता (प्रौप)। ८ सोम लता (से १, (पउम १०, ८४) सामस्थण कास हरामोत्ति अज्ज दव्वं
५६)। ६ नारी, स्त्री (से १, ५६; अणु सामग देखो सामय = श्यामाक (राज)। इति सामत्थं करेंति गुज्झ' (पएह १, ३
१३६)। १० श्याम वर्णवाली स्त्री (कुमा)। पत्र ४६; पिंड १२१; बृह १) सामग्ग सक [श्लिष् ] आलिङ्गन करना।
११ सोलह वर्ष की उम्रवाली स्त्री (वज्जा सामन्न देखो सामग= श्रामण्य (भगः कप्प; सामग्गइ (हे ४, १६०)।
१०४) १२ सुन्दर स्त्री, रमणी (से १, ५६ सुर १, १)
गउड)। १३ यमुना नदी। १४ नील का सामग्ग । न[सामग्र्य सामग्नी, संपू. सामन्न देखो सामण्ण = सामन्य (उवा स
गाछ । १५ गुग्गुल का गाछ। १६ गुडूची, सामग्गिअर्णता, सकलता (से ६, ४७;
३२५; धर्मवि ५६; कम्म १, १०, ३१) आचा २, १, १, 5 महा) ।
गला । १७ गुन्द्रा। १८ कृष्णा । १६ सामय सका प्रति + ईक्ष ] प्रतीक्षा करना, अम्बिका । २० कस्तुरी। २१ वटपत्री। २२ सामग्गिअ वि [श्लिष्ट] प्रालिङ्गित (कुमा) बाट जोहना (हे ४, १६३; षड्)।
वन्दा की लता। २३ हरी पुनर्नवा । २४ सामग्गिअ वि [दे] १ चलित। २ प्रव- सामय पुं [श्यामाक] धान्य-विशेष, साँवा (हे पिप्पली का गाछ । २५ हरिद्रा, हलदी । लम्बित । ३ पालित, रक्षित (दे ८, ५३) १,७१; कुमा)।
२६ नील दूर्वा । २७ तुलसी । २८ पद्मबीज । ११२
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