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समाहिअ-समीहा
पाइअसहमहण्णवो समाहिअ वि [समाहृत] गृहीत (प्राचा १, समिआ स्त्री. अ. ऊपर देखो (भग २, ५-पत्र समिद्ध वि[समृद्ध] १ अतिशय संपत्तिवाला
| १४०; आचा १, ५, ५, ४), 'समियाए' (प्रौपः रणाया १, १ टी-पत्र १)। २ वृद्ध, समाहिअ वि [समाख्यात] सम्यग् कथित (प्राचा १, ५, ५, ४)।
बढ़ा हुया (प्रासू १३)।(सूत्र १, ६, २६; आचा २, १६, ४)। समिआ स्त्री सिमिता] गेहूँ का आटा (णाया समिद्धि स्त्री [समृद्धि] १ अतिशय संपत्ति । समाहुत्त (अप) नीचे देखो (भवि)। .१, ८-पत्र १३२; सुख ४, ५) ।
२ वृद्धि (हे १, ४४ षड्; कुमाः स्वप्न ६५; समाहअ वि समाहत] बुलाया हया, पाका- समिआ स्त्री समिका. शमिका. शमिता] प्रासू १२८) ल व लसमृद्धिवाला रित (साधं १०५) चमर आदि सब इन्द्रों की एक अभ्यन्तर
(सुर १, ४६) समाहे सक [समा + धा] स्वस्थ करना, परिषद् (भग ३, १० टी-पत्र २०२)।- समिर पुं[समिर] पवन, वायु (सम्मत्त 'सुकन्झाणं समाहेइ' (संबोध ५१)। समिइ स्त्री [समिति] १ सम्यक् प्रवृत्ति,
१५६) समि स्त्री [शमि देखो समी (अणुः पाप्र)। उपयोग-पूर्वक गमन-भाषण आदि क्रिया (सम
समिरिई। देखो स-मिरिई असमरी
समिरीय चिक ।समि
१०; ओघभा ३; उवः उप ६०२; रयण ४)। वि [शमिन्, क] १ शम-युक्त। समिअ (२ पुं. साधु, मुनि (सुपा ४३६)
२ सभा, परिषद्, 'नथि किर देवलोगेवि
समिला स्त्री [शमिला, सम्या] युग-कोलक, ६४२; उप १४२ टी)। देवसमिईसु प्रोगासो' (विवे १३६ टीः तंदु
गाड़ी की घोंसरो में दोनों प्रोर डाला जाता समिअ देखो संत - शान्त (सिरि ११०४)। २५ टी)। ३ युद्ध, लड़ाई (रयण ४)। ४
लकड़ी का खीला (उप पृ१३८; सुपा २५८)। निरन्तर मिलन (अणु ४२)।।
समिल्ल देखो संमिल्ल । समिल्लइ (षड्) समिअ वि [समित] सम्यक् प्रवृत्ति करनेवाला, सावधान होकर गति प्रादि करनेवाला समिइ स्त्री [म्मृति] १ स्मरण । २ शास्त्र
समिहा श्री [ समिध ] काष्ठ, लकड़ी (अंत (भगः उप ६०४; कप्पः प्रौपः उवः सून १, विशेषः मनुस्मृति प्रादि (सिरि ५५)।
११; पउम ११, ७६; पिंड ४४०)। १६, २पब ७२) । २ राग-आदि से रहित
समी स्त्री [शमी] १ वृक्ष-विशेष, छोंकर का समिइम वि [समितिम] गेहूँ के आटे की (सूत्र १, ६, ४)। ३ उपपन्न (सुज ६)।
पेड़ (सूम १, २,२, १६ टीः उप १०३१ बनी हुई मंडक आहि वस्तु (पिंड २०२)। ४ सम्यग् गत (सूत्र १, ६, ४)। ५ सन्तत
टी, वजा १५०)। २ शिवा, छिमी, फली (ठा २,२-पत्र ५८)। ६ सम्यग व्यवस्थित समिजग पुं सामञ्जक] श्रीन्द्रिय जन्तु की (पाप) खल्लयन [दे] छोंकर की पत्ती. (सूम २, ५, ३१)। एक जाति (उत्त ३६, १३६)।.
शमी वृक्ष का पत्र-पुट (सूम १, २, २, १६ समिअ वि[सम्यञ्च ] १ सम्यक् प्रवृत्ति- समिक्ख सक [सम् + ईक्ष् ] १ पालोचना
टीः बृह १)। वाला (भग २, ५-पत्र १४०)। २ अच्छा, करना, गुणदोष-विचार करना । २ पर्यालोचन समीअ देखो समीय (नाट-मालवि ५)।सुन्दर, शोभन, समीचीन (सूम २, ५, ३१)। करना, चिन्तन करना । ३ अच्छी तरह समीकय वि [समीकृत समान किया हुआ, समिअ वि शिमित] शान्त किया हुआ देखना, निरीक्षण करना । समिक्खए (उत 'जं किचि प्रणगं तात तंपि समीकतं' (सूत्र (विसे २४५८; औप; पण्ह २, ५-पत्र २३, २५) । संकृ. समिक्ख (सूभ १, ६, १, ३, २, ८ गउड)। १४८; सरण)।
४; उत्त ६, २; महा; उपपं २५)।- समीचीण वि सिमीचीन] साधु, सुन्दर, समिअ वि [श्रमित] श्रम-युक्त (भग २,
समिक्खा स्त्री [समीक्षा] पर्यालोचना (सूम शोभन (नाट-चैत ४७)। ५-पत्र १४०)।
समीर सक[सम् + ईरय ] प्रेरणा करना। समिअ वि[समिक] सम, राग-द्वेष-रहितः
समिक्खिअ वि [समीक्षित] पालोचित समीरए (पाचा १, ८, ८, १७)। 'समियभावे' (पएह २,५–पत्र १४६)
(धर्मसं ११११) समिअ न [साम्य] समता, रागादि का
समीर पुं[समीर] पवन, वायु(पान; गउड)। प्रभाव, सम-भाव (सूत्र १, १६, ५; आचा समिञ्च देखो समे।
समारण पु[समीरण] ऊपर देखो (गउड)। समिच्छण न [समीक्षण] समीक्षा (भवि) सम.ल देखो संमील । समीलइ (षड् )।समिअ वि [संमित प्रमाणोपेत (णाया १, | समिच्छिय देखो समिक्खिअ (भवि) समीव वि [समीप] निकट, पास (पउम १-पत्र ६२; भग)।
समिज्मा अक[सम् + इन्ध ] चारों तरफ ६६, ८ महा)। समिअ वि [सामित] गेहूँ के भाटा का बना से चमकना । समिज्झाइ (हे २, २८) । वकृ. समीह सक[सम + ईह ] चाहता, वांछा हुमा पक्वान्न-विशेष, मण्डक (पिंड २४५)। समिझन्त (कुमा ३, ४)।
करना । वकृ. समीहमाण (उप ३२० टी)। समिअंभ[सम्यग ] अच्छी तरह (माचा; समिता देखो समिआ = समिका (ठा ३, समीहा बी [समीहा] इच्छा, वांछा (उप पएह २, ३-पत्र १२३)।
२-पत्र १२७, भग ३, १०-पत्र ३०२) १०३१ टी)
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