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वोय-व्वे पाइअसहमहण्णवो
-२५ वोय पुंवोक] एक देश का नाम (पउम उल्लंधित (पान; सुर २, १; कुप्र ४५; से औप), वोसिरेजा, वोसिरे (पि २३५) । ९८, ६४)।
| १,३, ४, ४८ गा ५७, २५२, ३४०; हे वकृ. वोसिरंत (कुप्र ८१)। संकृ. वोसिज्ज, वोरच्छ वि [दे] तरुण, युवा (दे ७,८०). ४, २५८ कुमाः महा)।
वोसिरित्ता (सूत्र १, ३, ३, ७ पि २३५)। वोरमण न [व्युपरमण] हिंसा, प्राणि-वध वोल्ल सक [आ + क्रम् ] आक्रमण करना।
कृ. वोसिरियव्य (पत्र ४६)। वल्लइ (धात्वा १५४)।
वोसिर वि [व्युत्सर्जन] छोड़नेवाला (उप (पएह १, १-पत्र ५)।
पृ २६८) । वोरल्ली स्त्री [दे] १ श्रावण मास की शक्ल वोल्लाह पुं [वोल्लाह] देश-विशेष (स ८१)।
वोसिरण न [व्युत्सर्जन] परित्याग (हे २, चतुर्दशी तिथि में होनेवाला एक उत्सव । वोल्लाह वि [वौल्लाह] देश-विशेष में उत्पन्न
१७४ श्रा १२ श्रावक ३७६; अोघ ८५) ।। २ श्रावण मास की शुक्ल चतुर्दशी (दे ७, (स ८१)।।
वोसिरिअ देखो वोस? (पउम ४, ५२; ८१) । वोवाल पुं[दे] वृषभ, बैल (दे ७,७६)।
धर्मसं १०५१; महा)।वोरविअ वि [व्यपरोपित] जो मार डाला वोसग्ग पुं [व्युत्सर्ग] परित्याग (विसे |
वोसेअ वि [दे] उन्मुख-गत (दे ७, ८१)17 गया हो वह; 'सकारित्ता जुयलं दिन्नं बिइएण
२६०५) । वोरविनो' (वव १)। वोसग्ग। अक[वि+ कस ]१ विकसना,
वोहित्त न [वहित्र] प्रवहण, जहाज, नौका वोरुट्ठी श्री [दे] रुई से भरा हुमा बस्न (पदवोसट्ट । खिलना । २ बढ़ना। वोसग्गइ,
(गा ७४६) । देखो बोहित्थ ।। वोसट्टइ (षड् ; हे ४, १६५, प्राकृ ७६)। वोहार न [दे] जल-वहन (दे ७,५१) . वोल सक [गम् ] १ गति करना, चलना।
व्युड पुं [दे] विट, भडमा (षड् ) ।। २ गुजारना, पसार करना। ३ अतिक्रमण वोसट्र सक [वि + कासय 1१ विकास | बंद देखो बंद = वन्द प्राप्र) करना, उल्लंघन करना। ४ अक. गुजरना, करना । २ बढ़ाना । वोसट्टइ (धात्वा १५४)।
व्रत्त (अप) देखो वय = व्रत (हे ४, ३६४) । पसार होना । वोलइ (प्राकृ ७३; हे ४,
वोसट्ट वि [विकसित] विकास-प्राप्त (हे ४, वाक्रोस (अप) पुं [व्याक्रोश १ शाप । १६२, महा: धर्मसं ७५४); 'कालं वोलेइ' २५८ प्राकृ ७७)।
२ निन्दा । ३ विरुद्ध चिन्तन (प्राक ११२)।(कुप्र २२४), वोलंति (वजा १४८धर्मवि
वोसट्ट वि[दे] भर कर खाली किया हुआ जागरण (अप) देखो वागरण (प्राकृ ११२) । ५३) । वकृ. वोलंत, वोलेंत (कुमा गा (दे ७, ८१)।
ब्राडि (अप) [व्याडि] संस्कृत व्याकरण २१०, २२०; पउम ६, ५४; से १४, ७५
वोसट्टिअ वि [विकसित] विकास-प्राप्त और कोष का कर्ता एक मुनि (प्राकृ ११२)।सुपा २२४ से ६,६६) । संकृ. वोलिऊण, (कुमा)।
व्रास देखो वास = व्यास (हे ४, ३६६ प्राक वोलेत्ता (महाः माव) । कृ. वोलेअव्व
वोसटू वि [व्युत्सृष्ट] १ परित्यक्त, छोड़ा ११२ षड्; कुमा)। (से २,१; स ३६३) । प्रयो., संकृ.वोलाविउं,
हमा (कप्पा कस; मोघ ६०५, उत्त ३५, व्व देखो इव (हे २,१८२, कप्प; रंभा) वोलावेउं (सुपा १४०; गा ३४६ प्र?)।
१६, प्राचा २, ८, १; पंचा १८, ६)। व्व देखो वाम (प्राकृ २६)। देखो बोल = व्यति + क्रम् ।।
२ परिष्कार-रहित, साफसूफ-वजित (सूम । व्वअ देखो वय-व्रत (कुमा)। वोल देखो बोल = दे (दे ६,६०)।
१,१६,१)। ३ कायोत्सर्ग में स्थित (दस | व्यवसिअ देखो ववसिय = व्यवसित (प्रभि वोलट्ट प्रक [व्युप + लूट ] छलकना। | ५, १,६१)
१२४) वकृ. वोलट्टमाण (भग)।
वोसमिय वि [व्यवशमित] उपशमित, व्याज देखो वाय- व्याज (मा २०)। वोलावि वि [गमित] अतिक्रामित (वजा शान्त किया हुआ; 'खामिय वोसमियाई | "व्वावार देखो वावार = व्यापार (मा ३६) १४, सुपा ३३४; गा २१)।
अहिगरणाइंतु जे उदीरेंति । ते पावा नायव्वा' व्वावुड देखो वावुड (अभि २४६)। वोलिअ वि [गत] १ गया हुआ (प्राकृ (ठा ६ टी-पत्र ३७१)।
व्वाहि देखो वाहि (मा ४४)। वोलीण । ७७)। २ गुजरा हुआ, जो पसार वोसर ) सक [व्युत् + सृज] परित्याग | व्विव देखो इव (प्राकृ २६)। हुमा हो वह, व्यतीत (सुर ६, १६; महा: वोसिर ) करना, छोड़ना । वोसरिमो, व्वे प्र[दे] संबोधन-सूचक अव्यय (प्राकृ पव ३५, सुर ३, २५) । ३ प्रतिक्रान्त, । वोसिरइ, वोसिरामि (पव २३७, महा: भगः । ८०)
॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि वाराइसहसंकलणो
पंचतीसइमो तरंगो समत्तो॥v
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