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संजम-संजोइय
पाइअसद्दमहण्णवो
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संजमिजति (गउड २८६)। वकृ. संजमेंत, संजर पुंसिंज्वर ज्वर, बुखार (अच्चु ६७) जहा वत्थं (धर्मसं १८०)। कवकृ. संजुज्जंत संजमयंत. संजममाण (गउड ८४० दसनि संजल अकासं+ज्वल1१ जलना। २ (सम्म ५३) ।' १,१६८उत्त १८,२६)। कवकृ. संज
प्राक्रोश करना । ३ ऋद्ध होना। संजले (सन संजुान[संयुत] छन्द-विशेष (पिंग) । देखो मीअमाण (नाट-विक्र ११२)। संकृ. १, ६, ३१, उत्त २, २४)।
संजुअसंयुत । संजमित्ता (सूत्र १, १०, २)। हेकृ.
संजलग वि [संज्वलन] १ प्रतिक्षण क्रोध संजुना स्त्री [संयुता] छन्द-विशेष (पिंग)। संज मउं (गउड ४८७)। कृ. संजमिअव्व,
करनेवाला (सम ३७)। २ पूं. कषाय-विशेष संजुन वि संयुक्त] संयोगवाला, जुड़ा हुमा संजमितव्व (भगः रणाया १, १-पत्र (कम्म १. १७)।
(महा सण पि ४.४ पिंग)। संजम सक [दे छिपाना । संजमेसि (दे ८,
संजलिअ [संचलित] तीसरी नरक भूमि संजुत्ति स्त्री [दे] तैयारी (सुर ४, १०२; का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र)।
१२, १०१ स १०३, कुप्र २००)। देखो १५ टी)। संजल्लिअ (अप) वि [संचलित] प्राक्रोश
संजत्ति। संजम संयम, १ चारित्र, व्रत, विरति,
युक्त (भवि)।
संजुद्ध वि [दे] स्पन्द-युक. थोड़ा हिलनेहिंसादि पाप-कर्मों से निवृत्ति (भगः ठा ७; प्रौप कुमाः महा)। २ शुभ अनुष्ठान (कुमा संजय देखो संजम = सं + यम् । संजबहु
चलनेवाला, फरकनेवाला (दे ८. ६)। ७, २२)। ३ रक्षा. अहिंसा (णाया १,
संजूह पुंन [संयूथ] १ उचित समूह (ठा (अप) (भवि)।
१०-पत्र ४६५)। २ सामान्य, साधारणता। १-पत्र.)। ४ इन्द्रिय-निग्रह। ५ बन्धन। संजय देखो संजम % (दे)। संजबइ (प्राकृ
३ संक्षेप, समास (सूम २, २, १)। ४ ग्रन्थ६ नियन्त्रण. काबू (हे १, २४५)। संजम
संजविअ देखो संजमिअ = (द) (पान पुं[संथम] श्रावक-व्रत (प्रौप)।
रचना, पुस्तक निर्माण (अणु १४६)। ५ भवि)।
दृष्टिवाद के अठासी सूत्रों में एक सूत्र का संजमण न संयमन] ऊपर देखो (धर्मवि
नाम (सम १२८) १७: गा २६१: सुपा ५५३)।
संजविअ देखो संजामअ = सयामत (भाव) - संजोअ सक[ सं + योजय ] संयुक्त करना, संजमिअ वि [दे] संगोपित, छिपाया हुआ संजा देखो संणा (हे २,८३)।
संबद्ध करना, मिश्रण करना । संजोएइ, (दे८, १५)।
संजागय वि [संज्ञायक] विज्ञ, विद्वान्, संजोयइ (पिंड ६३८; भगः उव; भवि)। संजमिअ वि [संयमित] बाँधा हुआ, बद्ध जानकार (राज)
वकृ. संजोयंत (पिंड ६३६)। संकृ. संजो(गा ६४६: सुर ७, ५; कुम १८७)। संजात , देखो संजाय =संजात (सुर २, एऊण (पिंड ६३६)। कृ. संजोएअब्ध संजय अक[सं + यत् ] १ सम्यक् प्रयत्न संजाद ११४, ४, १६०; प्राप्रा पि (भग)। करना। २ सक. अच्छी तरह प्रवृत्त करना । २०४) ।
संजोअ सक[सं+दृश] निरीक्षण करना, संजयए, संजए (पव ७२; उत्त २, ४)।
संजाय अक [सं + जन्] उत्पन्नन होना। देखना । संकृ. संजोइऊण (श्रु ३२)।संजय वि[संयत] साधु. मुनि, व्रती (भग संजायड (सरण)।
संजोअ पुंसिंयोग] संबन्ध, मेल-मिलाप, प्रोघभा १७ काल); 'ममावि मायावित्ताणि संजाय वि [संजात] उत्पन्न (भग; उवाः मिश्रण ( षड् ; महा)। संजयारिण' (महा)। पंता स्त्री [प्रान्ता] महा सणः पि ३३३) ।
संजोग न संयोजन] १ जोड़ना, मिलाना साधु को उपद्रव करनेवाली देवी आदि | संजीवणी स्त्री [संजीवनी] १ मरते हुए को (ठा २, १-पत्र २६) । २ वि. जोड़नेवाला। (ोघभा ३७ टी) भद्दिगा स्त्री . जीवित करनेवाली औषधि (प्रासू ८३)। २ ३ कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धि · नामक [भद्रिका] साधु को अनुकूल रहनेवाली
जीवित-दात्री नरक-भमि (सन १.५.२.६) क्रोधादि-चतुष्क (बिसे १२२६; कम्म ५. देवी यादि (ोघमा १७ टी) संजय वि नीवि वि संनिविना जिलानेवाला । ११ टो)। धिकरणिया स्त्री/धिकरणिकी] rrzता किसी अंश में व्रती और किसी जीवित करनेवाला (कप्पू)।
खङ्ग आदि को उसको मूठ आदि से जोड़ने अंश में अवती, श्रावक (भग)संजुअ वि [संयुत] सहित, संयुक्त (द्र २२
। की क्रिया (ठा २, १-पत्र ३६) । संजय सिंजय भगवान् महावीर के पास | सिक्खा ४८; सुर ३, ११७; महा)। देखो
संबोअगा स्त्री [संयोजना] १ मिलान, दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८-पत्र संजत।
मिश्रण (पिंड ६३६)। २ भिक्षा का एक संजुअन [संयुग] १ लड़ाई, युद्ध, संग्राम दोषः स्वाद के लिए भिक्षा-प्राप्त चीजों को संजयंत पुं[संजयन्त] एक जैन मुनि (पउम (पान)। २ नगर-विशेष (राज)। प्रापस में मिलाना (पिंड १) ५, २१)। "उर न [पुर] नगर-विशेष संजुज सक[सं+ युज् ] जोड़ना। कर्म. संजोइय वि [संयोजित] मिलाया हा,
__'अविसिटे सब्भावे जलेण संजुम(? ज)ती जोड़ा हुआ (भगः महा) ।
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