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अच्छ- अच्छिन्न
पाइअसद्दमहण्णवो
अच्छ पुं [ऋक्ष ] रीछ, भालू ( परह १, १) ।
अच्छवि [आच्छ] अच्छे देश में उत्पन्न ( पण ११) । अच्छपुं [अच्छ] मेरु पर्वत (सुज ५) । २ न. तीन बार श्रौटा हुआ स्वच्छ पानी ( पडि ) ।
अच्छरय पुं [आस्तरक] शय्या पर बिछाने का वस्त्र-विशेष (गाया १, १) 1 अच्छरसा ! स्त्री [ अप्सरस् ] १ इन्द्र की अच्छरा ) पटरानी (ठा) । २ 'ज्ञाताधर्मकथा' का एक अध्ययन ( गाया २ ) । ३ देवी (पउम २, ४१ ) । ४ रूपवती स्त्री ( प ह १, ४) ।
जल्दी (दे १, ४९ ) ।
"अच्छवि [अक्ष] ख, नेत्र (कुमा) । 'अच्छ [कच्छ ] १ अधिक पानीवाला प्रदेश २ लताओं का समूह। ३ तृरण, घास ( से ६, ४७ ) ।
अच्छन [दे] १ श्रत्यन्त, विशेष । २ शीघ्र, अच्छरा स्त्री [दे. अप्सरा ] चुटकी, चुटकी का आवाज (सू २,२,५४) । अच्राणिवय पुं [दे] १ चुटकी २ चुटकी बजाने में जितना समय लगता है वह, प्रत्यय समय ( ३६ ) |
"अच्छा [वृक्ष] वृक्ष, पेड़ ( से ६,४७) । अच्छअ पुं [अक्षक ] १ बहेड़ा का वृक्ष । २ न. स्वच्छ जल ( से ६, ४७ ) 1
अच्छरिअ अच्छरिज अच्छरीअ अच्छल न [अच्छल] निर्दोषता, अनपराध (दे १, १०) ।
अच्छअर न [आचर्य] विस्मय, चमत्कार अच्छवि वि [अच्छवि] जैन-दर्शन में अच्छन [आच्छेदन] १ एक बा
(कुमा) ।
जिसको स्नातक कहते हैं वह जीवनन्मुक्त योगी (भग २५, ६) । अच्छविकर पुं [अक्षपिकर ] एक प्रकार का मानसिक विनय (ठा ८) । अच्छहल्ल पुं [ऋक्षभल्ल] रीछ, भालू (पाश्र ) ।
छेदना ( निचू ३) । २ छीनना । ३ थोड़ा छेद करना, थोडा काटना (भग १५ ) । अच्छिक वि[दे] स्पृष्ट, नहीं छुआ हुआ (aa १ ) 1 अच्छरुल्ल वि [] अप्रीतिकर । २ पुं वेश, पोशाक (दे १, ४१) । अच्छज्ज वि [आच्छेद्य ] १ जबरदस्ती जो दूसरे से छीन लिया जाय ( पिंड ) । २ पुं. जैन साधु के लिए भिक्षा का एक दोष
अच्छा स्त्री [अच्छा ] वरुण देश की राजधानी (पत्र २७५) ।
'अच्छा स्त्री [का] गर्व, अभिमान (से, ४७)।
( श्राचा) ।
अच्छा
अच्छंद व [अच्छन्द ] जो स्वाधीन न हो, पराधीन; 'अच्छंदा जे रण भुंजंति ण से चाइति चई' (दस २ ) ।
।
अच्छक्क देखो अत्थक्क (गउड) 1 अच्छण न [आसन] १ बैठना (गाया १, १)। २ पालकी वगैरह सुखासन (प्रोघ ७८ ) घर न [गृह] विश्राम स्थान ( जीव ३) । अच्छगन [दे] १ सेवा, शुश्रूषा (बृह ३) । २ देखना, अवलोकन (वव १) । ३ अहिंसा, दया (दस ८ ) ।
अच्छणिउर न [ अच्छ निकुर ] अच्छनि कुरांग को चौरासी लाख से गुरणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, १) । अच्छणिरंग न [अच्छनिकुराङ्ग] संख्याविशेष, नलिन को चौरासी लाख से गुरणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २,१) । अच्छण्ण वि [अच्छन्न ] श्रगुप्त, प्रकट (बृह ३) ।
अच्छभल्ल पुं [ऋक्षभल्ल] रीछ, भालू (दे १, ३७ परह १, १ ) |
अच्छभल पुं [दे] यक्ष, देव-विशेष (दे १, ३७) ।
अच्छरआ देखो अच्छरा ( षड् ) ।
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न [च]
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स्कार (हे १, ५८ प्रयौ ४२ ) ।
[आच्छादन] ढकनेवाला, आच्छादक ( स ३५१) ।
अच्छायणन [आच्छादन] १ ढकना (दे ७, ४५) । २ वस्त्र, कपड़ा (प्राचा) । अच्छायणा स्त्री [आच्छादना] ढकना, श्राच्छादित करना ( ३ ) |
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वह 'अच्छिणिमीलियमेत्तं गात्थि सुहं दुक्खमेव श्रबद्धं । गरए पेरश्राणं, ग्रहोरिणसं पच्चमाणा' (जीव ३) । पत्तन [पत्र] प्रख का पक्ष्म, पपनी (भग १४, ८) । बैग पुं [ वेधक] एक चतुरिन्द्रियजन्तु, क्षुद्र जीवविशेष (३६) । रोडय पुं [रोडक] एक चतुरिन्द्रियजन्तु, क्षुद्र कीट - विशेष (उत्त ३६) । लवि [मत्] १ आँख वाला प्राणी । २ चतुरिन्द्रियजन्तु ( उत्त ३६ ) । मल
[म] आँख का मैल, कीट्ट (नि ३ ) । अच्छिंद सक [ आ + छिद्] १ थोड़ा छेद करना २ एक बार छेद करना । ३ बलात्कार से छीन लेना। वकृ. अच्छिदमाण (भग ८, ३) ।
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अच्छिंद पुं [अक्षीन्द्र ] गोशालक के एक दिक्चर (शिष्य) का नाम (भग १५ ) ।
अच्छिन वि [ अच्छेद्य ] जो तोड़ा न जा सके (ठा ३,२) ।
अच्छित्ति स्त्री [अच्छित्ति ] १ नाश का अभाव, नित्यता । २ वि. नाश - रहित (विसे) । [न] नित्यता-वाद, वस्तु को नित्य माननेवाला पक्ष (पत्र) ।
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अच्छायंत वि [अच्छातान्त ] तीक्ष्ण, धार- अच्छिद वि [ अच्छिद्र ] १ छिद्र-रहित, दार (पा) । निबिड, गाढ़ (जं २ ) । २ निर्दोष (भग २,५ ) । अच्छ[अक्षि] ख, नेत्र (हे १. ३३ अच्छिण्ण ) वि [आच्छिन्न] १ बलात्कार ३५) । अच्छिन्न से छीना हुआ । २ छेदा हुआ, चढण न [मन] प्रांख का मलना (बृह तोड़ा हुआ (पा) । २) । निमीलियन [निमीलित ] १ आँख को मूँदना, मींचना । २ आँख मिचने में जो समय लगे
अच्छिण ) वि [अच्छिन्न] १ नहीं तोड़ा अच्छिन्न हुआ, अलग नहीं किया हुआ (ठा (१०)। २ श्रव्यवहित, अन्तर - रहित ( गउड ) ।
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