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८२४ पाइअसहमहण्णवो
वोक-वोमिला वोक सक [व्या + हृ, उद् + नद्] पुका- वोच्छिद सक [व्युत् , व्यव + छिद्] १ | वोट्रि वि [दे] सक्त, लीन (षड् )।रना, आह्वान करना । वोक्क इ (षड् ; प्राकृ भांगना, तोड़ना, खण्डित करना । २ विनाश वोड विदे] १ दुए । छिन्न-कर्ण, जिसका ७४) 17
करना । ३ परित्याग करना । वोच्छिदइ | कान कट गया हो वह (गा ५४६) । देखो वोक सक [ उद् + नट ] अभिनय करना । (उत्त २६, २)। भवि वोच्छिदिहिति (पि बोड । वोक्काइ (प्रा. ७४) ।
५३२) । कर्म. वुच्छिजं, वोच्छिजइ, वोच्छि- | वोडही स्त्री [दे] १ तरुणी, युवति। २ वोक्त वि[व्युत्क्रान्त १ विपरीत क्रम से
जए (कम्म २, ७: पि ५४६; काल)। भवि.
कुमारी; 'सिक्खंतु वोडीयो' (गा ३९२)। स्थित (हे १,११६)। २ अतिक्रान्त; 'पज्जवोच्छिजिहिति (पि ५४६)। वकृ. वोच्छंदंत,
देखो वोद्रह । वनयवोक्कंतं तं वत्थु दबढिअस्स वयणिज्ज' वोच्छिंदमाण (से १५, ६२ ठा ६-पत्र
वोड्ड वि [दे] मूर्ख; वेवकूफ (उव)। (सम्म ८) । देखो वुक्कत ।
३५६)। कवकृ.वोच्छिज्जत, वोच्छिज्जमाण
वोढ वि [ऊढ] वहन किया हुआ (धात्वा वोकस सक [ व्यप + कृष् ] ह्रास प्राप्त
(से ८, ५, ठा ३, १-पत्र ११६)।करना, कमी करना । कवकृ. वोक्कसिज्जमाण कोच्छिण देखो वोच्छिन्न (विपा १, २
वोढ वि [दे] देखो वोड (गा ५५० प्र)। (भग ५, ६-पत्र २२८)। पत्र २८) ।
वोढव्व देखो वह = वह । वोकस देखो वोकस (सूत्र १, ६, २)। वोच्छित्ति स्त्री [व्यवच्छित्ति] विनाश
वोदु वि [चोढ़ ] वहन-कर्ता (महा)।' वोक्स देखो वुक्कस = व्युत् + कृष् । वोक्क
__ 'संसारवोच्छित्ती' (विसे १६३३)। °णय पुं नया पर्याय-नय (दि)।
वोढुं देखो वह = वह । साहि (मापा २, ३,१, १०)। वोच्छिन्न देखो वुच्छिन्न (भगः कप्पा सुर
वोढूण अ [उडढ्वा] वहन कर (पि ५८६) । वोक्का स्त्री [दे] वाद्य-विशेष; ‘डक्कावोक्कारण ___४, ६६) ।
वोत्तव्य देखो वय = वच् ।' रखो वियंभिभो रायपंगणए' (सुपा २४२)। देखो बुक्का ।
वोच्छेअ । व्युच्छेद, व्यवच्छेद] वोत्तुआण अ[उक्त्वा ] कह कर (षड्-पू वोच्छेद १ उच्छेद, विनाश; 'संसारवो
। १५३)। वोक्का स्त्री [व्याहृति] पुकार (उप ७६८
च्छेयकरे' (णाया १, १-पत्र ६०० धर्मसं वोत्तं । टी) २२८) । २ अभाव, व्यावृत्ति (कम्म ६, वोत्तण
६ देखो वय = वच् । वोक्कार देखो बोकार (सुर १, २४६) ।
२३) । ३ प्रतिबन्ध, रुकावट, निरोध (उवा; वोदाण न [व्यवदान १ कर्म-निर्जरा, कर्मों वोक्ख देखो वोक्क = उद् + नद् । वोक्खइ | पंचा १, १०)। ४ विभाग (गउड ७४०) का विनाश (ठा ३, ३-पत्र १५६; उत्त (धात्वा १५४)। वोच्छेयण न [व्युच्छेदन] १ विनाश
२६, १) । २ शुद्धि, विशेष रूप से कर्मवोक्खंदग [अवस्कन्द] आक्रमण (महा) (चेइय ५२४; पिंड ६६६) । २ परित्याग
विशोधन (पंचा १५, ४: उत्त २६, १; भग)। वोक्खारिय बि [दे] विभूषितः 'पवरदेवंग- (ठा ६ टी-पत्र ३६०)।
३ तप, तपश्चर्या (सूत्र १, १४, १७)। ४ वत्थवोक्खारियकरण्यखंभ (स २३६)।-
वनस्पति-विशेष (पएण १--पत्र ३४) ।। वोज देखो वज्ज । वोजइ (हे ४, १९८ टी) वोगड वि [व्याकृत] १ कहा हुअा, प्रति- वोज सक [ वीजय ] हवा करना । वोजइ |
वोद्रह वि [दे] तरुण. युवा (दे ७, ८०); पादित (सूम २, ७, ३८, भगः कस)।२ (हे ४, ५; षड् )। वकृ वोज्जत (कुमा)। ।
'वोद्रबहम्मि पडिया' (हे २,८०)। स्त्री. परिस्फुट (आचानि २६२)।
ही; "सिक्कखंतुवोद्रहीयो' (हे २, ८०)। वोज्जिर वि [सित] डरनेवाला (कुमा)। वोगडा स्त्री [व्याकृता] प्रकट अर्थ वाली
वोभीसण वि [दे] वराक, दीन, गरीब (दे वोझ देखो वह = वह । भवि. 'तेणं कालेणं भाषा (पएण ११-पत्र ३७४)।
७, ८२) । | तेणं समएणं गंगासिंधूप्रो महानदीमो रहपह
वोम न [व्योमन] आकाश, गगन (पापा वोसिअ वि [व्युत्कापत] निष्कासित, | वित्थराम्रो अक्खसोयप्पमाणमेत्तं जणं वोज्झि
विसे ६५६) बिन्दु पुं ["बिन्दु] एक बाहर निकाला हुआ (तंदु २) । हिति' (भग ७, ६--पत्र ३०७) । कृ.
राजा का नाम (पउम ७, ५३)। वोच । सक विद्] बोलना, कहना । वोचइ, 'नासानीसासवायवोज्झं...अंसुयं' (णाया
वोमझ [दे] अनुचित वेष (दे ७, ८०) वोच्च । वोच्चइ (धात्वा १५४) ।
१, १, १-पत्र २५; राय १०२ प्राप)। वोच्चत्थ वि [व्यत्यस्त] विपरीत, उल्टा बोझ
वोमज्झिअ न [दे] अनुचित वेष का ग्रहण
पुं[दे] बोझ, भारः 'असि'हियनिस्सेस (?यस)बुद्धिवोच्चत्थे ( उत्त ८, बोज्झमल्लवोझ फलयवोज्झमल्लं च'
(दे ७, ८० टी)। ५. सुख ८, ५; विसे ८५३)। (दे ७, ८०)।
वोमिल पुं[व्योमिल] एक जैन मुनि (कप्प)। वोत्थ न [दे] विपरीत रत (दे ७,५८)। बोझर वि [दे] १ प्रतीत । २ भीत, त्रस्त वोमिला स्त्री [व्योमिला] एक जैन मुनिवोच्छ देखो वय = वच् ।
शाखा (कप्प)।
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