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२२ पाइअसद्दमहण्णवो
अच्छिप्प-अजिर अच्छिप्प वि अस्पृश्य] छूने के अयोग्य अच्छोडिअ वि [आच्छोटित] पटका हुआ, | अजागणा स्त्री [अज्ञान] जानकारी-रहित बे(सुपा २८१)। प्रास्फालित (कुप्र ४३३)।
समझी; 'अधारणाए सजत्ती न कया तम्मि अच्छिप्पंत वि [अस्पृशत स्पर्श नहीं करता | अछिप्प वि [अस्पृश्य स्पर्श करने के अयोग्य, (श्रा २८)। हुमा (श्रा १२)।
'सो सुरणपोव्व अछिप्पो कुलुग्गयाणं, न उण अजाणुय वि [अज्ञायक] प्रज्ञ, नहीं जाननेअच्छिय वि [आसित] बैठा हुआ (पि ४८०, पुरिसो' (सुपा ४८७)।
वाला (ठा ३, ४)। ५६५)।
अज देखो अय = अज (पउम ११,२५,२६)।। अजाय वि [अजात] अनुत्पन्न, अनिष्पन्न । अच्छिवडण न [दे] आँख का मूंदना (दे १, अजगा देखो अयगर (भवि)।
कप्प [कल्प] शास्त्रों को पूरा-पूरा नहीं ३६)।
अजड पुं [दे] जार, उपपति (षड्)। जाननेवाला जैन साधु, अगीतार्थ; 'गीयस्थ अच्छिविअच्छि स्त्री [दे] परस्पर-आकर्षण, अजड वि [अजड] १ पक्क, विकसित जायकप्पो अगी खलु भवे अजाम्रो प्र' (धर्म
आपस की खींचतान (दे १, ४१) । (गउड) । २ निपुण, चतुर (कुमा)। ३)। प्पिय पुं [कल्पिक] अगीतार्थ अच्छिहरिल्ल) देखो अच्छिघरुल्ल (दे अजम वि [दे] १ सरल, ऋजु (षड्)। २ जैन साधु (गच्छ १)। अच्छिहरुल्ल ) १, ४१)। जमाईन (पभा १५)।
अजिअ वि [अजित] १ अपराजित, अपराअच्छी देखो अच्छि (रंभा) ।
अजय वि [अयन] १ पाप-कर्म से अविरत, अच्छुक्क न [दे] अक्षि-कूप-तुला, आँख का
भूत । २ पुं. दूसरे तीर्थंकर का नाम (अजि नियम-रहित (कम्म ४)। २ अनुद्योगी, यत्न- १)। ३ नववें तीर्थंकर का अधिष्ठाता देव कोटर (सुपा २०)।
रहित (अघो ५४)। ३ उपयोग-शून्य, बेख्याल (संति ७)। ४ एक भावी बलदेव (तो २१)। अच्छुत्ता स्त्री [अच्छुप्ता] १ एक विद्याधि
(सुपा ५२२)। ४ क्रिवि. बे-ख्याल से, अनुप- बला स्त्री [बला भगवान् अजितनाथ की ष्ठात्री देवी (ति ८)। २ भगवान् मुनिसुव्रत
योग से 'अजयं चरमाणो य पाणभूयाइ हिसइ शासनदेवी (पद २७)। सेण पुं[सेन] स्वामी की शासनदेवी (संति १०)। (दस ४; उवर ४ टी।
१ एक प्रसिद्ध राजा (माव)। २ चौथा कुलकर अच्छुद्धसिरी स्त्री [दे] इच्छा से अधिक फल की प्राप्ति, असंभावित लाभ (षड्) ।
जय अजय षट्पद छद का एक भद (ठा १०)। ३ एक विख्यात जैन मुनि अच्छुल्लूढ वि [दे] निष्कासित, बाहर निकाला
(अंत ४)। अजय गा स्त्री [अयतना] अनुपयोग, ख्याल हुआ, स्थान-भ्रष्ट किया हुआ (बृह १)।
