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विलप्प-विलीण
पाइअसद्दमहण्णवो
နိုင်
विलप्प पु [विलाल्मन्] एक नरक-स्थान विलाल देखो बिराल (पि २४१) ।। विलिंप सक [वि + लिप्] लेप करना, (देवेन्द्र २६)।
विलाव [विलाप क्रन्दन, बिलख-बिलख या | लेपना, पोतना । विलिपइ (सरण) । संकृ. विलभ सक [खेदय 1 खिन्न करना, खेद विकल होकर रोना परिदेवन (उव)। विलिंपिऊण (सरण) । हेकृ. मिलिंपित्तए उपजाना । विलभेइ (प्राकृ ६७)।
विलाविअ वि [विलापित] विलाप-युक्त | (कस) । प्रयो., वकृ. विलिंपावंत (निचू विलमा स्त्री [दे] ज्या, धनुष की डोरी (दे
(वै ८६; भवि)। विलास ' [विलास] १ स्त्री का नेत्र-विकार । विलिज प्रक [वि+ली] १ नष्ट होना । २
२ स्त्री की शृगार-चेष्टा विशेष, अंग और पिघलना । विलिजइ; विलिज्जंति, विलिज (हे विलय [दे] सूर्य का अस्त होना (दे ७,
क्रिया-संबन्धी स्त्री की चेष्टा-विशेष (पएह २, ४, ५६, ४१८ भवि: अज्झ ५५, संबोध ५२; ६३, पान)
४-पत्र १३२; औप; गउड) । २ दीप्ति, . गच्छ २, २६)। वकृ. विलिज्जंत, बिलिज्जविलय पुं[विलय] १ विनाश (कुप्र ५१
चमक (कुमा; गउड)। ३ चेष्टा-विशेष, मौज माण (पउम ६, २०, ३; २१, २२)। मुपा १६७; ती ३) । २ तल्लीनता (ती ३)।
(गउड) + "पुर न [°पुर] नगर-विशेष विलित देखो विलिअ = वीडित (उप २६६)। ३ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)।
(सुपा ६२२) + वई श्री [वती] स्त्री, विलित्त वि [विलिम लिपा हुमा, जिसको विलया स्त्री विनिता] श्री, महिला, नारी नारी. महिला (से १०,७१, गउड)
विलेपन किया गया हो वह (सुर ३, ६२; (पामा हे २५ १२८ षड् कुमा; रंभा; | विलासि वि विलासिना१ मौजी, शौकीन १०, १७ भवि)।भवि)।
(हास्य १३८ गउड) । २ चमकनेवाला। स्त्री.
बाला। स्ना. विलिब्बिली स्त्री [दे] कोमल और निबल विलव अक [वि + लप] रोना, काँदना, __णीः 'चंदविलासिणीमो चंदद्धसमललाडामो'
शरीरवाली स्त्री, नाजुक बदनवालो नारी (दे निलावावल चिल्लाना । विलवइ (षड्; महा)। वकृ.
. महाक (औप)विलवंत, विलवमाण (महा: पाया १, | विलासिअ वि [विलासिक, सित] विलास
विलिह सक [वि + लिख] १ रेखा करना। युक्त (गा ४०५) १-पत्र ४७)। विलासिणी स्त्री [विसिनी] १ नारी, स्त्री।
२ चित्र बनना । ३ खोदना । विलिहइ विलवण वि [विलपन] रोनेवाला, चिल्लाने२ वेश्या (गा २९३, ८०३ प्र; गउड,
(भवि)। व. विलिहमाण (पउम ७, वाला । या स्त्री [ता] विलाप, क्रन्दन नाट-रत्ना ६; पि ३४६; ३८७)। देखो |
१२०)। कवकृ. विलिहिज्जमाण (कप्प)। (प्रौप)! . विलासि ।।
हेकृ. विलिहिउँ (कप्पू) विलविअ न [विलपित] विलाप, क्रन्दन विलिअन व्यलीका १ कंदर्प-संबन्धी अपराध, विलिह सक [वि + लिह.] १ चाटना। २ (पान औप) ।
वह अपराध जो काम के प्रावेग के कारण चुम्बन करना । विलिहंतु (कप्पू)। वकृ. विलबिर चि [विलपित] विलाप करनेवाला |
किया जाय, गुनाह (कुमाः गा ५३)। २ अकार्य विलिहंत (गच्छ १, १७; भत्त १४२)। (कुमाः सण) ।
(गा ५३)। ३ अप्रिय, विप्रिय (गा ५३; विलिहण न [विलेखन] रेखा-करण (तंदु विलस तक [वि + लस ]१ मौज करना। पाप्र)। ४ अनृत, अरात्य । ५ प्रतारणा, ५०) २ चमकना । विलसइ, विलसेसु (महा)। ठगाई । ६ गति-विपर्यय । ७ वि. अपराधी। विलिहिअ घि विलिखित] चित्रित (सुर वकृ. विलसंत (कप्प; सुर १, २२८)। ८ अकार्य-कर्ता । ६ विप्रिय-कर्ता। १० झूठ १२, २०) बिलसण न [विलसन] १ विलास, मौज बोलनेवाला (हे १,४६; १०१)।
विलीअ देखो विलिअ = वीडितः 'सोगवि(उप पृ १८१): २ वि. मौज करनेवाला विलिअ वि [वीडित] लजित, शरमिन्दा
| वसो विलीओ' (कुप्र १३५) । (सुर १, २२१ टि)। (पामः पड्)।
विलीअ देखो विलिअ = व्यलीक; 'मझ विलसिय न [विलसित] १ चेष्टा-विशेष । विलिअ न [दे. ब्रीडित] लजा, शरम (दे
विलीयं नरवइस्स परिवसइ किपि चित्त' (सुपा २ दीप्ति, चमक (महा) ७, ६५, सण)
३००) विलिइअ वि [व्यलीकित] व्यलीक-युक्ता विलसिर वि [विलसित] विलासी, विलास
'विलि (?लिइ)ए विडे' (भग १५-पत्र
|विली इर वि [विलेतृ] द्रवण-शील, पिघलनेकरनेवाला (सुपा २०४; २५४ धर्मवि १६;
वाला (कुमा) ६८१: राज) सरण) विलिंग सक [वि + लिङग ] आलिङ्गन
विलीण वि [विल.न] १ पिघला हुआ, द्रवीविला देखो विराः 'मयणं व मणो मुणिणोवि __ करना, स्पर्श करना । विलिंगेज (प्राचा २,
भूत । २ विनष्ट; 'सोवि तुह झारगजलणे हंत सिग्धं चिय विलाई (भत्त १२७), 'तावरण
मयणो मयणं विप्र विलीणो' (धरण २५; व नवरणीयं विलाइ सो उद्धरिजंतो' (कुप्र विलिंजरा स्त्री [दे] धाना, भुने हुए जौ (दे पानः महाः भवि)। ३ जुगुप्सित (पएह १, १०५) ७, ६६)
१-पत्र १४)।
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