________________
संपायणा-संबर पाइअसहमहण्णवो
८४७ संपायणा स्त्री [संपादना] ऊपर देखो (पंचा संपुच्छ सक [सं+प्रच्छ ] पूछना, प्रश्न संपेह सक [संप्र+ ईक्ष ] देखना, निरीक्षण
करना । संपुच्छदि (शौ) (नाट-विक्र २१)। करना । संपेहरा, संपेहेइ (दसचू २, १२; पि संपाल सक [सं + पालय ] पालन संपळण म्वीन संप्रन्टन संप्रश्ना ३२३, भगः उवा; कप्प) । सं.संपेहाए, करना । संपालइ (भवि)।
प्रश्न, पृच्छा (सूम १,६, २१, सूपा २१) संपेहित्ता (पाचा १,२, ४,४१,५,३, संपाव सक[ सं+ आप्] प्राप्त करना। स्त्री. °णी (दस ३, ३)
२. सून २, २,१, भग)। संपावेइ (भवि) । संकृ. संपप्प (संवेग १२)।
।' संपुच्छणी स्त्री सिंधुच्छन] झाडू, संमार्जनी संपेहा स्त्री [संप्रेक्षा] पर्यालोचन (पाचा १, हेकृ. संपाविउ (सम १; भगः सौप) (राय २१)।
२, २, ६)। संपाव सक [संप्र + आपय ] प्राप्त संपुज्ज वि [संपूज्य संमाननीय, प्रादरणीय संफ न [दे] कुमुद, चन्द्र-कमल (दै ८,१)।' करवाना । संपावेइ (उवा)। (पउम ३३, ४७) ।
संफाल सक [सं + पादय ] फाड़ना, संपावण न [संप्रापण] प्राप्ति, लाभ (गाया संपुड पु[संपुट] १ जुड़े हुए दो समान अंश | चीरना । संफाल (भवि)।
१, १८--पत्र २४१; सुर : ४, ५७)। वाली वस्तु, दो समान अंशो का एक दूसरे संसाली स्त्री दे] पंक्ति. श्रेरिण (दे ८, ५)।संपाविअ वि संप्राप्त] प्राप्त, लब्ध (सुर से जुड़ना; 'कवाडसंपुडघणम्मि' (धरण ३),
संफास सक[सं+ स्पृश् ] स्पर्श करना, २, २२६; सुपा १९५; सण)। 'दलसंपुडे' (कप्पू: महाः भविः से ७, ५६)।
छूना; 'माइट्ठाणं संफासे' (प्राचा २, १, ३, संपाविअ वि[संप्रापित नीत, जो ले जाया २ संचय, समूह (सून १, ५, १, २३)।
३, २, १, ५, ५, २, १, ६, २, ४, ५)। फलग [फलक] दोनों तरफ जिल्द बँधी गया हो वह (राज)।
पुस्तक, हिसाब की बही के समान किताब संफास पुं[संस्पशे] स्पर्श (पाचा; उप संपासंग वि [दे] दीर्घ, लम्बा (दे८, ११)।
(पव ८०)
| ६४८ टी; पव २ टी हे १, ४३, पडि) । संपिंडग न सिंपिण्डन] १ द्रव्यों का परस्पर संपुड सक [ संपुटय जोड़ना, दोनों हिस्सों संफासण न [संस्पर्शन] ऊपर देखो संयोजन (पिंड २) । २ समूह (अोघ ४०७)। को मिलाना । संपुडइ (भवि) ।
'आणावीरियसंफासणभावतो' (पंचा १०, संपिंडिअ वि [संपिण्डित] पिण्डाकार किया संपुडिअ वि [संपुटित्त] जुड़ा हुआ (णाया ।
२८)। हुआ, एकत्र किया हुआ (ौष जी.-४७; १, १-पत्र ६३)।
संफिट्ट पुं[दे] संयोग, मेलन (श्रा १६) । सण)
संपुण्ण वि [संपूर्ण] १ पूर्ण, पूरा (उवाः | संफुल्ल घि[संफुल्ल] विकसित (प्राकृ १४) ।। संपिक्ख देखो संपेह = संप्र + ईक्ष् । संपि- | महा) । २ न. दश दिनों का लगातार उपवास संफुसिय वि [संमृष्ट] प्रमाजितः 'दसणकरक्खई (दसचू २, १२)। (संबोध ५८)।
नियरसंफुसियदिसिमुहमला' (सुपा २६३) । संपिट्ठ वि[संपिष्ट] पिसा हुआ (सून १, संपूअ सक[सं+ पूजय_] सम्मान करना, संब शाम्ब]१ श्रीकृष्ण वासुदेव का एक
अभ्यर्चना करना। संकृ. संपूइऊण (पंचा। पत्र (णाया १,५-पत्र १० अंत १४)। संपिणद्ध वि [संपिनद्ध] नियन्त्रित; 'रज्जु
२ राजा कुमारपाल के समय का एक सेठ पिरिणद्धो व इंदकेतू विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं'
संपूजिय वि[संपूजित अभ्यचित (महा) (कूप्र १४३) । (पएह २. ४--पत्र १३०)।
संपूयण न [संपूजन] पूजन, अभ्यर्चन (सूम संब पुन [शम्ब] वज्र, इन्द्र का प्रायुध (सुर संपिहा सक [समपि + धा] पाच्छादन
१, १०, ७, धर्मसं ६३४) करना, ढकना। संकृ. संपिहित्ताणं (पि ५८३)।
संपूरिय वि [संपूरित] पूर्ण किया हुप्रा. संबंध सक [सं + बन्ध् ] १ जोड़ना। २ 'संपूरियदोहला' (महाः सण)।
नाता करना । कर्म. संबज्झइ (चेइय ७२७)।संपीड पुं[संपीड] संपीडन, दबाना (गउड)। देखो संपील ।
संपेल्ल [संपीड] दबाव (पउम ८, २७२)। संबंध पुं[संबन्ध] १ संसर्ग, संग (भवि)। संवीडिअ वि [संपीडित] दबाया हुआ
लाख २ संयोग (कम्म १, ३५) । ३ नाता, सगाई,
रिश्तेदारी (स्वप्न ४३)। ४ योजना, मेल (महाः भवि)।। (गउड १४४)।संपीणि वि[संप्रीणित] खुश किया हुमा संपेस पुं[संप्रेष] प्रेषण, भेजना (णाया १,
(वव ५) (सण) ८-पत्र १४७) ।
संबंधि वि [संबन्धिन सम्बन्ध रखनेवाला संपील पुं [संपीड] संघात, समूह (उत्त ३२, संपेसण न [संप्रेषण] ऊपर देखो (णाया १,
पर देखो माया १, (उवा; सम्म ११७ स ५३६)।
(उवा सम्म र २६)।
८-पत्र १४६; स ३७६; गउड; भवि) संबर पुं शम्बर] मृग-विशेष, हरिण की संपीला स्त्री [संपीडा] पीड़ा, दुःखानुभव संपेसिय वि [संप्रेषित] भेजा हुआ (सुर एक जाति (पएह १,१–पत्र ७ दे ८,६; (उत्त ३२, ३६ ५२; ६५ ७८)। १६, ११५)।
कुप्र ४२६)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org