अजिअ ' [अजित] भगवान् मल्लिनाथ का नहीं रखना, गफलती (गच्छ ३)। अच्छेज देखो अच्छिज्ज (ठा ३, २, ४)।
प्रथम श्रावक (विचार ३७८)। अजरवि अजर] १ वृद्धावस्था-रहित, बुढ़ापाअच्छेर न आश्चर्य] १ विस्मय, चमत्कार
'नाह [नाथ नववां रुद्र पुरुष (विचार अच्छेरग (हे १,५८)।२ पुंन. विस्मय-जनक
वर्जित । २ पुं. देव, देवता (आवम)। ३ मुक्त अच्छेरय घटना, अपूर्व घटना (ठा १०, प्रात्मा (ोघ)। १३८)। कर वि [कर] विस्मय-जनक,
अजिअ वि [अजीव जीव-रहित, अचेतन चमत्कार उपजानेवाला (श्रा १४)। अजरामर वि [अजरामर] १ बुढ़ापा और
(कम्म १, १५)। अच्छोड सक [आ + छोटय । १ पटकना, मृत्यु से रहित, 'रगत्थि कोइ जगम्मि अजरा- अजिअ वि [अजय्य जो जीता न जा सके पछाड़ना। २ सिंचना, छिटकना; 'अच्छोडेमि | मरो' (महा)। २ न. मुक्ति, मोक्ष। ३ स्त्री. (सुपा ७५)। सिलाए, तिलं तिलं किं नु छिदामि' (सुर १५, | "रा विद्या-विशेष (पउम ७, १३६)। अजिया स्त्री [अजिता] १ भगवान् अजित २३; सुर २, २४५)।
| अजस [अयशस् ] १ अपयश, प्राकत्ति | नाथ की शासन देवी (संति ६ । २ चतुर्थ अच्छोड पुं [आच्छोट] १ सिंचन। २ (उप ७६८)। °ोकित्तिणाम न [ 'कीति- तीर्थंकर की एक मुख्य शिष्या (तित्थ)।
प्रास्फालन करना, पटकना (प्रोघ ३५७)। नामन् ] अपकीत्ति का कारण-भूत एक कर्म अजिण न [अजिन] १ हरिण प्रादि पशुओं अच्छोडण न आच्छोटन] १ सिंचन । २ (सम ६७)।
का चमड़ा (उत्त ५; दे ७, २७)। २ वि. प्रास्फालन (सुर १३, ४१; सुपा ५६३; वेणी अजस्स क्रिवि [अजस्र] निरन्तर, हमेशा; | जिसने राग-द्वेष का सर्वथा नाश नहीं किया १०६) । ३ मृगया, शिकार (दे १, ३७)। 'आमरणंतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा' | है वह (भग १५)। ३ जिन भगवान् के तुल्य अच्छोडाविव वि [दे. आच्छोटित] बंधित, (पंचा ७)।
सत्योपदेशक जैन साधु, अजिरणा जिरणसंकासा, बंधाया हुआ (स ५२५; ६२६)। अजा देखो अया (कुमा)।
जिणा इवावितहं वागरेमारणा' (प्रोप)। आच्छोडिअ बि [दे] प्राकृष्ट, खींचा हुआ; अजाण वि [अज्ञान] अनजान, मूर्ख (रयण | अजिण्ण देखो अइन्न = अजीर्ण (आव)। 'अच्छोडिअवस्था (गा १६०)। ८५)।
अजियंधर पुं [अजितधर] ग्यारह रुद्रों में अच्छोडिअ वि [आच्छोटित सिक्त, सिंचा | अजाणअ वि [अज्ञायक अनजान, जानकारी- | आठवां रुद्र पुरुष (विचार ४७३) । हुआ (सुर २, २४५)।
रहित (काल)।
| अजिर न [अजिर] प्रांगन, चौक (सण)।
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